मौजूदा आर्थिक संकट से उबरने में विकसित देशों को खासा वक्त लगेगा। लेकिन माना जा रहा है कि भारत चार से छह तिमाहियों से इससे मुक्ति पा लेगा।
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) के प्रबंध महानिदेशक रजत एम नाग के मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष के दौरान 7.5 फीसद की दर से विकास कर सकती है। लेकिन लंबे समय तक विकास के लिए भारत को महंगाई पर काबू करने के बजाय विकास दर को बरकरार रखने पर ध्यान देना चाहिए।
मौजूदा वित्तीय संकट का क्या प्रभाव पड़ेगा?
इस संकट से विकसित और विकासशील दोनों अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हो रही हैं। अगला साल काफी मुश्किल भरा होगा। चीन और भारत भी इसके बुरे प्रभाव से बच नहीं पाएंगे। लेकिन दूसरे मुल्कों के मुकाबले उनकी हालत अच्छी रहेगी और दोनों देश विकास करेंगे।
यह अलग बात है कि आर्थिक विकास की दर कम रहेगी। रियल एस्टेट की हालत तो हम देख ही चुके हैं, छोटे और मझोले उद्यमों की हालत भी खराब हो रही है। भारत में कपड़ा क्षेत्र पर तो मंदी का बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। इसी तरह आउटसोर्सिंग की भी हालत पतली है।
लेकिन असली चिंता तो अगले वित्त वर्ष में होगी, जब हालात और बिगड़ जाएंगे। अगले साल भारत की विकास दर 6 से 6.5 फीसद ही रहेगी। हालांकि एशिया इस वित्तीय संकट से जल्द उबर जाएगा। भारत और दूसरे एशियाई देशों में बैंकों की हालत भी अच्छी है।
जापान को छोड़ दिया जाए, तो एशियाई बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्ति 5 फीसद से भी कम है।
ऐसी सूरत में भारत के बारे में आपके क्या अनुमान हैं?
भारत में महंगाई की दर काफी कम हुई है। जिंस की कीमतें भी कम हो रही हैं। फिर भी मुझे नहीं लगता कि कीमतों के बारे में सोचना नीति निर्माता कम कर देंगे। यह बात दीगर है कि कीमतों के मामले में पहले की तरह मुश्किलें नहीं रह गई हैं।
मुझे लगता है कि संतुलन बनाए रखने के लिए भारत सरकार को विकास दर पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। गर्मियों के मौसम में बेशक महंगाई बड़ी चुनौती थी, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। जहां तक मेरा खयाल है, महंगाई से ज्यादा अहम विकास दर है। इसके लिए राजस्व और मौद्रिक पहलुओं पर ज्यादा काम करना होगा।
मौजूदा संकट से निपटने में भारत को कितना वक्त लगेगा?
मौजूदा आर्थिक संकट से निपटने में भारत को 4 से 6 तिमाहियां लग सकती हैं। ज्यादा अहम मुद्दा गरीबी है।?गरीबों के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों तरह की नीतियों पर ध्यान देना होगा।
क्या एडीबी भारत और दूसरे एशियाई देशों की मदद के लिए कोई योजना बना रहा है?
हां, कुछ देशों से बातचीत चल रही है। सभी देशों की जरूरतें अलग हैं, कुछ को तुरंत मदद की दरकार है। हम छोटे और मझोले उद्योगों को वित्तीय मदद देने पर विचार कर रहे हैं। इन क्षेत्रों को वैसे भी कर्ज मुश्किल से मिल रहा है।
इसलिए हम सरकारी एजेंसियों से बातचीत कर रहे हैं, ताकि एसएमई को मुश्किलों से उबारा जा सके।हम भारत की मदद के लिए भी तैयार हैं और इसके लिए योजना बना रहे हैं। भारत को हर साल लगभग 200 करोड़ डॉलर का कर्ज दिया जाता है और आगे जाकर इसमें इजाफा हो सकता है।
मौजूदा संकट से निपटने के लिए भारत के कदम क्या पर्याप्त हैं?
अगर भारत के राजस्व संकट को देखते हुए ये कदम पर्याप्त ही कहलाएंगे। मौद्रिक नीति में ढिलाई के लिए सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने सही कदम उठाए हैं।इसके उलट अमेरिका और यूरोप में ऐसे कदम अब रुक रहे हैं।
रियल्टी क्षेत्र पर असर दिख रहा है। अब मामला मांग बढ़ने पर ही निर्भर करता है। मिसाल के तौर पर भारत के लिए आउटसोर्सिंग और वस्त्र उद्योग में मांग काफी अहम है।