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MP Assembly Elections 2023: ‘सेमीफाइनल’ में भाजपा के आगे कांग्रेस चित, मगर शिवराज की चुनौती

चौहान को सीएम पद का उम्मीदवार नहीं बनाया गया पर उन्होंने प्रचार अभियान में कोई कसर नहीं छोड़ी

Last Updated- December 03, 2023 | 11:29 PM IST
MP Polls: Shivraj Chouhan in Bhopal

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में निर्णायक जीत का उत्साह कम होने के साथ ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का सामना कुछ कठिन चुनौतियों से होगा। इनमें सबसे बड़ी चुनौती तो यही होगी कि इन तीनों राज्यों में पार्टी के विधायक दल का नेता यानी मुख्यमंत्री कौन बनेगा?

भाजपा ने रणनीतिक वजहों से तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा किए बिना चुनाव लड़ा। इन तीनों राज्यों में से केवल एक मध्य प्रदेश में उसकी सरकार थी जिसका नेतृत्व शिवराज सिंह चौहान के पास है।

चौहान नवंबर 2005 में पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे और 2018 से 2020 के बीच की एक छोटी अवधि को छोड़ दिया जाए तो उन्होंने प्रदेश पर अबाध शासन किया है। पार्टी को 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस विधायकों में फूट के बाद वह दोबारा मुख्यमंत्री बने क्योंकि उनकी पार्टी को जरूरी बहुमत मिल गया था।

भाजपा को 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव हारना पड़ा था। वहां वसुंधरा राजे और रमन सिंह मुख्यमंत्री थे। भाजपा सूत्रों की मानें तो जहां राजे और सिंह को बिना किसी खास नुकसान के किनारे किया जा सकता है, वहीं चौहान के साथ ऐसा करना बहुत मुश्किल होगा।

चौहान को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भले ही नहीं बनाया गया लेकिन उन्होंने भाजपा के प्रचार अभियान का नेतृत्व करने में बहुत अधिक परिश्रम किया। संभव है कि संयुक्त बैठकों में केंद्रीय नेताओं ने उनकी अनदेखी यह संदेश देने के लिए की हो कि पार्टी की जीत की स्थिति में वापसी को वह हल्के में न लें।

परंतु अब हालात बदल गए हैं। 230 सीटों वाली प्रदेश विधानसभा में 163 सीटों पर जीत या बढ़त (खबर लिखे जाने तक) प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा का अब तक का दूसरा बेहतरीन प्रदर्शन है। इससे पहले 2003 में पार्टी को 173 सीटों पर जीत मिली थी। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इन चुनावों में पार्टी का मत प्रतिशत बहुत अधिक है। उसे 2003 में 42.5 फीसदी मत मिले थे जबकि बीस साल बाद 2023 में पार्टी का मत प्रतिशत 6.3 फीसदी बढ़कर 48.8 फीसदी हो गया है। यह स्थिति तब है जब मध्य प्रदेश पर बीते 18 सालों से एक ही दल और मुख्यमंत्री का शासन है।

2018 के पिछले विधानसभा चुनाव से अब तक पार्टी के मतों में 7.9 फीसदी का इजाफा हुआ है। उस समय भाजपा को मात्र 109 सीटें मिली थीं। कहा जा रहा है कि यह इजाफा महिला मतदाताओं की बदौलत हुआ है जो चौहान की प्रमुख योजनाओं में से एक लाड़ली बहना की लाभार्थी हैं।

नर्मदा जयंती के अवसर पर घोषित और 5 मार्च, 2023 को आधिकारिक तौर पर लॉन्च की गई लाड़ली बहना योजना के तहत 2.50 लाख रुपये से कम सालाना आय वाले परिवारों की 21 से 60 आयु वर्ग की महिलाओं को प्रति माह 1,250 रुपये की राशि प्रदान की जा रही है। इस वर्ष रक्षा बंधन के अवसर पर चौहान ने दावा किया कि इस राशि को समय-समय पर बढ़ाकर प्रति माह 3,000 रुपये तक किया जाएगा।

चौहान की कुछ समावेशी योजनाओं को जहां प्रशासनिक दिक्कतों और कथित भ्रष्टाचार के कारण नाकामी झेलनी पड़ी वहीं लाड़ली बहना योजना पर उन्होंने व्यक्तिगत निगरानी रखी। वह महिलाओं को एक वोट बैंक के रूप में तैयार करने के लिए प्रतिबद्ध नजर आए। उनकी यह योजना उसी तरह कामयाब साबित हुई जिस तरह 2015 में बिहार के चुनावों में नीतीश कुमार को शराबबंदी के कारण महिलाओं के एक तबके का समर्थन मिला था।

मतदान के एक दिन पहले सिंह ने कहा था कि एक करीबी लड़ाई में लाड़ली बहना ने हमारी राह के कांटे निकाल दिए हैं। इस बार पिछड़ा वर्ग भी बड़े पैमाने पर भाजपा के साथ नजर आया। चौहान खुद पिछड़ा वर्ग की एक जाति किरार से आते हैं।

सन 2013 के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रतिद्वंद्वी माने जाने वाले चौहान ने जीत के अवसर पर मोदी और डबल इंजन की सरकार को श्रेय दिया। अगर उन्हें केंद्र में ले जाया जाता है तो उन्हें कोई भारी भरकम मंत्रालय सौंपना होगा। एक ऐसे मंत्रिमंडल में इसकी कोई खास अहमियत नहीं होगी जहां अधिकांश मंत्रियों की अपनी पहचान ही नहीं है। चौहान की तकदीर का फैसला भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का यह आकलन करेगा कि लोकसभा चुनाव के पहले ऐसा कदम उठाने का क्या असर हो सकता है?

First Published - December 3, 2023 | 11:29 PM IST

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