सर्वोच्च न्यायालय ने आज अपने एक आदेश में केंद्र सरकार की 2019 की उस अधिसूचना को सही करार दिया, जिसमें बैंक का कर्ज नहीं चुकाने वाली कंपनियों के प्रवर्तकों की निजी गारंटी भुनाने का आदेश दिया गया था। शीर्ष अदालत के फैसले के बाद बैंक ऐसे कई भारतीय प्रवर्तकों के खिलाफ व्यक्तिगत दिवालिया का मामला दायर कर सकते हैं, जिनकी कंपनियां कर्ज समाधान के लिए राष्ट्रीय कंपनी विधि पंचाट (एनसीएलटी) में भेजी गई हैं।
आईबीसी का गठन 2016 में किया गया था और भारत सरकार ने नवंबर, 2019 में आईबीसी में संशोधन के जरिये ऋणदाताओं को चूक करने वालों की निजी गारंटी भुनाने का अधिकार भी दे दिया था। ऋणदाताओं ने एनसीएलटी के पास भेजी गई भूषण स्टील, भूषण पावर ऐंड स्टील, पुंज लॉयड और रिलायंस कम्युनिकेशंस जैसी कई कंपनियों की निजी गारंटी भुना ली थीं। इन सभी कंपनियों ने बैंकों का कर्ज नहीं चुकाया था। बैंकों ने जब निजी गारंटी भुनानी शुरू कीं तो कुछ प्रवर्तक देश भर के उच्च न्यायालयों में पहुंच गए। बाद में बैंकों की याचिका आने पर सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे सभी मामले अपने पास मंगा लिए। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और एस रवींद्र भट्ट की अगुआई वाले पीठ ने अपने आदेश में कहा कि समाधान योजना को मंजूरी मिलने का मतलब यह नहीं है कि गारंटी के अनुबंध के तहत निजी गारंटर की देनदारी अपने आप खत्म हो जाएगी। अदालत ने कहा, ‘मूल लेनदार को अनैच्छिक प्रक्रिया जैसे कानूनी प्रक्रिया द्वारा, दिवालिया प्रक्रिया आदि के द्वारा यदि ऋणदाताओं की देनदारी से मुक्त कर दिया जाए तो भी गारंटर की ऋणदाता के प्रति देनदारी खत्म नहीं होती।’ यह कानून 1 दिसंबर, 2019 से लागू किया गया है और उन सभी मामलों में लागू होगा, जिनमें उस तारीख के बाद गारंटी भुनाई गई है।
ऋणदाताओं ने कहा कि आज के आदेश के बाद उन्हें चूक करने वाले प्रवर्तकों से बकाया वसूलने में आसानी होगी। भारतीय स्टेट बैंक के प्रबंध निदेशक (जोखिम प्रबंधन और दबाव वाली संपत्तियां) स्वामीनाथन जानकीरमण ने कहा ने अदालत ने निजी गारंटी भुनाए जाने को संवैधानिक रूप से वैध बताया है। उन्होंने कहा, ‘हालांकि इससे कितनी वसूली हो पाएगी यह कहना कठिन है क्योंकि गारंटी देने वालों की शूद्घ हैसियत के हिसाब से यह रकम अलग-अलग होगी। (साथ में अभिजित लेले और रुचिका चित्रवंशी)