केंद्र सरकार कर्ज की किस्त टाले जाने की अवधि खत्म होनेे के बाद बैंकों की बैलेंस सीट पर कर्ज के भुगतान के असर का आकलन करके सरकारी बैंकों के पुनर्पूंजीकरण का खाका तैयार करेगी। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, ‘सरकारी बैंकों में पुनर्पूंजीकरण का अनुमान लगाना अभी जल्दबाजी होगी। नियामक द्वारा बैंकों के कर्ज की किस्त टाले जाने का प्रावधान अभी चल रहा है और कर्जदाताओं के बही खाते पर इसका असल असर इस प्रावधान के खत्म होने के बाद नजर आएगा। उसके बाद ही हम देखेंगे कि इन कर्जों के गैर निष्पादित संपत्ति (एनपीए) में बदल जाने की कितनी संभावना है।’
भारतीय रिजर्व बैंक ने मार्च में सभी सावधि कर्ज की किस्तों का भुगतान 1 मार्च से 31 मई तक टालने की अनुमति दी थी, जिसे बाद में बढ़ाकर 31 अगस्त तक कर दिया गया। पिछले महीने रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की योजना जरूरी हो गई है और उन्होंने बैंकों से कहा था कि वित्तीय व्यवस्था में लचीलापन बनाए रखने के लिए वे अग्रिम में धन लें।
पिछले महीने भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से जारी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के मुताबिक रिजर्व बैंक द्वारा छूट दिए जाने के बाद कर्ज लेने वाले करीब आधे ग्राहकों ने अपने कर्ज की किस्त टाले जाने का विकल्प चुना। किस्त टालने की छूट में सरकारी बैंकों की हिस्सेदारी 62 प्रतिशत है, जबकि निजी बैंकों की हिस्सेदारी 29 प्रतिशत है।
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि यह नियामक के फॉरबियरेंस के अगले फैसले पर भी निर्भर है। सरकार ने रिजर्व बैंक से अनुरोध किया है कि वह बैंकों को कर्ज के एकमुश्त समाधान की अनुमति दे, जिससे कि कंपनियों को देशबंदी के असर से निपटने में मदद मिले।
बैंकों को अपने बही खाते पर दबाव से निपटने या कर्ज देने की अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए के लिए पूंजी की जरूरत है। दबाव का असर साल की दूसरी छमाही में नजर आएगा, वहीं तत्काल पूंजी बढ़ाने की जरूरत नहीं होगी क्योंकि आर्थिक गतिविधियों के रफ्तार पकडऩे और कोविड-19 के पहले के स्तर पर आने में कुछ वक्त लगेगा। गैर खाद्य कर्ज की वृद्धि दर जून महीने में सुस्त होकर 6.7 प्रतिशत रह गई, जो एक साल पहले 11.1 प्रतिशत थी।
इंडियन बैंक एसोसिएशन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, ‘दबाव की स्थिति साफ नहीं है क्योंकि किस्त टालने के असर का मूल्यांकन होना है। असर असर दूसरी छमाही में कॉर्पोरेट्स के परिणामों में नजर आएगा। यह इस पर भी निर्भर करेगा कि रिजर्व बैंक किस तरह के पुनर्गठन की अनुमति देता है।’ अभी सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से कहा है कि वे बाजार से धन उठाएं, जिससे कि पीएसबी मे सरकार की हिस्सेदारी कम हो सके, जो पहले ही कुछ बैंकों में 90 प्रतिशत से ऊपर हो गई है। बाजार नियामक प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) सरकारी बैंक प्रमोटर की हिस्सेदारी 2 साल के भीतर घटाकर 75 प्रतिशत करें।
