नैतिक भावनाओं का सिद्धांत लिखते समय 1776 में एडम स्मिथ ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि दो सौ साल बाद नैतिकता और भावनाएं विपरीत धु्रवों पर होंगी।
अब भावनाओं से लोकप्रिय खबरें निकलती हैं और पूंजीवाद में नैतिकता का अभाव है। अब जो बचा है, वह है इस अर्थशास्त्री के सिद्धांत के टुकड़े। आज बाजार और कीमतों को सक्षम, अक्षम , बेतरतीब और व्यवस्थित माना जाता है।
दक्षता के जितने भी विशेषज्ञ हैं, वे आज गणित के क्रम को नहीं मानते। जो दक्षता में भरोसा नहीं रखते, वे बेतरतीब को समृद्धि मानते हैं। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अर्थव्यवस्थाओं के वित्त के नए मॉडल की परिभाषा दे रहे हैं। एक सार्वभौम वैज्ञानिक सिद्धांत की कोशिश की बजाए बाजार का एकीकृत मॉडल तलाशने की दिशा में काम नहीं हो रहा।
बाजार की इन सभी विशेषज्ञताओं में एक बात समान है। चाहे साफ तौर पर हो, या अस्पष्ट इन सभी में एक पैटर्न दिखता है। व्यवहारवादी मानव भावनाओं के मॉडल की कोशिश कर रहे हैं तो सिद्धांतवादी बाजार सूचना के मॉडल की। बेतरतीब के पैरोकार विषम घटनाओं का इंतजार करते हैं।
व्यवहारवादी कुछ सवाल भी उठाते है, जैसे- क्या मानव मस्तिष्क की गणना की जा सकती है। बेशक, मानव मस्तिष्क की गणना की कुछ सीमाएं होती हैं। इसी वजह से मानव को शुद्ध यथार्थवादी प्राणी नहीं माना जा सकता। व्यवहारवादी कहते हैं कि मानव मस्तिष्क दोनाें तरह की बात सोचता है। उनके अनुसार मानव भविष्य नहीं देख सकता पर अतीत और वर्तमान के आधार पर भविष्य का आकलन करता है।
यही कारण है कि जब बाजार शिखर पर होता है तो क्यों हम उसके सक्षम हिस्से में होते हैं। बाजार में जब तेजी का रुझान रहता, तो हमें सिर्फ सकारात्मकता दिखती है। जब बाजार गिरता जाता है तो हम सिर्फ नीचे की ओर देखते हैं। यहां तक कि हमें बाजार का निचला तल भी नजर नहीं आता। मानव मस्तिष्क का पक्षपाती नजरिया बताता है कि क्यों इंसान ज्यादा या कम प्रतिक्रिया करता है।
जब हम बाजार का शिखर नहीं देख सकते तो हम यह भी फैसला नहीं कर पाते कि बाजार कितना और कहां तक चढ़ेगा। यही कारण है कि हम कम प्रतिक्रिया करते हैं। जब हम बाजार के गिरावट के हिस्से में रहते हैं, तो हमें यह नजर नहीं आता कि आखिर कहां तक गिरेगा और हम अतिप्रतिक्रिया करते है। व्यवहारवादी इसे संवेग बताते हैं और उन्हें बाजार का शिखर नहीं दिखाई देता।
अगर हम बाजार के त्रिकोण की दो भुजाओं को देखें और इनमें एक को बाजार की बढ़त और दूसरी को गिरावट दर्शाने वाली मान लें तो हमको नीचा-ऊंचा-नीचा चक्र बनता दिखाई देता है। कोई भी यह देख सकता है कि कैसे गलतियां सकारात्मक और नकारात्मक ढलान पर केंद्रित हो जाती है। इसमें जो व्यवस्थित है वह सकारात्मक दिखता है और नकारात्मक का प्रदर्शन अनिश्चित और बेतरतीब होता है।
यह त्रिकोण यह भी समझाता है कि क्यों व्यवहारवादी, मौलिकतावादियों के आय अनुमानों को सकारात्मक आश्चर्य के तौर पर लेते है और जिसके आगे सकारात्मक अचरज होते जाते हैं। अप्रत्याशित आश्चर्य अतिविश्वास का सूचक है। यह इस चक्र का सकारात्मक रुझान है। बढ़त के इस चक्र को ज्यादा कारोबार, ताजा खबर और अतिमूल्य प्रतिक्रिया से समर्थन मिलता है।
इस चक्र के एक तरफ दक्षता है तो दूसरी तरफ इसे चुनौती देता सिद्धांत। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि मौलिकतावादी बॉन्ड की तरह शेयरों का चुनाव करते हैं। वे कहते हैं अच्छे शेयर अच्छी कंपनियों का भंडार है। वे नियम पर चलते है ंऔर मानते हैं कि कि तेजी के चक्र में सकारात्मक चीजों का ध्रुवीकरण आरामदेह होता है।
यही कारण है कि जब भावनाएं ऊंचे दर्जे की होती है तो रिटर्न कम हो जाता है। एक वजह यह भी है कि क्यों मनोवैज्ञानिक विकल्प कारोबार की तुलना किसानों से करते है। क्योंकि किसान नकदी फसल के साथ ज्यादा जोखिम लेता है और गिरावट से सुरक्षा करता है।
इसी त्रिकोण से यह भी समझा जा सकता है कि जब बाजार गिरा होता है तो क्यों बायबैक (कंपनियों द्वारा अपने शेयरों की पुनर्खरीद)बढ़ जाते हैं और क्यों ज्यादा प्रतिक्रिया की जगह कम प्रतिक्रिया होती है। हालांकि बायबैक बेहतर प्रदर्शन करते हैं, पर निवेशकों की उन पर कम ही नजर होती है। लाभांश मिलना या छोड़ देना भी कम या ज्यादा प्रतिक्रिया का नमूना है।
