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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmla Sitharaman) ने नई दिल्ली में अपने नॉर्थ ब्लॉक दफ्तर में श्रीमी चौधरी, असित रंजन मिश्र और रुचिका चित्रवंशी के साथ साक्षात्कार में जी20 शिखर सम्मेलन से लेकर महंगाई, वृद्धि और चुनाव समेत तमाम मुद्दों पर बेबाकी से बात की।
उन्होंने भरोसा जताया कि त्योहारों से पहले अर्थव्यवस्था रफ्तार भर रही है और महंगाई के मसले पर सरकार हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठेगी। मुख्य अंश:
-जी20 अध्यक्ष के रूप में भारत की यात्रा कैसी रही?
निस्संदेह यह ठोस परिणाम वाली अध्यक्षता रही। भारत ने इस मौके का इस्तेमाल हर तरह से किया चाहे कूटनीतिक हो, वित्त हो या दूसरे मंत्रालय हों। सभी बैठकों में अहम विषय पर चर्चा हुई। कुछ में हुई बातचीत का सार भर दिए जाने का मतलब यह नहीं है कि मकसद पूरा नहीं हो पाया। बेंगलूरु में वित्तीय प्रमुखों की बैठक में रूस-यूक्रेन समस्या पर बात हुई। बाली सम्मेलन की भाषा के साथ आगे बढ़ना संभव नहीं था; इसलिए नहीं कि सर्वसम्मति नहीं थी बल्कि इसलिए कि हालात बदल चुके थे। यह मामला उन मंत्रियों के दायरे से परे था। इसलिए यह नेताओं के पास पहुंचा और सम्मेलन से एक-दो दिन पहले हुई बातचीत में साफ हो गया कि खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा और उर्वरक सुरक्षा जैसे आज के जरूरी मसलों के हिसाब से भाषा बदलनी पड़ेगी।
-कर संग्रह में वृद्धि धीमी हुई है। अगले साल आम चुनाव होने हैं, जिनके कारण व्यय भी बढ़ना है। यह सब देखते हुए आपको सरकारी खजाना सहज स्थिति में लग रहा है?
व्यय बढ़ने या घटने से कोई फर्क नहीं पड़ता। राजस्व संग्रह में अर्थव्यवस्था की तेजी झलकती है। हम केंद्र और राज्य के स्तर पर पूंजीगत व्यय पर बारीक नजर रख रहे हैं। केंद्रीय व्यय में रेल और रक्षा क्षेत्र तेजी से बढ़ रहे हैं।
सार्वजनिक व्यय के 10 लाख करोड़ रुपये वृद्धि की रफ्तार बनाए रखने के लिए हैं, जिसके नतीजे दिखे हैं। हम वृद्धि तेज करने की इच्छा जताकर नहीं रह गए, हमने उसमें मदद करने के लिए धन भी मुहैया कराया। प्रत्यक्ष कर में कमी 1 फीसदी से भी कम है। कर संग्रह बरकरार रखने के लिए हमने कर में इजाफा नहीं किया बल्कि खामियां दूर कीं और अनुपालन आसान बनाया। हमने सुनिश्चित किया कि कर चोरी का पता लगे और लोगों को अपनी चूक मानने और कर चुकाने का मौका दिया जाए। इस पर हमें अच्छी प्रतिक्रिया भी मिली है।
-नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर 8 फीसदी के आसपास रही है, जबकि बजट में 10.5 फीसदी का अनुमान लगाया गया था। आपको लगता है कि इस साल राजस्व और व्यय पर इसका असर पड़ेगा?
मुझे नहीं लगता कि इसका असर होगा। जरा देखिए कि छोटे और मझोले उद्योग तथा कई दूसरे नए क्षेत्र किस तरह हरकत में आ रहे हैं। मैं कुछ समय तक इन बातों पर नजर रखूंगी। सक्रियता, विस्तार की योजनाओं और नए उद्योगों में ठहराव दिखा तब मुझे फिक्र होगी। हम देख रहे हैं कि त्योहारों पर आने वाली मांग पूरी करने के लिए वाहनों का स्टॉक बढ़ाया जा रहा है। इन सभी से संकेत मिलता है कि अर्थव्यवस्था में सक्रियता भी है और वृद्धि भी हो रही है।
-क्या इस साल 10.5 फीसदी नॉमिनल वृद्धि का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है?
