सार्वजनिक क्षेत्र का देना बैंक अपने कारोबार को अगले तीन सालों में दोगुना करने की महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रहा है।
बैंक को पूरा भरोसा है कि कारोबार विस्तार के तहत नई शाखाएं खोलने से उसे अपना लक्ष्य हासिल करने में काफी मदद मिलेगी।
बैंक के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डी एल रावल से अभिजीत लेले और नीलाद्रि भट्टाचार्य ने उनकी रणनीति और मौजूदा वित्तीय संकट से निपटने के लिए किए जा रहे उपायों पर बात की। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश:
मौजूदा माहौल के मद्देनजर आपके लिए अगले तीन सालों में कारोबार को दोगुना करने के लक्ष्य को हासिल कर पाना आसान होगा?
बिल्कुल हो सकता है। मौजूदा वित्तीय संकट के प्रभावों से इनकार तो नहीं किया जा सकता है लेकिन इसके बाद भी कारोबार को बढाने के लिए हम इन तीन सालों में 400 नई शाखाएं खोलेंगे। देश के प्रत्येक भाग में हम अपनी शाखाओं को खोलने की योजना बना रहे हैं। इससे इन्क्रीमेंटल बिजनेस से हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति में खासी मदद मिलेगी।
हालांकि नई शाखाओं के खोलने के साथ ही हम अपने मौजूदा कारोबार को भी और मजबूती प्रदान करेंगे क्योंकि हम किसी भी कीमत पर बाजार में अपनी हिस्सेदारी नहीं खोना चाहते हैं। हम खासकर, ग्रामीण और अर्धग्रामीण क्षेत्रों में अपने कारोबार विस्तार की संभावनाओं को तलाशने पर ध्यान देंगे। मौजूदा बाजार को देखते हुए क्रेडिट में विविधता लाने की खासी जरूरत है।
अपने विकास को और गति देने के लिए पूंजी जुटाने की क्या योजनाएं हैं?
इसके लिए हमें 1,000 रुपये के इक्विटी कैपिटल की आवश्यकता होगी। अगले वित्त वर्ष में 500 करोड रुपये जुटाने की हमारी योजना है और उसके बाद अगले दो सालों के दौरान हमें और 500 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। चालू वित्त वर्ष में टायर-2 शहरों में हमने 500 करोड़ रुपये जुटाए हैं।
कारोबार के लिहाज से इस कठिन समय में आपका बैंक किसी खास क्षेत्र पर ध्यान दे रहा है?
बुनियादी स्तर पर अभी चार चीजें हैं जिस पर हम फिलहाल ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। ये हैं खर्च पर नियंत्रण, ग्राहकों की संख्या में बढ़ोतरी, गैर-निष्पादित धन को कम करने का हर संभव प्रयास और अपने कर्मचारियों की कार्यकुशलता में बढ़ोतरी करना।
गुजरात में आपकी खासी पैठ है जहां पर वस्त्र और हीरे के कारोबार पर वित्तीय संकट का खासा प्रभाव पड़ा है। इस स्थिति से निपटने के लिए आप क्या कदम उठा रहे हैं?
जितने भी क्षेत्र हैं, वे सभी वित्तीय संकट की चपेट में आएं हैं। हीरा कारोबार में ऑर्डर बुक में कमी आने के बाद कुछ समस्याएं सामने आई हैं। इसके अलावा प्राप्तियों में काफी देरी हो रही है। तीसरी अहम बात यह है कि हीरा कारोबार में होने वाले नकदी केप्रवाह में असंतुलन की स्थिति पैदा हो गई है।
नतीजतन हमे इन खातों की पुनर्संरचना करनी पडी है। भारतीय रिजर्व बैंक के नए दिशानिर्देशों के तहत इनकी प्राप्तियों में बढ़ोतरी दी गई है। असंतुलन की स्थिति को दूर करने के लिए हम लघु अवधि के लिए वित्तीय मदद दे रहे हैं जिससे कि कार्यशील पूंजी पर किसी तरह का असर न पड़े। हमने सावधि ऋणों की भी पुनर्संरचना की है।
जहां तक वस्त्र उद्योग की बात है तो ऐसे निर्यातक जो केवल अमेरिका और यूरोपीय बाजारों पर निर्भर थे, उन पर मौजूदा वित्तीय संकट का काफी असर पडा है। हालांकि कई वस्त्र निर्यातकों ने पिछले साल से ही पश्चिमी एशिया और एशिया के अन्य भागों में निर्यात को बढ़ाना शुरू कर दिया था। ये निर्यातक अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए घरेलू बाजार पर भी खासा ध्यान दे रहे हैं।
डेलीक्वेंसियों में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है, इसे दखते हुए आप गैर-निष्पादित धन से कैसे निपट रहे हैं?
हमने बकाया ऋणों की वसूली की प्रक्रिया को काफी कड़ा कर दिया है। हम ऐसे खातों की पुनर्संरचना कर रहे हैं जो दिसंबर के बाद गैर-निष्पादित धन की श्रेणी में आ गए हैं। दैनिक प्रक्रिया के तहत हमने प्रत्येक कार्यालय और क्षेत्र के लिए लक्ष्य निर्धारित किए हैं, खासकर ऐसे खातों के लिए जिसमें 25 लाख रुपये से ज्यादा की राशि है।
प्रत्येक अधिकारी को खास ग्राहकों की सूची दी गई है जिनके साथ अधिकारी को सिकी भी तरह के निर्णय लेने से पहले मिलना होगा। हर एक सप्ताह एक अधिकारी को खातों में संसोधन करने और उसी हिसाब से कार्य करने का निर्देश दिया है। इसका मकसद किसी भी अपात स्थिति से तुरंत निपटना है।
