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भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने एक अनूठी पहल करते हुए विभिन्न देशों के सत्ताधारी और विपक्षी राजनीतिक दलों को भारत के आम चुनावों को देखने के लिए आमंत्रित किया है जिससे कि वे सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनावी उत्सव में शामिल होकर पूरी प्रक्रिया को देख और समझ सकें।
ब्रिटेन की कंजरवेटिव और लेबर पार्टी, जर्मनी की क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स और द सोशल डेमोक्रेट्स और अमेरिका की डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन जैसी सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियों को भारत के लोकतंत्र का उत्सव देखने के लिए आमंत्रित किया गया है। पड़ोसी देश नेपाल की सत्ता में शामिल पांचों दलों को बुलावा भेजा गया है। समझा जाता है नेपाल की सत्ता से जुड़े इन दलों का झुकाव चीन की तरफ है।
भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और विदेश मामलों के प्रकोष्ठ के अध्यक्ष विजय चौथाईवाला ने कहा, ‘वर्ष 2024 के आम चुनाव में हम एक नया प्रयोग कर रहे हैं।’ अभी तक विभिन्न देशों की दो दर्जन से अधिक राजनीतिक पार्टियों को बुलावा भेजा गया है। हालांकि इस सूची में पड़ोसी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना का नाम नहीं है। सूची में अभी और भी नाम जुड़ सकते हैं।
निमंत्रण पत्र ईस्टर सप्ताह के दौरान भेजे गए हैं। भाजपा नेतृत्व यूरोपीय देशों के दलों की मंजूरी का इंतजार कर रहा है। अभी तक 15 राजनीतिक दलों ने भारत आने की पुष्टि कर दी है। उन्हें तीसरे और चौथे चरण (20 अप्रैल और 13 मई) के मतदान के दौरान पूरी चुनावी प्रक्रिया देखने के लिए बुलाया जाएगा।
पूर्व में भाजपा भारत में मौजूद दूसरे देशों के राजनयिकों को गुजरात अैर हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान मतदान प्रक्रिया दिखाने के लिए बुलाती रही है। ऐसा इस बार भी किया जाएगा। इस पहल का मकसद दुनिया को यह दिखाना है कि सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में चुनाव किस प्रकार संपन्न होते हैं।
ब्रिटेन के सांसद और पदम श्री पुरस्कार से सम्मानित बॉब ब्लैकमैन ने भारत में चुनावों को लोकतंत्र का सबसे बड़ा आयोजन करार देते हुए पिछले सप्ताह कहा था, ‘स्पष्ट रूप से भारतीय चुनाव एक बड़ा आयोजन है। दुनिया में इससे बड़ा कोई लोकतांत्रिक कार्यक्रम नहीं होता। मुझे लगता है कि आप 400 से अधिक सीटों का बहुमत पा सकते हैं। जब से हम सत्ता में आए हैं और भारत में भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता संभाली है तब से भारत और ब्रिटेन के बीच दोस्ती गहरी होती जा रही है।’
भाजपा भी स्वयं को केवल राजनीतिक खिलाड़ी तक सीमित नहीं रख रही है।
भाजपा विदेशों में भारतीय समुदाय को एकजुट करने के लिए व्यवस्थित तरीके से काम कर रही है। लगभग एक दर्जन देशों में ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी (ओएफबीजेपी) यानी पार्टी समर्थकों के समूह के साथ बातचीत, कार रैली एवं भारत और उनके रिहायश वाले देश में लगातार बैठकें आयोजित की जा रही हैं। ओएफबीजेपी प्रकोष्ठ दो तरह से कार्य करता है। उस देश में भी जहां भाजपा समर्थक लोग रहते हैं और उनकी पिछली जड़ों यानी भारत में भी। चौथाईवाला कहते हैं कि इससे देश में और देश के बाहर चुनावी माहौल तैयार करने में मदद मिलती है।
विभिन्न देशों में ओएफबीजेपी सेल के सदस्यों के बीच बैठकों, कार्यशालाओं और मतदाताओं तक भाजपा का संदेश पहुचाने के लिए रणनीति बनाने का दौर शुरू हो चुका है। समूह के एक लगभग एक हजार सदस्यों के अगले सप्ताह भारत आने की संभावना है। चौथाईवाला कहते हैं कि इनमें बहुत से ऐसे लोग हैं, जो स्वयं भाजपा के लिए काम करना चाहते हैं और हमारे यहां पंजीकृत भी नहीं हैं।