मुझे लगता है कि हम लक्ष्य हासिल कर लेंगे।
-हाल ही में आई एक ब्रोकरेज रिपोर्ट में कहा गया कि पिछली दो तिमाहियों में निजी पूंजीगत खर्च कम हुआ है। क्या आप मानती हैं कि सरकार के 10 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत खर्च के कारण निजी निवेश भी बढ़ रहा है?
ऐसा पिछले साल हुआ था। काश.. इस बार भी हो जाए क्योंकि निवेशक हाइड्रोजन मिशन और ग्रीन अमोनिया जैसे उन क्षेत्रों में भी दिलचस्पी दिखा रहे हैं, जहां पहले कभी निवेश नहीं हुआ। नए और बड़ी संभावनाओं वाले क्षेत्रों में भी निजी क्षेत्र की रुचि दिख रही है। पिछले दो साल में राष्ट्रीय निवेश एवं बुनियादी ढांचा कोष (एनआईआईएफ) के जरिये या किसी साझेदार के साथ मिलकर कई देशों के सरकारी फंड भी भारत आए हैं। इनविट में भी अच्छी प्रगति है और इसके जरिये भी काफी निवेश आ रहा है।
-बारिश कम रहने से क्या ग्रामीण आय और मांग के बारे में चिंता हो रही है?
इसमें हमें अलग-अलग भौगोलिक इलाका देखना होगा और समझना होगा कि कौन सी फसल पर असर पड़ सकता है। हम केवल आंकड़ों पर नजर नहीं रख रहे हैं; यह भी देख रहे हैं कि फसलों के पैटर्न पर कहां-कहां असर पड़ सकता है और किन इलाकों में फसलें बाढ़ से प्रभावित हो सकती हैं। यह सब देखकर ही हम फैसला करेंगे कि बफर स्टॉक कितना रखना है या कितनी मदद देने की जरूरत है। अगर दलहन और तिलहन दोनों पर असर पड़ता है तो हमें आयात करने और किसानों की मदद करने के लिए तैयार रहना चाहिए। सरकार इस मॉनसून के दौरान ही नहीं उसके बाद और अगले साल के शुरुआती महीनों तक अल नीनो के असर को समझने की कोशिश भी कर रही है।
-क्रिप्टोकरेंसी पर जी20 के सिंथेसिस पेपर में प्रतिबंध के बजाय कायदे बनाने यानी नियमन करने पर ज्यादा जोर है। क्या प्रतिबंध की बात अब पूरी तरह खत्म हो गई है?
दुनिया भर में राय यही है कि जो देश क्रिप्टोकरेंसी के विनियमन के लिए पूरा तंत्र तैयार करना चाहते हैं, वहां की सरकारें यह काम करती रहें। मगर कोई अकेले विनियमन करना चाहेगा तो नहीं कर पाएगा। हमें सभी को रजामंद करना होगा। यदि कोई काम यहां होता है तो उसे कारगर बनाने के लिए वैसा ही काम किसी दूसरी जगह भी हो सकता है। जी20 यही सोचता है।
कच्चे तेल और उर्वरक की कीमतें फिर चढ़ रही हैं। सरकार के सब्सिडी के आंकड़ों और महंगाई पर इसका क्या असर होगा?
अभी मैं इस पर पूरे भरोसे के साथ कुछ नहीं कह सकती। महंगाई स्थायी चुनौती है और हम सभी को इसके साथ जीना है। आम गरीब नागरिकों की मदद के लिए हमें रास्ते तलाशने होंगे। महंगाई पर काबू करने के मामले में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार का रिकॉर्ड पिछली सरकारों से लगातार बेहतर रहा है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाऊंगी; हम पर्याप्त उपाय कर रहे हैं।
-रसोई गैस की कीमतें घटाने के बाद क्या पेट्रोल और डीजल के लिए भी ऐसी कोई योजना है?
हम पहले एक-दो बार ऐसा कर चुके हैं। यह सवाल राज्यों से किया जाना चाहिए, जिन्होंने एक बार भी कीमतें नहीं घटाई हैं। जब हमने घटाईं तब भी उन्होंने कटौती नहीं की। तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, झारखंड ने ईंधन के दाम नहीं घटाए। कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद हिमाचल ने तो दाम 3 रुपये बढ़ा दिए। पंजाब ने भी दाम बढ़ाए।
-सरकार सब्सिडी कैसे संभाल रही है?
