सूक्ष्म
यह जानकारी एक वरिष्ठ अधिकारी ने दी। वाणिज्य मंत्रालय के उद्योग नीति और संवर्द्धन विभाग के निदेशक एस के थाड़े ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि कुछ साल पहले छोटे उद्योग की श्रेणी में 600 सामानों को रखा जाता है,जो अब घटकर 100 रह गये हैं। दरअसल 100 से इस संख्या को 35 करने के पीछे नियंत्रण को मजबूत रखना है। इससे विदेशी निवेश भी आकर्षित होगा।
छोटे उद्योग के अंतर्गत निर्माण होनेवाले उत्पादों के आरक्षण की व्यवस्था
1967 से शुरु की गई थी। इसके तहत 47 सामानों को इसके अंतर्गत रखा गया था। इसके बाद राष्ट्रीय उद्योग वर्गीकरण (एनआईसी) कोड को लाया गया। इसकी संख्या पहले 504 थी,जो 1978 में बढ़कर 807 हो गया था। यह संख्या 1989 में 836 थी।
इसके बाद 39 सामानों को चार चरणों में शामिल किया गया। 1997 में 15,1999 में 9 और 2001 में 15 सामानों को शामिल किया गया। इसके पश्चात मई 2002 में 51 उत्पादों को और अक्टूबर 2004 में 85 उत्पादों क ो इस श्रेणी में शामिल किया गया।
इस आरक्षण के पीछे दरअसल मझोले
,बड़ी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों से हो रही प्रतिस्पद्र्धा में टिकने के लिए समर्थन देने की मनसा होती है। इस नीति को उद्योग (विकास और प्राधिकार्य) कानून 1951 की धारा 29 बी के तहत 1984 से संवैधानिक समर्थन मिला होता है। भारत में एमएसएमई के तहत कुल औद्योगिक उपक्रमों का 90 प्रतिशत उद्योग शामिल है।
कृषि के बाद इस क्षेत्र से सबसे ज्यादा रोजगार मिलता है। 2006-07 में 312.51 लाख लोगों को इस क्षेत्र से रोजगार मिला था। आजकल सेबी के पूर्व अध्यक्ष एम दामोदरन छोटे सेवा उद्योग क्षेत्र के लिए एक अलग स्टॉक एक्सचेंज तक की बात कर रहे हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल 1 करोड 25 लाख एमएसएमई हैं और देश के कुल औद्योगिक उत्पादन में इसका हिस्सा 50 प्रतिशत है। बड़े एमएसएमई निर्यातों में बने बनाए कपड़े, रसायन और दवाइयां, इंजीनियरिंग सामान,प्रसंस्कृत भोजन,चमड़े के सामान और सामुद्रिक उत्पाद आदि शामिल हैं।