Lok Sabha Elections 2024, Uttar Pradesh: साल 2019 के लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दमदार प्रदर्शन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाराणसी में बहुत बड़े अंतर से जीत में यह तथ्य दबकर रह गया था कि पूर्वांचल की कई प्रमुख सीटों पर बेहद करीबी अंतर से हार-जीत हुई थी। इस बार भी इन तमाम सीटों पर मुकाबला कड़ा हो सकता है।
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र का युवा अपनी उम्मीदें, खास कर सरकारी नौकरी का ख्वाब, पूरा नहीं होने से निराशा की गर्त में दिखाई दे रहा है। बहुजन समाज पार्टी का प्रभुत्व कम होने से विकल्प के तौर पर अनुसूचित जाति का एक वर्ग इस बार समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहा है। इससे वाराणसी के पड़ोसी जिलों की लगभग आधा दर्जन सीटों को लेकर भाजपा और अपना दल एवं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) जैसे उसके सहयोगी दलों की नींद उड़ी हुई है।
वाराणसी के करीब चंदौली सीट से केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय भाजपा तथा मिर्जापुर से अपना दल की अनुप्रिया पटेल ताल ठोंक रही हैं। पटेल भी केंद्र में मंत्री हैं। इसके अलावा, भाजपा के टिकट पर नीरज शेखर अपने पिता पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की पारंपरिक सीट बलिया से मैदान में हैं तो सुभासपा अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर घोसी सीट से चुनावी मैदान में डटे हैं।
पिछले लोक सभा चुनाव में सपा के साथ मिलकर लड़ी बसपा ने घोसी और गाजीपुर जैसी सीटों पर बड़े अंतर से जीत हासिल की थी। वाराणसी और मिर्जापुर में भाजपा और अपना दल (सोनेवाल) ने भी बहुत भारी अंतर से जीत हासिल की थी, लेकिन अन्य सीटों पर मुकाबला बहुत कड़ा रहा था।
उदाहरण के लिए चंदौली में सपा प्रत्याशी से मुकाबले में पांडेय की जीत मात्र 13,959 वोटों से हुई थी। इसी प्रकार बलिया से भाजपा के वीरेंद्र सिंह भी 15,519 मतों से जीते थे। उन्होंने भी सपा के सनातन पांडेय को हराया था। इस बार भाजपा ने वीरेंद्र का टिकट काटकर नीरज शेखर को मैदान में उतारा है, जबकि सपा ने फिर सनातन पांडेय पर भरोसा जताया है।
रॉबर्ट्सगंज में अपना दल (सोनेवाल) को जरूर 1,54,610 वोटों से जीत मिली थी। इस बार चुनाव में सपा ने यादवों के अलावा अन्य जातियों से अपने काफी उम्मीदवार चुने हैं। विशेष तौर पर उसने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) वर्ग से आने वाले नेताओं को भाजपा के मुकाबले खड़ा किया है। इनमें कई ऐसे हैं, जो पिछली बार भाजपा के साथ थे।
उदाहरण के तौर पर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट रॉबर्ट्सगंज सीट पर सपा ने छोटेलाल खरवार को टिकट दिया है, जिन्होंने 2014 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की थी। खरवार सोनभद्र जिले से भाजपा राष्ट्रीय परिषद के सदस्य भी रहे हैं। मिर्जापुर से पटेल के मुकाबले में सपा ने रमेश चंद बिंद को टिकट दिया है। वह भी 2019 के चुनाव में भदोही से भाजपा के टिकट पर जीत कर संसद पहुंचे थे।
यही नहीं, गाजीपुर से बसपा के सांसद अफजाल अंसारी भी इस बार सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। समाजवादी जन परिषद के साथ जुड़े वाराणसी के राजनीतिक कार्यकर्ता अफलातून देसाई ने कहा, ‘साल 2019 के विपरीत जब राष्ट्रवाद एक प्रमुख मुद्दा था इस बार के चुनाव में चर्चा जाति के ईद-गिर्द घूम रही है। कांग्रेस भी अब लाभार्थी वर्ग को लुभाने में भाजपा की बराबरी कर रही है इस क्षेत्र का परिणाम पहले से निर्धारित निष्कर्ष नहीं है।’
देसाई वाराणसी, मिर्जापुर और आसपास की सीटों के दलित बहुल गांवों में इंडिया गठबंधन के लिए प्रचार कर रहे हैं। मगर भाजपा प्रवक्ता केके शर्मा इससे इत्तेफाक नहीं रखते हैं। वह कहते हैं, ‘लोगों को प्रधानमंत्री की गारंटी पर बहुत भरोसा है क्योंकि उन्होंने काम कर दिखाया है और विपक्षी पार्टियों की गारंटी का परीक्षण नहीं किया गया है।’