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  बैंक  बीमा उत्पाद बेचने में बैंकएश्योरेंस चैनल पिछड़ा
बैंक

बीमा उत्पाद बेचने में बैंकएश्योरेंस चैनल पिछड़ा

बीएस संवाददाताबीएस संवाददाता—March 21, 2008 11:55 PM IST
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भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) का 9 सार्वजनिक बैंकों, 10 सहकारिता बैंकों, 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और 1 निजी बैंक के साथ गठजोड़ है।


बावजूद इसके वित्त वर्ष 2007-08 के अंत तक कंपनी के नए व्यवसाय में बैंकएश्योरेंस का योगदान सिर्फ 3.16 प्रतिशत ही रहा। एलआईसी की इस वर्ष की कुल प्रीमियम आय 20,964.57 करोड़ रुपए में से बैंकएश्योरेंस से 662.85 करोड़ रुपए की ही प्रीमियम आय हुई। इस नए व्यावसायिक प्रीमियम को जुटाने में एजेंसी चैनलों की संख्या अधिक हैं। एलआईसी के 10 लाख एजेंट हैं, जिनमें से 6 लाख एजेंट पूरी तरह से सक्रिय हैं।


15 फरवरी, 2008 तक बैंकएश्योरेंस की एकल प्रीमियम पॉलिसियों से पहली प्रीमियम आय 313.51 करोड़ रुपए (1.86 प्रतिशत) थी, जबकि यही आय आम प्रीमियम पॉलिसियों से 208.6 करोड़ रुपए (1.42 प्रतिशत) थी। एलआईसी के बैंकएश्योरेंस भागीदारों ने कुल 5,39,086 पॉलिसियां बेचीं, जो 15 फरवरी 2008 तक बिकीं कुल पॉलिसियों का सिर्फ 1.95 प्रतिशत ही थीं।


मैकिन्जी रिपोर्ट- भारतीय जीवन बीमा 2012- और वाटसन व्याट के अध्ययन में संकेत दिया गया है कि किस तरह बैंकएश्योरेंस चैनल कम इस्तेमाल में आ रहा है।
मैकिन्जी अध्ययन में एक मुख्य चुनौती की ओर इशारा किया गया है- वैकल्पिक चैनलों का कम इस्तेमाल, खासतौर पर बैंकएश्योरेंस में, जो कि भारतीय ग्राहकों का पसंदीदा चैनल है। मैकिन्जी अध्ययन में कहा गया है, ‘वर्तमान बैंकएश्योरेंस की सार्वजनिक बैंक में बिक्री दर सिर्फ 0.5 प्रतिशत, निजी भारतीय बैंकों में 1-2 प्रतिशत और विदेशी बैंकों में 2-4 प्रतिशत है, जो अंतरराष्ट्रीय मानदंड के मुकाबले काफी कम है।’


कुछ निजी बीमा कंपनियां जो कि बैंकएश्योरेंस का बेहतर इस्तेमाल कर रही हैं, उनमें एसबीआर्इ्र लाइफ इंश्योरेंस, आईसीआईसीआर्इ्र प्रूडेंशियललाइफ इंश्योरेंस और एचडीएफसी स्टैंडर्ड लाइफ शामिल हैं। मैकिन्जी में सहयोगी भागीदार अनु मडगांवकर का कहना है, ‘ये बैंक अपनी सहयोगी बैंक शाखाओं का इस्तेमाल काफी बेहतर तरीके से कर रहे हैं।’


स्टेट बैंक और अन्य सहयोगी बैंकों की कुल 14,500 शाखाएं हैं, पर इनमें से सिर्फ 8000 शाखाओं का ही फायदा बैंकएश्योंरेंस के लिए एसबीआई्र लाइफ इंश्योरेंस को मिल रहा है। इस वर्ष में जनवरी 2008 तक कंपनी को कुल 3,350 करोड़ रुपए की प्रीमियम आय हुई थी और इसमें एजेंसी चैनलों और बैंकएश्योरेंस दोनों ने बराबर भागीदारी निभाई।


छोटी बीमा कंपनी बिड़ला सन लाइफ ने भी बैंकएश्योरेंस के लिए सिटी बैंक से गठजोड़ बनाया और अप्रैल-दिसंबर 2007 के दौरान नए व्यावसायिक प्रीमियम से उसे 1,097 करोड़ रुपये की आय प्राप्त हुई। इस कुल आय में बैंकएश्योरेंस का योगदान लगभग 274 करोड़ रुपए (या 25 प्रतिशत से अधिक) रहा। वाटसन व्याट अध्ययन के मुताबिक भारतीय जीवन बीमा उद्योग में बैंकएश्योरेंस के द्वारा औसतन नए व्यावसायिक प्रीमियम आय प्रति कंपनी सिर्फ 319 रुपए है।


दुनियाभर में बैंकएश्योरेंस तीन मुख्य कारणों से बढ़ रहा है, बैंक उत्पादों के आकर्षण के साथ सरल उत्पाद, बड़ा-बाजार लक्षित और सबसे महत्त्वपूर्ण वैकल्पिक चैनलों के लिए नियामक सहायता।यूरोप में बैंकएश्योरेंस मॉडल की जड़े हैं और यही वजह भी है कि निजी क्षेत्र की बेहतरीन बीमा कंपनियों के विदेशी भागीदारों में यूरोपीय या यूरोप में उनकी (प्रूडेंशियल, स्टैंडर्ड लाइफ, आलियांज, कार्डिफ की) उपस्थिति अधिक है। यही भागीदार भारतीय बैंकों में बीमा के लिए भी इस्तेमाल हो सकते हैं।


