भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने कहा कि बैंकिंग नियामक को अक्सर सूचना मिलती है कि एमएसएमई और खुदरा क्षेत्र बैंक से विदेशी मुद्रा विनिमय पर ज्यादा शुल्क लेते हैं। उन्होने कहा कि यह चिंता की बात है कि छोटे ग्राहकों से लिए जाने वाले शुल्क को लेकर कोई पारदर्शिता नहीं है।
फॉरेन एक्सचेंज डीलर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एफईडीएआई) के 17वें सालाना सम्मेलन में मिस्र की राजधानी काहिरा में 5 मार्च को राव ने कहा, ‘बड़ी कंपनियां हमारे बाजारों में नकदी से समर्थित प्रतिस्पर्धी कीमत का लाभ लेती हैं वहीं छोटे ग्राहकों से लिए वाले शुल्क में यह नहीं दिखता और छोटे लेन देन की लागत ज्यादा आती है।’ रिजर्व बैंक ने राव का भाषण गुरुवार को वेबसाइट पर जारी किया।
उन्होंने कहा, ‘कीमत की खोज के लिए एफएक्स रिटेल प्लेटफॉर्म पेश किया गया था, जिससे एक स्वचालित प्लेटफॉर्म से ऐसा किया जा सके। बहरहाल बैंक इस प्लेटफॉर्म को इस्तेमाल करने के लिए ग्राहकों को प्रोत्साहित नहीं कर रहे हैं।’
उन्होंने एफईडीएआई और सभी बैंकों से विदेशी मुद्रा बाजार में कम संसाधन वाले ग्राहकों के लिए साफ सुथरी और पारदर्शी कीमत व्यवस्था सुनिश्चित करने की अपील की। उन्होंने कहा कि एफईडीएआई जैसे स्व नियामक संगठन (एसआरओ) इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं।
राव ने कहा कि भारत को विनिमय दर में उतार-चढ़ाव का प्रबंधन करने की जरूरत है, क्योंकि देश रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण और मुक्त पूंजी खाता परिवर्तनीयता के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है।
उन्होंने यह भी कहा कि रुपये के अंतरराष्ट्रीय होने के अपने लाभ के साथ ही चुनौतियां और जोखिम भी हैं, जिनसे देश और आरबीआई को निपटना होगा। राव ने कहा कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ेगी और अधिक विकसित होगी, विदेशी मुद्रा बाजारों में भागीदारी का दायरा बदल जाएगा। उन्होंने कहा, ‘बाकी दुनिया के साथ अर्थव्यवस्था के बढ़ते एकीकरण के चलते प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अधिक से अधिक संस्थाओं के विदेशी मुद्रा जोखिमों के प्रभाव में आने की आशंका है। ऐसे में आर्थिक जोखिमों की हेजिंग की अनुमति देने की मांग की जा सकती है।’
उन्होंने कहा कि बाजार सहभागियों के एक नए समूह के साथ एक नया बाजार खुल गया है। राव ने कहा कि जैसे-जैसे देश रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की राह पर आगे बढ़ेगा, और गतिशीलता आने की संभावना है और हमें इसे प्रबंधित करने के लिए कमर कसने की जरूरत है।