भारत सरकार जहां एक ओर नए बुनियादी ढांचे के निर्माण में पूंजीगत व्यय के रूप में 7.5 लाख करोड़ रुपये, जो अब तक की इसकी सर्वाधिक राशि है, खर्च करेगी, वहीं दूसरी ओर भारतीय कंपनियों द्वारा ताजा निवेश अब भी कुछ तिमाहियां दूर है, क्योंकि सरकार के ऑर्डर कुछ अंतराल में आएंगे। यह कहना है कंपनियों के मुख्य कार्याधिकारियों (सीईओ) का।
कंपनी के अधिकारियों ने निजी कंपनियों द्वारा पूंजीगत व्यय की कमी के लिए सरकार द्वारा नए ऑर्डर दिए जाने में देरी, महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था में कानूनी विवाद और श्रमिकों को जुटाने जैसे कुछ कारणों का हवाला दिया है। वर्तमान में रिलायंस इंडस्ट्रीज, अदाणी, टाटा और जेएसडब्ल्यू समूह जैसी कुछ शीर्ष कंपनियों को छोड़कर बहुत कम कंपनियां ही पूंजीगत व्यय में निवेश कर रही हैं। जहां एक तरफ रिलायंस ने अगले तीन वर्षों में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में 10 अरब डॉलर का निवेश करने की घोषणा की है, वहीं दूसरी तरफ अदाणी समूह वर्ष 2030 तक अक्षय ऊर्जा और पारिस्थितिकी तंत्र में 70 अरब डॉलर का निवेश करेगा। टाटा समूह नई क्षमता मेंं निवेश करने के बजाय एयर इंडिया और नीलाचल इस्पात जैसी नई कंपनियों का अधिग्रहण करने में निवेश कर रहा है। आदित्य बिड़ला समूह ने अगले दशक के लिए कैपेक्स महोत्सव के संबंध में बात की है और यह एक नए पेंट कारोबराब में निवेश कर रहा है।
मुख्य कार्याधिकारियों ने कहा कि कोविड-19 वायरस के नए स्वरूप, जिंसों की अधिक कीमतों, विशेष रूप से सेमीकंडक्टर से संबंधित सामग्री की कमी जैसी चुनौतियों से सुधार पर असर पड़ेगा।
लार्सन ऐंड टुब्रो के मुख्य वित्तीय अधिकारी शंकर रमन ने कहा कि बढ़ा हुआ सरकारी खर्च निश्चित रूप से एक सकारात्मक कदम है, लेकिन यह निजी क्षेत्र द्वारा निवेश को कुछ अंतराल के बाद सक्रिय करेगा। रमन ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि यह 24 से 36 महीने पहले होने वाला है। यह वित्त वर्ष 23 की अंतिम तिमाही तक जोर पकडऩा शुरू करेगा और फिर वित्त वर्ष 24 में स्थिर प्रगति नजर आएगी। उन्हें लगता है कि वित्त वर्ष 22 के अंत तक देश की आर्थिक वृद्धि 9.4 प्रतिशत से कुछ नरम हो सकती है, क्योंकि निम्न आधार का असर कम हो जाएगा। रमन ने कहा कि प्रत्यक्ष रूप से यह 100 आधार अंक तक कम होगा।
हिटाची एनर्जी इंडिया के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी (भारत और दक्षिण एशिया) एन वेणु ने कहा कि हो सकता है कि कारोबार अपने मूल्य निर्धारण में प्रतिस्पर्धी बने रहने के तरीके खोज रहे हों। इससे कुछ समय के लिए सनराइज क्षेत्रों में ताजा निवेश के वास्ते बाजार की तलाश भी प्रभावित हो सकती है। हमें लगता है कि औद्योगिक पूंजीगत व्यय कैलेंडर वर्ष 2022 की दूसरी छमाही तक ही जोर पकड़ेगा। कंपनी की योजना ग्रीनफील्ड और विस्तार परियोजनाओं में 200 से 250 करोड़ रुपये का पूंजीगत व्यय करने की है।
सरकार की नीतियों का जोर बुनियादी ढांचे के निर्माण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने पर है। सरकार को इस बात की भी उम्मीद है कि उसके नए ऑर्डर का गुनात्मक असर पड़ेगा और निजी पूंजीगत व्यय सक्रिय होगा। कॉरपोरेट क्षेत्र के प्रमुखों का कहना है कि पूंजीगत व्यय का यह गुनात्मक असर केवल एक वर्ष तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि इसका असर तीन से चार गुना के संयुक्त असर के साथ अगले कुछ वर्षों तक विस्तृत है।