उर्वरकों के मामले में हमारा सीधा मानना है कि किसानों पर बोझ नहीं पड़ना चाहिए। दो साल पहले जब दाम 10 गुना बढ़ गए थे तब हमने बोझ अपने ऊपर ले लिया था। अब रसोई गैस के दाम नहीं घट रहे हैं। मगर प्रधानमंत्री को लगा ‘यह रक्षाबंधन है, उन्हें यह तोहफा मिलना चाहिए’। इसलिए हमने दाम घटाने की घोषणा की और दाम केवल उज्ज्वला लाभार्थियों के लिए ही नहीं घटे हैं। हमने प्रदूषण मुक्त रसोई का वादा किया है; अब 75 लाख नए खाते जुड़ रहे हैं। हमारा वादा हर किसी से है – महिलाओं से, किसानों से, पिछड़ी और अनुसूचित जातियों से। हमारी सब्सिडी और सब्सिडी से जुड़ी नीतियां इन सबका ध्यान रखती हैं।
-क्या आपको वित्त वर्ष 2024 में 5.9 फीसदी राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल करने का यकीन है?
हां, और इसके लिए आप हमारा रिकॉर्ड देख सकते हैं। कोविड के समय जब बेहद गंभीर चुनौतियां थीं तब हमने बिना छिपाए साफ कहा था कि लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा।
-विनिवेश की योजना काफी धीमी गति से बढ़ रही है। आप भी ऐसा मानती हैं?
कैबिनेट निवेश के जो भी फैसले लेती है बतौर मंत्री मुझे उन्हें पूरा करना होगा। लेकिन मुझे यह भी देखना होगा कि विनिवेश के प्रस्ताव बाजार में लाने का सही समय कौन सा है।
-क्या आईडीबीआई में हिस्सेदारी चालू वित्त वर्ष में ही बिक जाएगी? क्या इसमें कोई रुकावट है?
आईडीबीआई की हिस्सेदारी बिक जानी चाहिए मगर मैं बाजार पर निगाह रखना चाहती हूं और इसके लिए सही समय चुनना चाहती हूं। इसमें कोई भी अड़चन या रुकावट नहीं है।
-रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए काफी कोशिशें की जा रही हैं। इन्हें कैसे देखती हैं आप?
रुपये में काफी दिलचस्पी है। जिन देशों के पास डॉलर जैसी रिजर्व करेंसी की सुविधा नहीं है, वे रुपये के साथ कारोबार करके खुश हैं। इसलिए भी कि उनको रुपया स्थिर लग रहा है। उनको इससे भी सहजता है कि भारत एक उभरता बाजार है, उसका अपना विशाल बाजार है। हमने कई सारे कोटा-मुक्त और शुल्क-मुक्त व्यापार अवसरों का विस्तार किया है। कई कम विकसित देश सोचते हैं कि उनकी भारतीय बाजार तक पहुंच है। इसलिए दोतरफा व्यापार फल-फूल सकता है। अभी करीब 22 देशों के साथ बातचीत चल रही है।
-क्या आप डीजल कर पर अतिरिक्त जीएसटी पर चर्चा के लिए राजी हैं।
मेरा ध्यान अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने पर है।
-आप चीन की मंदी को किस तरह देखती हैं? भारत के लिए क्या अवसर और चुनौतियां हैं?
पिछले 15 साल से चीन के साथ हमारा बहुत बड़ा मसला उसके बाजारों तक पहुंच का रहा है। हर सरकार ने इन बाधाओं को हटाने के लिए कोशिश की है। लेकिन इसमें बहुत कम सफलता मिली है क्योंकि वे (चीन) गैर-शुल्क बाधाओं के जरिए आपकी पहुंच को रोकने की कोशिश करते हैं। हमको सरकार के गंभीर प्रयासों के जरिये इससे निपटना है जिससे कि कोई भी बाजार अछूता न रहे। हम उस दिशा में काम करते रहेंगे।
मैं भारत की वह सामर्थ्य बता रही हूं जो हम पेश करते हैं। इस सामर्थ्य में अंग्रेजी भाषा, इंजीनियर, डॉक्टर, नर्स, पेशेवर और स्टार्टअप की अनूठी प्रतिभा शामिल है। पिछले नौ साल में इस सरकार ने अनुकूल नीति और स्थिरता दी है, कराधान और निवेश नीतियां दी हैं, ये सब निवेशकों को भारत में ऐसा माहौल उपलब्ध कराती हैं जो किसी और देश के मुकाबले बेहतर है।
-हाल में लैपटॉप और अन्य उपकरणों के लिए आयात लाइसेंस को लेकर कुछ चर्चा थी। एक विचार यह भी है कि हम फिर से पुराने लाइसेंस राज की ओर लौट रहे हैं। आपका विचार?
