इस वर्ष दीवाली के हफ्ते में जब रिकॉर्ड स्तर पर खरीदारी हुई थी तब भी भी नकदी का प्रवाह कमजोर बना रहा है। एसबीआई रिसर्च में कहा गया है कि इससे पता चलता है कि डिजिटल तरीके से भुगतान में जबरदस्त उछाल आई है। डिजिटल भुगतानों में यूपीआई का जमकर इस्तेमाल हो रहा है जिसको लेकर रिसर्च में सुझाव दिया गया है कि इसे रियल टाइम नीति बनाने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।
एसबीआई समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्यकांति घोष ने कहा, ‘प्रवाह में मौजूद नकदी के ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि दिवाली के दौरान रिकॉर्ड स्तर पर खरीदारी होने के बावजूद यह 1.25 लाख करोड़ रुपये के साथ पिछले वर्ष से एक समान स्तर पर बना हुआ है। 2014 के बाद से ऐसा पहली बार हुआ है।’
अध्ययन में पाया गया कि इस वर्ष दिवाली के दौरान प्रवाह में मौजूद नकदी 43,900 करोड़ रुपये रही जो कि पिछले वर्ष के 43,800 करोड़ रुपये के मुकाबले कमोबेश समान स्तर है। अध्ययन में कहा गया है कि डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में भारतीय उपभोक्ता अब बेहतर तकनीकी प्लेटफॉर्म के तौर पर यूपीआई को तबज्जो दे रहे हैं जिसमें पीओएस मशीन के इस्तेमाल संबंधी कोई झंझट नहीं है।
अक्टूबर 2021 में यूपीआई के जरिये 3.5 अरब लेनदेन किए गए जिसका मूल्य 6.3 लाख करोड़ रुपये था। यह सालाना आधार पर लेनदेन की संख्या के लिहाज से 100 फीसदी और मूल्य के लिहाज से 103 फीसदी की उछाल दर्शाता है।
यूपीआई के जरिये होने वाला लेनदेन 2017 के बाद से 69 गुना बढ़ चुका है जबकि डेबिट कार्ड से होने वाले लेनदेन सपाट स्तर पर बना हुआ है जिससे संकेत मिलता है कि लोग लेनदेन के लिए यूपीआई से भुगतान को प्रमुखता दे रहे हैं।
अध्ययन में कहा गया है, ‘भारतीय उपभोक्ता अब एक बटन को क्लिक करते ही भुगतान की सहूलियत को प्रमुखता दे रहे हैं। इन यूपीआई सौदों के इस्तेमाल के परिणाम स्वरूप जिस बड़ी मात्रा में सूचनाएं एकत्रित हो रही हैं उसका उपयोग रियल टाइम नीति और साक्ष्य आधारित नीति बनाने के लिए परिवर्तनकारी संसाधान के तौर पर हो सकता है।’
अध्ययन में कहा गया है कि भुगतान में सहूलियत मुख्य मुद्दा बनने से भविष्य में बैंकों द्वारा वित्तीय मध्यस्थ को नए सिरे से परिभाषित करने के लिए कृत्रिम बुद्घिमत्ता और मशीन लर्निंग के इस्तेमाल के जरिये बड़े पैमाने पर डेटा का उपयोग किया जाएगा। इसके परिणामस्वरूप क्लाउड प्लेटफॉर्मों में और भी बड़े पैमाने पर निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
इसके लिए केंद्रीय बैंक और सरकार दोनों की तरफ से नियामकीय हस्तक्षेप की भी आवश्यकता पड़ सकती है ताकि डेटाबेस का उपयोग और भंडारण किया जा सके और इसका उपयोग रियल टाइम नीति तैयार करने के लिए भी किया जा सके।
नोटबंदी के बाद प्रवाह में मौजूद नकदी जीडीपी के 8.7 फीसदी तक पहुंचने के बाद दोबारा से बढ़ी है। हालांकि, आंशिक तौर पर ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी में 7.3 फीसदी का संकुचन आया था। चालू वित्त वर्ष में भी इसका प्रभाव नजर आता है।
