घरेलू इस्पात उद्योग इन दिनों खासा चिंतित है। कीमतें नियंत्रित करने के लिए सरकार कड़े कदम उठा सकती है।
स्टेनलेस स्टील के कारोबारियों का कहना है कि उद्योग जगत को केवल कार्बन स्टील के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। उसका कहना है कि देश में स्टेनलेस स्टील का अतिरिक्त उत्पादन है।
इंडियन स्टेनलेस स्टील डेवलपमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष एनसी माथुर ने कहा, ”देश के कुल इस्पात उत्पादन में स्टेनलेस स्टील की भागीदारी केवल 3 प्रतिशत है। जबकि मांग को पूरा करने के बाद इसका उत्पादन 30 प्रतिशत शेष बच जाता है। इस बचे हुए विनिर्माण का निर्यात होना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि सरकार को मुद्रास्फीति की दर को रोकने और इस्पात की बढ़ती कीमतों को बड़े मुद्दे के रूप में देखने के साथ ही आपूर्ति और मांग के मामले में स्टेनलेस स्टील पर अलग से विचार करना चाहिए।
पिछले कुछ महीनों से स्टेनलेस स्टील की कीमतों में न तो कोई बढ़ोतरी हुई है और न ही आपूर्ति में कमी आई है। माथुर ने कहा कि यह कार्बन स्टील उद्योग के रुख की तुलना में बिल्कुल विपरीत स्थिति है। उन्होंने इसके बारे में वित्त और इस्पात मंत्रालयों को एक विस्तृत पत्र लिखा है।
घरेलू बाजार में कीमतों में बढ़ोतरी को देखते हुए सरकार इस्पात के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है। पत्र में कहा गया है कि स्टेनलेस स्टील के मामले में निर्यात पर प्रतिबंध लगाने या कोई निषेधात्मक कदम उठाने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि मांग की तुलना में आपूर्ति बहुत ज्यादा है।
पिछले महीने में जब सरकार ने डयूटी इंटाइटलमेंट पासबुक (डीईपीबी) के तहत मिलने वाले लाभों को खत्म कर दिया था, उसका भी स्टेनलेस स्टील के निर्यात पर विपरीत प्रभाव पड़ा। इस्पात उत्पादकों को इस योजना के तहत कुल निर्यात का 5 प्रतिशत फ्रेट आन बोर्ड का लाभ मिलता था। स्टेनलेस स्टील उच्च गुणवत्ता वाला उत्पाद है, जिसकी कीमत 90,000 रुपये से 160,000 रुपये प्रतिटन के बीच है।