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बीमा कंपनियों के नुकसान की वजह बने एजेंट

Last Updated- December 11, 2022 | 2:26 AM IST

भारतीय बीमा उद्योग नौकरी में बदलाव की समस्या को नियंत्रित करने का समाधान अभी तक नहीं ढूंढ सका है।
भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार चार में से एक एजेंट इस पेशे को छोड़ कर जा रहे हैं। इससे न केवल बिना देख रेख वाली पॉलिसियों की संख्या बढ़ी है बल्कि उद्योग को 250 करोड से लेकर 300 करोड़ रुपये तक का नुकसान हो रहा है।
हाल में जारी किए गए नियामक की साल 2007-08 के रिपोर्ट के अनुसार साल 2007-08 में व्यक्तिगत एजेंसियों की संख्या में लगभग 26 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। साल 2007-08 की शुरुआत में यह 19.93 लाख थी जो साल के अंत तक बढ़ कर 25.20 लाख हो गई।
निजी बीमा कंपनियों ने 49 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की जबकि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम के एजेंटों की संख्या में  8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। भारतीय जीवन बीमा के एजेंटों की संख्या 11.93 लाख रही जबकि सभी निजी जीवन बीमा कंपनियों के एजेंटों की संख्या 13.26 लाख थी।
नियुक्त किए कुल एजेंटों की संख्या 10.05 लाख थी जबकि साल 2007-08 में पेशे से 4.80 लाख एजेंटों को हटाया गया। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, इसके परिणामस्वरूप उद्योग को 250 से 300 करोड रुपये का घाटा हुआ।
उन्होंने कहा कि नियुक्ति की प्रक्रिया, जिसमें ट्रेनिंग भी शामिल है, में बीमा कंपनियों को पैसे खर्च करने होते हैं। एक एजेंट पर होने वाला औसत खर्च लगभग 5,000 रुपये का होता है। जीवन बीमा उद्योग के अनुमानों के अनुसार साल 2007-08 में चार एजेंटों में से एक ने यह पेशा छोड़ दिया जिससे कंपनियों को सम्मिलित तौर पर 250 से 300 करोड़ रुपये का घाटा हुआ।
इसके अतिरिक्त, पेशा छोड़ कर जाने वाले एजेंटों द्वारा लाई गई पॉलिसियों की देख रेख करने वाला कोई नहीं रहा जिससे पॉलिसियों की रद्दीकरण की संख्या में इजाफा हुआ। निजी क्षेत्र की जीवन बीमा कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बीमा पॉलिसी बेचना एक कठिन काम है।
इसके बावजूद हमें योजनाएं बेचनी होती हैं और एजेंट तय लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दबाव में काम नहीं करना चाहते हैं। यह उद्योग सबसे अच्छी पारिश्रमिक देने की कोशिश कर रहा है। इन एजेंटों को अपने साथ बनाए रखने के लिए कंपनियां हॉलिडे पैकेज की पेशकश भी कर रही है।
उन्होंने बताया कि जीवन बीमा एजेंटों को दिया गया कमीशन साल 2007-08 में बढ़ कर 14,704.30 करोड़ रुपये हो गया जबकि पहले यह 12,258.99 करोड रुपये था।

First Published - April 24, 2009 | 8:08 AM IST

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