लेकिन वाटसन व्याट के अध्ययन के मुताबिक, ‘बैंक-ग्राहक संबंधों की गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है और अधिकतर बैंकों में सीआरएम की कमी के चलते बीमा पॉलिसी बेचने के बाद संबंधों को सुधारने संबंधी शुरुआत करना भी मुश्किल है।”सार्वजनिक बैंको का यह सबसे बड़ा सच है, जो देशभर के लगभग 90 प्रतिशत ग्राहकों से जुड़े हुए हैं।’


एलआईसी के बैंकएश्योरेंस के कार्यकारी निदेशक एस के रॉय इस बात से इत्तफाक नहीं रखते, ‘यह एक गलत राय बनी हुई है कि सार्वजनिक बैंक बैंकएश्योरेंस को लेकर ढीले पड़े हुए हैं। निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों का निजी बैंकों से निर्दिष्ट अनुबंध है। निजी बीमा कंपनियों में बिक्री का जिम्मा कर्मचारियों पर होता है, जबकि एलआईसी के मामले में हमारा बैंकों (सार्वजनिक बैंकों) से इस तरफ का कोई अनुबंध नहीं है। लेकिन ये तो बैंक के कर्मचारी हैं जो बिक्री का जिम्मा ले लेते हैं।’


वाटसन व्याट बीमा कंसल्टेंसी (भारत कार्यालय) के वितरण व्यवसाय के प्रबंध निदेशक आर कृष्णामूर्ति का कहना है, ‘अपनी संभावनाओं के मुकाबले बैंकएश्योरेंस में भारत में आगे भी कमी दर्ज की जाएगी, जब तक कि बैंकों की ओर से पॉलिसी बिक्री के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण कदम नहीं उठाए जाएंगे।’


मैकिन्जी के मडगांवकर के अनुसार, ‘बीमा कंपनियों को इसके लिए एक आसान उत्पाद बिना लाभभागी के बनाना होगा, जो ग्राहक की समझ में आसानी से आ जाए। बैंकों और बीमा कंपनियों के बीच एक समान प्रणाली होनी चाहिए, ताकि ग्राहक जो बैंक से पॉलिसी लेता है, वह किसी भी समय अपनी पॉलिसी की स्थिति, कंपनी की शाखा में जमा कराए गए प्रीमियम की जानकारी, का पता लगा सके। एक ग्राहक एजेंट से भी सवाल पूछता है, इसलिए बैंक और बीमा कंपनी को सवालों के जवाब देने के लिए एक जैसी कार्य प्रणाली रखनी चाहिए।’


एक बड़ी बीमा कंपनी के बैंकएश्योरेंस प्रमुख ने बताया कि हर एक बैंक के लिए विशेष तौर पर उत्पाद तैयार करना मुमकिन नहीं है। जबकि सभी बैंकएश्योरेंस भागीदारों के लिए एक उत्पाद बनाना मुमकिन है।तकनीकी आधार पर सिर्फ कॉरपोरेशन बैंक ने ही कोर बैंकिंग सॉल्यूशन अपनाया है, इसलिए विशेषज्ञों का मानना है कि बीमा कंपनियों और बैंकों के बीच बिना अड़चन एकीकरण नामुमकिन है।


बैंकएश्योरेंस प्रारुप बनाम एजेंसी चैनल


बैंकएश्योरेंस फायदे का सौदा : बैंकएश्योरेंस से बीमा कंपनी की लोगों तक अपनी पहुंच बनाने की लागत कम हो जाती है। जैसे कि एजेंसी चैनल में बीमा कंपनियों को काम के लिए एजेंट को नियुक्त करना पड़ता है, उन्हें प्रशिक्षण देना पड़ता है, उनके प्रदर्शन का प्रबंध करना पड़ता है, उनके प्रदर्शन पर नजर रखनी पड़ती है, अपनी शाखाएं खोलनी पड़ती हैं। लेकिन बैंक की अपनी शाखाएं और जन संपर्क प्रबंधक होते हैं, जिनका इस्तेमाल बीमा बेचने में किया जा सकता है। इससे कंपनी की लागत भी कम हो जाती है।


कम कमिशन : बैंकएश्योरेंस भागीदार का अधिक से अधिक कमिशन 40 प्रतिशत होता है, जिसमें एक प्रीमियम पॉलिसी पर दो प्रतिशत अतिरिक्त बोनस दिया जाता है। यह किसी भी एजेंट को पहले वर्ष दिए जाने वाले लगभग 45 प्रतिशत से कम ही है।


वाटसन व्याट अध्ययन में बताया गया है कि भारत में बैंकएश्योरेंस पॉलिसियां काफी बड़ी संख्या में लैप्स होते हैं, जिसकी बड़ी वजह ग्राहकों के साथ संपर्क साधने में दिलचस्पी में कमी को माना गया है। औसतन एक महीने में 5 से भी कम पॉलिसी बीमा-लिंक बैंक कर्मचारी निकाल पाते हैं।


निजी क्षेत्र के बैंक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तुलना में बेहतर कारोबार कर रहे हैं: हालांकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक सरकारी मुआवजा पॉलिसियों द्वारा चलाए जाते हैं। लेकिन निजी क्षेत्र के बैंकों और विदेशी बैंकों में बीमा पॉलिसी की बिक्री दर काफी अच्छी है, जिसके चलते संपर्क प्रबंधक को वित्तीय प्रोत्साहन भी दिया जाता है। इसलिए निजी बैंको में कारोबार की मात्रा सार्वजनिक क्षेत्रों में उनके प्रतिद्वंद्वियों से काफी अच्छी है।

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