मैं ऐसा नहीं मानती। हम लाइसेंस राज की ओर नहीं लौट रहे हैं। अगर हम विनिर्माण के कुछ क्षेत्रों को समर्थन नहीं देंगे तो वे कभी भी खड़े नहीं हो सकेंगे। पिछले कुछ वर्षों में हमने ऑटोमोबाइल, ऑटो कंपोनेंट का समर्थन किया है, उन्हें चुनौतियों से मुकाबला करने और प्रतिस्पर्धी बनने के लिए तैयार किया है, जिससे कि वे सस्ते सामान की बाढ़ से बचें और बेहतर उत्पाद बनाएं। इस सीमा तक तो हमने निश्चित ही भारत के अपने उत्पादन को सुरक्षा देने की कोशिश की है। पर इसका मतलब लाइसेंस राज की तरफ लौटना नहीं है।
-ऐसी धारणा है कि सरकार कुछ रणनीतिक क्षेत्रों को उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के तहत नहीं ला रही है…..
नहीं, यह सच नहीं है। सभी 14 क्षेत्र सनराइज सेक्टर हैं….जिनका रोजगारों पर बड़ा भारी असर हो सकता है। हमने इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र, सोलर में बढ़त ली है। भारत दूसरे कई देशों की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतर है जबकि वे अभी तक इस दिशा में संघर्ष कर रहे हैं।
-आप हिंडनबर्ग मामले और हमारी नियामकीय संस्थाओं को किस तरह देखती हैं?
शॉर्ट सेलिंग एक ऐसी चीज है जो उन सभी देशों में होती है जहां स्थापित बाजार हैं और वैश्विक मौजूदगी वाली विशाल सूचीबद्ध कंपनियां हैं। भारत में नियामक काम कर रहे हैं। इसमें कुछ भी दुराव-छिपाव नहीं है लेकिन बड़ी बात यह है कि कंपनी संचालन सबके सामने आ जाता है और इस कारण इसमें सुधार भी होता है। यहां तक कि अनुपालना के बारे में बाजार को भी बेहतर सूचना होती है। मुझे लगता है कि यह देश के लिए अच्छा ही होगा।
-शॉर्ट सेलिंग पर किसी नियामकीय उपाय पर काम हो रहा है?
मेरे लिए इस मामले पर बोलना यहां तक कि कोई संकेत करना भी ठीक नहीं होगा क्योंकि नियामक ही इसे देख रहा है और वह विश्व में प्रचलित सर्वश्रेष्ठ उपायों की तुलना करने में समर्थ होगा और देखेगा कि स्थिति की समीक्षा की जरूरत है या नहीं।
-पूंजी लाभ कर व्यवस्था की कोई समीक्षा?
कुछ नहीं।
-जीएसटी की दरों को तर्कसंगत बनाने की क्या स्थिति है- कोई समय सीमा?
राज्य पैनल का पुनर्गठन किया गया है। यह जीएसटी दरों को तर्कसंगत बनाने पर विचार करेगा और अपनी रिपोर्ट हमें सौंपेगा। हमने समय सीमा के बारे में कोई आदेश नहीं दिया है। जब भी वे तैयार होंगे, वह परिषद के पास आएगी और फिर हम इस पर चर्चा करेंगे।
-रोजगार एक मुख्य चिंता रही है। आपकी राय में सरकार को रोजगार सृजन के लिए किन कदमों की पहल करनी चाहिए?
