वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था के तहत मुआवजे को लेकर चल रही खींचतान से केंद्र सरकार के बाहर निकलने की राह अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दिखाई है। उन्होंने जीएसटी परिषद द्वारा उधारी लेने की भी सिफारिश नहीं की है।
सूत्रों ने बताया कि उन्होंने सुझाव दिया है कि परिषद यह सिफारिश कर सकती है कि केंद्र सरकार मुआवजा कोष से भविष्य की प्राप्तियों के हिसाब से राज्यों को उधारी लेने की अनुमति दे। सूत्रों के मुताबिक उन्होंने यह भी कहा है कि अगर मुआवजा कम आात है तो केंद्र सरकार जीएसटी मुआवजा में आई कमी की भरपाई करने के लिए बाध्य नहीं है।
बहरहाल विशेषज्ञों ने राज्य सरकारों पर और ज्यादा कर्ज का बोझ लादने के विचार को पसंद नहीं किया है। इंटरनैशनल ग्रोथ सेंटर (आईजीसी) के कंट्री डायरेक्टर प्रणव सेन ने कहा कि यह राज्यों की जिम्मेदारी नहीं हो सकती है कि वे अपने आप को मुआवजा दें। पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद ने कहा, ‘अगर जीएसटी परिषद कहती है कि राज्य सरकारें केंद्र की अनुमति से ऊपर उधारी ले सकती हैं तो आप राज्यों पर दबाव डाल रहे हैं कि वे आगे और कर्ज में डूब जाएं।’
उन्होंने का कि अहम है कि राज्य सरकारों के बॉन्डों की अतिरिक्त आपूर्ति होगी, जिसका मतलब यह है कि इन पेपर्स की यील्ड बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि इससे राज्य के व्यय पर स्थाई असर पड़ेगा क्योंकि ब्याज का बोझ आगे और बढ़़ जाएगा। उन्होंने सुझाव दिया कि परिषद को केंद्र से सिफारिश करनी चाहिए कि वह उधारी ले और राज्यों को अनुदान के रूप में धन हस्तांतरित करे।
सेन ने कहा, ‘ऐसी स्थिति में उधारी को भविष्य में होने वाले जीएसटी उपकर संग्रह में समायोजित किया जा सकता है। अन्यथा आप राज्यों को स्थाई रूप से घाव दे देंगे।’
यह पूछे जाने पर कि केंद्र सरकार द्वारा उधारी बढ़ाने पर उस के पेपर्स पर भी यील्ड ऊपर जा सकता है, सेन ने कहा कि वह बढ़ोतरी राज्यों की उधारी ज्यादा बढऩे की तुलना में बहुत मामूली होगी। उन्होंने कहा कि केंद्र व राज्य सरकारों के बॉन्ड के यील्ड में पहले ही 100 से 150 आधार अंक का अंतर है।
राज्य सामान्यतया सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी)का 3 प्रतिशत राजकोषीय घाटा पहुंचने की स्थिति में उधारी लेते हैं। बहरहाल अब आत्मनिर्भर पैकेज में विभिन्न शर्तों के साथ उन्हें जीएसडीपी का 2 प्रतिशत और उधारी लेने की अनुमति दी गई है।
मुआवजा उपकर संग्रह धीरे धीरे कम होना शुरू हो गया है, ऐसे में जीएसटी परिषद ने मार्च की बैठक में बाजार उधारी लेने का विचार पेश किया था।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि वह विभिन्न कानूनी मसलों पर परामर्श लेंगी, जैसे उधारी की गारंटी कौन लेगा, इसका पुनर्भुगतान कैसे किया जाएगा, इसका वित्तीय दायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम पर क्या असर होगा, आदि।
परिषद ने जून की बैठक में भी इस मसले पर चर्चा की लेकिन इसे अगली बैठक तक के लिए टाल दिया गया।
क्या जीएसटी परिषद उधारी ले सकती है? सिंघानिया ऐंड कंपनी एलएलपी के मैनेजिंग पार्टनर प्रदीप कुमार जैन ने कहा कि जीएसटी परिषद संवैधानिक निकाय है, लेकिन इसका काम जीएसटी से जुड़े मसलों पर केंद्र व राज्य सरकारों को सिफारिशें करने तक है। उन्होंने कहा, ‘सेबी, बिजली नियामक प्राधिकरण आदि जैसे अन्य संवैधानिक निकायों से विपरीत यह संपत्ति नहंीं रख सकती या उधारी की शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकती, इसलिए यह उधारी नहीं ले सकती।’
होस्टबुक्स लिमिटेड के संस्थापक और चेयरमैन कपिल राणा ने भी कहा कि परिषद एक संगठन नहीं है कि वह धन उधार ले सके और राज्यों के मुआवजे में घाटे की भरपाई कर सके। विकल्प के रूप में जैन ने कहा कि परिषद भविष्य के राजसस्व जैसे रिवर्स मॉर्गेज या लीज रेंट डिस्काउंङ्क्षटग के मुद्रीकरण की सिपारिश कर सकती है। केंद्र सरकार भी उधारी ले सकती है या उधारी पर गारंटी दे सकती है। उन्होंने कहा कि बेहतर विकल्प यह होगा कि राज्य सरकारें केंद्र की गारंटी पर उधारी लें।
राणा ने कहा कि केंद्र सरकार इसके लिए एसपीवी बना सकती है या जीएसटी नेटवर्क का इस्तेमाल कर सकती है। उन्होंने कहा, ‘घाटे की निगरानी व वितरण के लिए एक एजेंसी के रूप में जीएसटीएन के इस्तेमाल से कई तरह से मदद मिलेगी, जैसे जीएसटी मुआवजा संग्रह के विस्तार में कटौती करने में मदद मिलेगी।’
राज्य अपने ऊपर ज्यादा उधारी का बोझ डालकर उधारी लेने के विचार को पसंद नहीं करने जा रहे हैं। इसके पहले केरल के वित्त मंत्री थॉमस आइजक ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा था कि 12 जून की बैठक में उनके राज्य ने सुझाव दिया है कि जीएसटी परिषद को उधारी लेने की अनुमति होनी चाहिए और इसके पुनर्भुगतान के लिए मुआवजा उपकर एक या दो साल के लिए बढ़ाया जाना चाहिए।
सौर सेल पर बढ़ा रक्षोपाय शुल्क
सरकार ने सौर सेल पर एक साल के लिए और रक्षोपाय (सेफगार्ड) शुल्क लगा दिया है। अब सौर सेल पर यह शुल्क जुलाई, 2021 तक लागू रहेगा। घरेलू विनिर्माताओं को संरक्षण तथा चीन जैसे देशों से सस्ते आयात को रोकने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है। वाणिज्य मंत्रालय की जांच इकाई व्यापार उपचार महानिदेशालय ने इस शुल्क को एक साल और जारी रखने की सिफारिश की थी। डीजीटीआर ने जांच में यह निष्कर्ष निकाला है कि 2018-19 में रक्षोपाय शुल्क की वजह से सौर सेल के आयात में कमी आई। वहीं 30 जुलाई, 2019 से शुल्क दरों में कमी के बाद अप्रैल-सितंबर, 2019 के दौरान आयात बढ़ा। भाषा