भारत ने जनवरी 2022 से जून 2025 के बीच सस्ती रूसी कच्चे तेल की खरीद से लगभग 15 अरब डॉलर (करीब ₹1.25 लाख करोड़) बचाए हैं। अगर इसे समझना चाहें तो यह बचत इतनी है कि इससे इस साल के लिए तय की गई ₹1.2 लाख करोड़ की यूरिया सब्सिडी पूरी तरह चुकाई जा सकती है। यह आंकड़ा बिज़नेस स्टैंडर्ड ने कस्टम्स डेटा, शिप ट्रैकिंग, बजट दस्तावेज़ और उद्योग सूत्रों के आधार पर निकाला है।
सबसे ज्यादा बचत 2023 में हुई। करीब 7 अरब डॉलर। उस समय G7 देशों ने रूसी तेल पर प्राइस कैप लगाया था, जिससे रूस ने भारत को कच्चा तेल 15–20 डॉलर प्रति बैरल सस्ता बेचा। अब यह छूट घटकर 2 डॉलर से भी कम रह गई है। इसी वजह से जनवरी-जून 2025 के दौरान बचत घटकर 1.8 अरब डॉलर रह गई।
बचत का हिसाब इस तरह लगाया गया कि सालभर में खरीदे गए रूसी तेल की मात्रा को, रूस और खाड़ी/अमेरिका के तेल के दाम के अंतर से गुणा किया गया। अगर रूस से कम तेल मिलेगा तो भारत इराक, सऊदी अरब, नाइजीरिया, यूएई और अमेरिका से ज्यादा तेल खरीदेगा। इराक और सऊदी अरब भारत के दूसरे और तीसरे सबसे बड़े तेल सप्लायर हैं।
तेल विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा के मुताबिक, अमेरिकी टैक्स के बाद रूस से आने वाले तेल में कितनी गिरावट होगी, यह कहना अभी मुश्किल है। आने वाले हफ्तों में होने वाली ट्रेड टॉक्स, क्वाड बैठक, विदेश मंत्री की रूस यात्रा और प्रधानमंत्री की SCO शिखर बैठक के बाद तस्वीर साफ होगी।
दो सरकारी रिफाइनरी अधिकारियों ने बताया कि अगर खाड़ी और अमेरिकी तेल लेना पड़ा तो रिफाइनिंग मार्जिन $2–$3 प्रति बैरल तक कम हो सकता है। अगर तेल के दाम बढ़े तो लागत और बढ़ जाएगी।
सऊदी अरब ने सितंबर के लिए एशिया को बेचे जाने वाले तेल पर प्रीमियम बढ़ा दिया है। इसके मुताबिक:
प्राइवेट कंपनियां रिलायंस इंडस्ट्रीज (RIL) और नयारा एनर्जी रूस से आने वाले करीब आधे तेल की खरीद करती हैं। सस्ती रूसी सप्लाई से इनको बड़ा फायदा हुआ है, लेकिन अब खाड़ी का महंगा तेल लेने से इनके मुनाफे पर दबाव बढ़ सकता है। RIL इस रूसी तेल को प्रोसेस कर यूरोप को ईंधन के रूप में बेचती है।
डेटा कंपनी Kpler के मुताबिक, सरकारी रिफाइनरियों ने 2024 के मुकाबले 2025 में रूसी तेल पर निर्भरता 10% कम कर दी है। हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने जुलाई में सिर्फ 24,000 बैरल प्रतिदिन रूसी तेल खरीदा, जबकि एक साल पहले यह 2.8 लाख बैरल प्रतिदिन था। छूट घटने और सप्लाई कम होने की वजह से ये खरीद घटाई गई। जून में सरकारी कंपनियों ने 1.1 मिलियन बैरल प्रतिदिन रूसी तेल खरीदा। इनमें से कुछ के लिए सितंबर की डिलीवरी पहले ही तय है।
Kpler की विश्लेषक अमीना बक्र के अनुसार, 2 मिलियन बैरल प्रतिदिन रूसी तेल को पूरी तरह खाड़ी देशों से बदलना संभव नहीं है। सऊदी अरब, यूएई और कुवैत के पास कुछ अतिरिक्त क्षमता है, लेकिन इराक और कज़ाखस्तान को OPEC के नियमों के चलते उत्पादन घटाना होगा। इसलिए इंडियन ऑयल ने सितंबर के लिए अमेरिका और यूएई से लगभग 70 लाख बैरल हल्का, मीठा तेल बुक किया है, ताकि रूसी तेल के बजाय इसे इस्तेमाल किया जा सके।