कोलैटरल डेट ऑब्लिगेशन (सीडीओ) संकट के बाद सभी क्वांट (निवेश प्रबंधन और शेयर कारोबार से जुड़े विशेषज्ञ जो गणित का इस्तेमाल करते हैं) तेजी से एक साथ मिल गए हैं जैसे नैतिक रूप से संवेदनहीन जटिल नृत्य करने वाले एक दूसरे का साथ देते हैं।
यह एक समझने योग्य धारण है लेकिन है अनुचित। अगर अधिकांश नहीं तो कुछ क्वांट सूचीबध्द प्रतिभूतियों और उनके डेरिवेटिव के आर्बिट्रेज मूल्य अंतर को पाने की दिशा में गणित का इस्तेमाल करने में अपना समय लगाते हैं।
दुर्भाग्यवश, परिमाणात्मक कारोबारी तरीकों के बारे में गलत धारणाएं सभी गणितीय धारणाओं को लागू करने में मनोवैज्ञानिक बाधा की तरह काम करती हैं। पोर्टफोलियो निर्माण में गणित का कुछ इस्तेमाल करना आवश्यक भी होता है।
जिस किसी के पास एक निवेश पोर्टफोलियो है उसे अल्फा, बीटा और खरीदे गए शेयरों के सी-संबंधों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। किसी भी शेयर की खरीदारी करने से पहले उसे अपने कुल पोर्टफोलियो के नजरिये से आंकिए। इससे आप बेहतर आवंटन कर पाएंगे।
थोड़ा-बहुत जांच परख कर लेने से कोई निवेशक अच्छे नजरिये वाला परिमाणात्मक कारोबारी नहीं बन जाता। ऐसा भी देखा गया है कि कोई व्यक्ति जिसको मूलभूत जानकारियां हैं वह कम जोखिम उठा कर उच्च प्रतिफल प्राप्त करता है। प्रत्येक निवेशक को कुछेक सवालों के जवाब जानने चाहिए।
क्या खरीदे गए शेयर बाजार सूचकांक के साथ, उसके प्रतिकूल या अपने हिसाब से चल रहे हैं (बीटा)? क्या इसका बिना किसी पर निर्भर किए इसका अपना प्रतिफल अधिक है (अल्फा)? खरीदे गए दूसरे शेयरों के साथ इसका क्या रिश्ता है? बाजार सूचकांक की तुलना में पूरे पोर्टफोलियो का प्रदर्शन कैसा है।
बैलेंस शीट को समझने की अपेक्षा आपके अपने पोर्टफोलियो के बारे में उपरोक्त जानकारियां विस्तार से जानना आसान है। कुछ ऐसे मुफ्त के प्रोग्राम हैं जो इस प्रकार की गणनाएं करते हैं और इसका सिध्दांत कोई रॉकेट-विज्ञान जैसा भारी-भरकम भी नहीं है। यह सांख्यिकीय विश्लेषण किसी पोर्टफोलियो का तार्किक विस्तार भर है जिसका इस्तेमाल कारोबार या फिर दीर्घावधि के निवेशों के लिए किया जा सकता है। इसे किसी भी निवेश या कारोबारी दर्शन के ऊपर रखा जाना चाहिए।
सैध्दांतिक संस्थापनाएं इतनी कठिन भी नहीं हैं। एक-दूसरे से विपरीत संबंध रखने वाले समय अगर पोर्टफोलियो में शामिल है तो इनसे प्रतिफल बिना अधिक घटे जोखिम कुछ कम हो जाता है। वैसे शेयर जिनकी अल्फा अधिक होती है वे बाजार के गिरावट के दिनों में भी भी अच्छा प्रतिफल देते हैं। जिन शेयरों के बीटा अधिक होते हैं उनका प्रदर्शन बाजार गतिविधियों की तुलना में बढ़ा-चढ़ा होता है।
क्वांट का जादू इस बात से दिखता है कि शेयरों का विवेकपूर्ण मिश्रण कम जोखिम उठाने के साथ बेहतर लाभ दे सकता है। अगर आप एक बार इस सिध्दांत को समझ जाते हैं तो अच्छे शेयरों को समझने में पहले से पड़े आंकड़ों को समझने की अपेक्षा थोड़ी अधिक मशक्कत करनी होती है।
इनसे शेयरों की चयन-क्षमता प्रभावित नहीं होती है। इनसे सही शेयरों को मिश्रित करने और मिलान करने की क्षमताओं में इजाफा ही होता है। परिणाम में फर्क वैसा ही होता है जैसा एक कुशल खाना पकाने वाले और शौकिया खाना पकाने वाले एक तरह के मसालों का इस्तेमाल कर खाना पकाते हैं। पोर्टफोलियो के सिध्दांतों को जानने वाला एक निवेशक ज्यादा प्रतिफल पाएगा।
अब सवाल उठता है कि ज्यादातर कारोबारी या निवेशक इसका इस्तेमाल क्यों नहीं करते? इसका उत्तर मनोवैज्ञानिक प्रभुता में छुपा है। दिलचस्प बात यह है कि आधारभूत सांख्यिकीय तकनीके भारत में विशेष रूप से इसलिए प्रयोग में लाई जाती हैं क्योंकि उनका इस्तेमाल आम तौर पर नहीं किया जाता है।
कुछ निवेशक या कारोबारी जो इफिशिएंट फ्रंटियर गणनाएं या सामान्य अल्फा-बीटा विश्लेषण और कैपिटल एसेट प्राइसिंग माडल का इस्तेमाल करते हैं आमर्तार से भारत में अधिक प्रतिफल प्राप्त कर पाते हैं।
उदाहरण के लिए, बैंकनिफ्टी, सीएनएक्सआईटी और निफ्टी के उचित अनुपात का कारोबार इनमें से किसी के भी सामान्य प्रतिफल को मात दे सकता है और जोखिमों को भी कर सकता है। अगर कोई निवेशक पोर्टफोलियो के मूलभूत विश्लेषण से अवगत हो जाता है तो वह किसी भी म्युचुअल फंड से जुड़े भविष्य के जोखिमों और प्रतिफल का विश्लेषण भी कर सकता है।