भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बैंकों को वृद्धि के लिए आक्रामक रणनीतियों और सदाबहार लोन को लेकर आगाह किया है। इसके साथ ही उन्होंने बैंकों से कारोबारी संचालन की खामियों को दूर करने के लिए कहा है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों के बोर्ड सदस्यों को संबोधित करते हुए दास ने ये बातें कहीं।
दास ने कहा कि यह देखा गया है कि कुछ बैंक निगरानी प्रक्रिया के दौरान लोन की स्थिति को छिपाने के लिए अनूठे तरीकों का सहारा ले रहे थे, जिनमें से एक है लोन की अदायगी नहीं होने पर उसे सदबहार तरीके से आगे बढ़ाया दिखाया जा रहा था।
उन्होंने कहा, ‘इस तरह की कार्यप्रणाली से सवाल उठता है कि ऐसे स्मार्ट तरीके किसके हित में काम करते हैं। मैंने इन उदाहरणों का उल्लेख ऐसी कार्यप्रणालियों पर नजर रखने के लिए आप सभी को संवेदनशील बनाने के लिए किया है।’
सदाबहार लोन उसे कहा जाता है जिसमें बैंक कृत्रिम तरीके से ऋण को मानक ऋण बनाए रखते हैं। बीते दशक में गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA) में बढ़ोतरी के पीछे यह एक प्रमुख कारण था। 2016 में नियामक ने बैंक के खातों की विशेष समीक्षा की थी, जिसे परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा के तौर पर जाना जाता है। इस समीक्षा में ऐसे ऋण पाए गए जिन्हें NPA में वर्गीकृत करने की जरूरत थी। इससे फंसे कर्ज में इजाफा हुआ है।
गैर-निष्पादित आस्तियों के अनुपात – दिसंबर में सकल NPA 4.41 फीसदी और शुद्ध NPA 1.16 फीसदी था – का हवाला देते हुए गवर्नर ने कहा कि 16.1 फीसदी पूंजी पर्याप्तता अनुपात के साथ बैंकिंग क्षेत्र मजूबत और स्थिर बना हुआ है लेकिन इसमें आत्ममुग्धता की गुंजाइश नहीं है। दास ने कहा, ‘हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जब चीजें ठीक चल रही होती हैं तो जोखिमों को अक्सर अनदेखा या भुला दिया जाता है।’
RBI गवर्नर ने दिल्ली में 22 मई को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बोर्ड सदस्यों को संबोधित किया था और 29 मई को निजी क्षेत्र के बैंकों के बोर्डों के साथ उन्होंने बैठक की।
दास ने कहा कि बैंकों का कारोबारी मॉडल मजबूत और कुशल होना चाहिए। साथ ही उन्होंने बैंकों को आक्रामक वृद्धि की रणनीति के प्रति आगाह करते हुए परिसंपत्ति-देनदारी प्रबंधन पर जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘अति आक्रामक वृद्धि, ऋण और जमा दोनों तरह के उत्पादों का कम या अधिक मूल्य निर्धारण तथा जमा/उधारी प्रोफाइल में पर्याप्त विविधीकरण का अभाव बैंकों को उच्च जोखिम में डाल सकता है।’
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दास ने कहा कि नियामक द्वारा बैंकों के संचालन को सुदृढ़ बनाने के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए जाने के बावजूद अभी भी कुछ खामियां बरकरार हैं। उन्होंने कहा कि यह चिंता का विषय है कि कॉर्पोरेट गवर्नेंस के इन दिशानिर्देशों के बावजूद कुछ बैंकों में संचालन को लेकर खामियां सामने आई हैं। यह बैंकिंग क्षेत्र में जोखिम का सबब बन सकता है। उन्होंने कहा कि बैंकों के बोर्डों और प्रबंधन को ऐसी खामियों को दूर करने की जरूरत है।
दास ने कहा कि बैंक का पारिश्रमिक ढांचा विवेकपूर्ण जोखिम लेने वालों को पुरस्कृत करने और गलत निर्णय को हतोत्साहित करने वाला होना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘विवेकपूर्ण जोखिम लेने और अत्यधिक जोखिम लेने वालों के बीच अंतर नहीं करने वाले पारिश्रमिक ढांचे के परिणामस्वरूप जोखिम लेने के प्रति उदासीनता की भावना आती है। बैंकों को अपने आंतरिक जवाबदेरी ढांचे पर पुनर्विचार करना चाहिए ताकि विवेकपूर्ण निर्णय को पुरस्कृत और गलत निर्णय को हतोत्साहित किया जा सके।’
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दास ने बैंकों को कहा कि बैंक आम लोगों के पैसों से कारोबार करता। ऐसे में बोर्ड के निदेशकों और प्रबंधन की जिम्मेदारी है कि वे जमाकर्ताओं के हितों का सर्वोपरि ध्यान रखें। उन्होंने कहा कि बोर्ड के सदस्यों को कोई भी कारोबारी निर्णय लेने से पहले बैंक प्रबंधन से प्रासंगिक जानकारी मांगनी चाहिए।
दास ने कहा कि स्वतंत्र निदेशकों को यह हमेशा याद रखना चाहिए कि उनकी वफादारी बैंक के साथ है, किसी और के साथ नहीं। निदेशकों को वास्तविक या संभावित संबंधित पक्षों के लेनदेन पर नजर रखनी चाहिए।
दास ने कहा कि उन्होंने बैंकों के मुख्य कार्याधिकारियों (CEOs) को सलाह दी है कि सोशल मीडिया पर भ्रामक सूचनाओं से निपटने के लिए मीडिया के साथ बात करें।