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अमेरिकी टैरिफ से संकट में सूरत का हीरा उद्योग: लाखों कारीगरों की आजीविका पर खतरा, धंधा 40% तक पड़ा धीमा

अमेरिकी शुल्क से हीरा निर्यात घटा, सूरत उद्योग पर संकट बढ़ा और लाखों कारीगरों की नौकरियां दांव पर लगीं, जबकि कारोबारी नए बाजार और लैब ग्रोन हीरों में संभावनाएं खोज रहे हैं।

Last Updated- August 22, 2025 | 11:03 PM IST

साल 1938 में रक्षा बंधन के दिन गुजरात के सूरत शहर में तापी नदी में भयंकर ज्वार उफान पर था, जिसने नावों को पलट दिया और 84 लोगों की जिंदगियां छीन ली। तब से सूरत के लोग इस हादसे में जान गंवाने वालों की स्मृति में इस त्योहार को एक दिन बाद मानते हैं।

इस साल डायमंड सिटी के नाम से मशहूर सूरत में एक और ज्वार उठ रहा है। यह पानी का नहीं बल्कि ऊंचे शुल्क का, जिससे त्योहारों का जश्न फीका पड़ गया है। अमेरिका के जवाबी शुल्क और जुर्माने की वजह से हीरा उद्योग से जुड़े हजारों कारीगरों की आजीविका पर संकट मंडरा रहा है और पूरा शहर सांस थामकर स्थिति की थाह लेने में जुटा है। सूरत में दुनिया भर के हीरों को तराशने का काम होता है। यहां लगभग 5,000 डायमंड कटिंग और पॉलिशिंग इकाइयां हैं जिनमें तकरीबन 8 लाख कारीगर काम करते हैं। इससे इस शहर की अहमियत का अंदाजा लगाया जा सकता है कि दुनिया में तैयार 10 हीरों में से 9 की पॉलिश यहीं होती है।

कटिंग और पॉलिशिंग इकाइयों के साथ ही हीरा कारोबारियों के लिए अमेरिका सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। भारत में पॉलिश किए गए हर दस में से तीन से अधिक हीरे अमेरिकी रिटेल चेन में पहुंचते हैं। अप्रैल में ट्रंप प्रशासन ने भारत पर व्यापक जवाबी शुल्क लगाने की घोषणा की और अमेरिका में रत्न एवं आभूषण निर्यात पर 26 फीसदी शुल्क लगाया गया जो इस महीने से प्रभावी है। इतना ही नहीं रूस से तेल खरीदने की वजह से अमेरिका ने भारत पर अतिरिक्त 25 फीसदी का शुल्क लगा दिया है, जिससे कुल मिलाकर रत्न एवं आभूषण पर अमेरिका में प्रभावी शुल्क 55 फीसदी हो गया है।

उद्योग के जनकारों का कहना है कि हीरा पॉलिशिंग और कटिंग इकाइयां आम तौर पर एक अंक के मुनाफा मार्जिन पर काम करती हैं जो अमूमन 4 से 8 फीसदी के बीच होता है। ऐसे में उन पर भारी दबाव है। शुल्क के खटके के बारण कुछ दिनों से हीरों की मांग 40 फीसदी तक घट गई और कारोबारी अमेरिका में सिकुड़ते ग्राहक आधार से ऑर्डर पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

हीरा सदा के लिए…

डायमंड यूनिट फ्लोर जो आम तौर पर बॉलीवुड धुनों और पॉलिशिंग व्हील्स की आवाज़ से गुलजार रहता है, इन दिनों एक असहज खामोशी में डूब गया है और अधिकांश कारीगर झपकी लेकर समय बिता रहे हैं। बीते सोमवार को 30 वर्षीय कीर्तिभाई वाघडिया हार्ट और एमराल्ड जैसे आकार के पॉलिश किए गए हीरों की छोटी खेप पैक कर रहे थे। वाघडिया 30 कारीगरों के फ्लोर का नेतृत्व करते हैं। उनके समाने अब दो ही रास्ते बचे हैं- मांग में कमी को पाटने के लिए नए खरीदार खोजें या संकट के आगे झुक जाएं और अपने कारीगरों को वापस उनके घर भेज दें।

उन्होंने बताया, ‘उत्पादन 6 महीने पहले 100 कैरेट प्रतिदिन से घटकर 70 कैरेट प्रतिदिन हो गया है। मांग में कमी की भरपाई के लिए हमें कम से कम तीन और खरीदार तलाशने की जरूरत होगी।’

वाघडिया ने चेतावनी दी कि अगर गंभीर स्थिति जारी रहती है तो उनका कारोबार कम से कम 6 महीने पीछे चला जाएगा।

उद्योग अभी भी स्थिति का आकलन करने में जुटा है। अनुमान के मुताबिक हालात नहीं सुधरे तो करीब 50,000 से 3 लाख लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ सकती है। रत्न एवं आभूष निर्यात संवर्धन परिषद के सूरत के क्षेत्रीय निदेशक रजत वाणी ने कहा, ‘हम अगस्त के बाद प्रभाव की पूरी तस्वीर का अनुमान लगाने में सक्षम होंगे। आम तौर पर उसी दौरान दिसंबर की छुट्टियों और वेलेंटाइन डे के समय आपूर्ति के लिए अधिकतम मांग आती है।’

सिकुड़ता आधार

वित्त वर्ष 2025 में भारत से वैश्विक बाजारों में 28.67 अरब डॉलर का रत्न और हीरों का निर्यात हुआ था जो वित्त वर्ष 2024 के 32.29 अरब डॉलर से 11.21 फीसदी कम है।

वित्त वर्ष 2025 में अमेरिकी बाजार में निर्यात 6 फीसदी घटकर 9.24 अरब डॉलर रहा। संयुक्त अरब अमीरात में भी निर्यात करीब 3 फीसदी और हॉन्ग कॉन्ग में 32.24 फीसदी घटा है।

हीरा कारोबारी कीर्तिलाल शाह ने कहा, ‘अमेरिका में खरीदार अब हीरे का आधार मूल्य कम करने के लिए बातचीत करेंगे ताकि शुल्क की लागत को ध्यान में रखते हुए यह अमेरिका के औसत खरीदार के लिए किफायती बना रहे। इससे हमारे मार्जिन, डिजाइन में निवेश, इकाइयों का विस्तार आदि पर असर पड़ेगा।’

शाह के अनुसार अमेरिकी शुल्क 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट और कोविड-19 महामारी के बाद उद्योग के लिए सबसे बुरा संकट है। हालांकि उद्योग के हितधारक प्रयोगशालाओं में तैयार होने वाले हीरे पर उम्मीदें टिकाए हुए हैं क्योंकि प्राकृतिक हीरे महंगे होते जा रहे हैं।

रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद के गुजरात क्षेत्र के रीजनल चेयरमैन जयंतीभाई एन सांवलिया ने कहा, ‘महामारी के दौरान कारोबार में मंदी आई थी। 2008 में भी मंदी थी। मगर उस समय प्रयोगशाला में तैयार होने वाले हीरे लोकप्रिय नहीं थे। आज इस तरह के हीरों की देश में भी मांग बढ़ रही है, जिससे कारोबार को कुछ सहारा मिल सकता है।’ प्राकृतिक हीरे की कीमत प्रयोगशाला में तैयार होने वाले हीरे से कई गुना ज्यादा होती है। कारोबारी खाड़ी देशों, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया जैसे नए अंतरराष्ट्रीय बाजारों में संभावनाएं तलाश सकते हैं।  

First Published - August 22, 2025 | 10:35 PM IST

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