उनसे उन इलाकों के भाजपा कार्यालयों में खुद रिपोर्ट करने के लिए कहा गया है जहां से वे परिचित हैं ताकि उनका ज्यादा से ज्यादा सदुपयोग हो सके। ऐसे लोगों से ही भारत जाने के लिए कहा जा रहा है, जो कम से कम अपने समय में से दो सप्ताह या इससे अधिक समय राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हो सकें।
भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और विदेश मामलों के प्रकोष्ठ के अध्यक्ष विजय चौथाईवाला यह भी कहते हैं कि नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद संपर्क कार्यक्रम जोर पकड़ेगा।
हालांकि चुनावी प्रक्रिया की निगरानी केवल भाजपा समर्थक लोगों के लिए ही सीमित नहीं है। शिक्षाविदों के समूह, जिनमें बहुत से भारतीय मूल के भी हैं, चुनावी प्रक्रिया को जानने-समझने के लिए भारत आ रहे हैं।
मॉडर्न पॉलिटिक्स ऑफ साउथ एशिया, साउथ एशिया इंस्टीट्यूट हाइडलबर्ग यूनिवर्सिटी ऑफ जर्मनी में प्रोफेसर और चेयर प्रो. राहुल मुखर्जी के नेतृत्व में द पैनल फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इलेक्शन (आईपीएमआईई) -24 ने भारतीय निर्वाचन आयोग को पत्र लिखकर अपने इरादे के बारे में बता दिया है।
समूह का कहना है कि उसका उद्देश्य पूरी चुनावी प्रक्रिया को देखना है क्योंकि वे इस पर रिपोर्ट तैयार करते हैं और अपनी राय रखते हैं। हम स्वतंत्र रूप से काम करते हैं और चुनावी प्रक्रिया की निगरानी में अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करते हैं।
विदेश में भारतीय समुदाय खुद को भारत में होने वाले चुनाव से कैसे जोड़ पाता है, इस बारे में 2020 में आई ‘कारनेगी इंडोमेंट्स साउथ एशिया सेंटर की अमेरिकन इंडियन डायसपोरा का सामाजिक और रानीतिक रवैया’ पर आई बुनियादी रिसर्च रिपोर्ट में प्रकाश डाला गया है।
इसमें पाया गया है कि भारतीय-अमेरिकी समुदाय में भाजपा सबसे लोकप्रिय पार्टी है। इसमें 32 प्रतिशत ने भाजपा को पसंद किया है जबकि केवल 12 प्रतिशत ने कांग्रेस को अच्छा बताया है। हालांकि हर पांच में से दो भारतीय-अमेरिकी सदस्य ने किसी भी राजनीतिक दल के बारे में अपनी राय व्यक्त नहीं की। भारतीय-अमेरिकी समुदाय के दो-तिहाई लोगों ने न तो भाजपा के पक्ष में बात की और न ही उसका विरोध किया।
सर्वे तैयार करने वाले डॉ. देवेश कपूर कहते हैं, ‘भारत में भाजपा के बजाय मोदी के समर्थक अधिक हैं। जब उनसे नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बारे में पूछा गया तो 48 प्रतिशत ने उन्हें पसंदीदा उम्मीदवार बताया।’
साउथ एशिया सेंटर इसी प्रकार का एक और सर्वे अगस्त में करने पर विचार कर रहा है। इस बीच, जिस प्रकार विदेश में रहने वाले भारतीय लोग अपने काम और नौकरी छोड़कर भाजपा के लिए काम करने को भारत का रुख कर रहे हैं, कांग्रेस समेत दूसरे दलों के लिए ऐसा समर्थन बहुत कम दिखाई देता है।
अपना नाम नहीं लिखने की शर्त पर ऑस्ट्रेलिया में एक कांग्रेसी समर्थक ने कहा कि वह ऑस्ट्रेलिया में राहुल गांधी की बैठक आयोजित करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन धन की कमी आड़े आ गई। सैम पित्रोदा जैसे कांग्रेस नेता विदेश में राहुल गांधी के लिए स्थानीय समूहों की मदद से कार्यक्रम आयोजित करते रहे हैं। धन की कमी के कारण अब ऐसे कार्यक्रमों की संख्या कम होती जा रही है।
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल विदेशी नेताओं को अपने शपथ ग्रहण समाराहों में बुलाते रहे हैं। इस बार आम चुनाव की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए जैसे कार्यक्रमों की रूपरेखा बन रही है, शायद ही पहले कभी ऐसा देखा गया हो।