हम कौशल विकास पर ध्यान दे रहे हैं। असंगठित क्षेत्र के कामगारों की मदद के लिए ई-श्रम पोर्टल जैसी पहल की गई है। पोर्टल आपको यह भी बताती है कि किस तरह के कौशल की जरूरत है। हमने रोजगार मेले के आठ आयोजन किए हैं। केंद्र सरकार के खाली पदों को भरने के लिए हमारा 10 लाख भर्तियों का लक्ष्य है। 5 लाख से अधिक नियुक्ति पत्र पहले ही जारी किए जा चुके हैं।
-मूडीज की रिपोर्ट में भारत की रेटिंग कम होने के कारणों में नागरिक समाज और राजनीतिक असंतुष्टों पर प्रतिबंधों को लेकर चिंता जताई गई है। आपके विचार?
मैं इसे नहीं मानती। अगर यही पैमाना है तो जरा अमेरिका में हो रही हिंसा और अशांति को देखें जो आम आदमी को प्रभावित कर रही है। आजादी के बाद से भारत ने प्रवासियों का लगातार सामना किया है। लेकिन उन देशों का अनुभव क्या है जो विकसित हैं? जरा देखिए कि हम किस तरह कोविड-19 से निपटे हैं, हमने जिस तरह जरूरतमंदों की मदद की है और जिस तरह हमने यह सुनिश्चित किया है कि राजकोषीय विवेक बना रहे। अगर जिम्मेदारी के साथ काम करना भारत में नहीं दिखेगा तो आपको फिर कहां दिखेगा?
-निर्यात और व्यापार गिर रहा है। इसे कैसे देखती हैं आप?
यह सिर्फ हमारे लिए ही चुनौती नहीं है। बाजार में मांग, जो आमतौर पर दूसरे देशों से आयात पर निर्भर करती है, पूरी तरह सपाट है। आप कह सकते हैं कि आपकी प्रतिस्पर्धा खत्म हो गई है या लॉजिस्टिक लागत बहुत ज्यादा है या आपके उत्पादों का मूल्य नहीं बचा है। लेकिन ये सारी बातें हर देश पर लागू होती है। हमें यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि हम अपने हरेक उत्पाद के लिए सिर्फ कुछ देशों पर ही निर्भर ना रहें। हमें नए बाजार तलाशने होंगे और अपने आप में बदलाव करना होगा और उन बाजारों तक पहुंच बनानी होगी।
-निफ्टी और सेंसेक्स रिकॉर्ड स्तर पर है क्या आपको लगता है कि वे अर्थव्यवस्था की मजबूती प्रदर्शित करते हैं?
मैं नहीं कहूंगी कि वे महंगे हैं या मूल्य से अधिक हैं। उनके अपने आंकड़े होते हैं और वह कभी-कभी वह अर्थव्यवस्था में प्रदर्शित होते हैं। यह दो तरफा मार्ग है। बाजार अच्छा कर रहे हैं। बड़े उद्योग और सूचीबद्ध कंपनियां भी अच्छा कर रही हैं। इसलिए छोटे निवेशक विश्वस्त महसूस कर रहे हैं।
-हम चुनावी साल की ओर हैं। आपकी राय में क्या एजेंडा होगा? अर्थव्यवस्था, कीमतें, महंगाई?
मैं चाहती हूं कि यह सब एजेंडा हो। हम मुकाबला कर सकेंगे और जवाब दे सकेंगे।
-महंगाई पर भी?
हां, क्यों नहीं? अपनी तुलना जरा तुर्किये और जर्मनी से करें।
यह अर्थशास्त्री का तर्क है, न कि लोगों के बीच का। नहीं?
मैं आपको जनता के बीच वाला तर्क भी देती हूं। एक महीने के भीतर टमाटर की कीमतें गिर गईं। अब आप इसे दूसरी तरह देखेंगे और बोलेंगे कि किसान अपने टमाटर फेंक रहे हैं। ये भी मसले हैं और मैं उनसे भी निपटना चाहूंगी।
क्या यह सरकार वापस आ रही है, कितनी सीटें आएंगी?
हां। आंकड़ों के बारे में कुछ नहीं कहूंगी। लोगों ने मान लिया है कि कोई है जो देश के लिए समर्पित है, भ्रष्ट नहीं है और वास्तव में जमीन पर उसका काम भी दिख रहा है। हम चाहेंगे कि भारतीय मतदाता को कम नहीं आंकें। वह अच्छे और बुरे काम के बीच भेद कर सकता है।
क्या आप चुनाव लड़ेंगी?
मुझसे कहा तो नहीं गया…। हम सब पार्टी के सलाह के अनुसार चलते हैं।