संसद में आज वित्त वर्ष 2020-21 की आर्थिक समीक्षा पेश की गई। मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने कोविड-19 महामारी के दौरान सरकार के कदमों का मजबूती से बचाव किया है। इसके साथ ही आगामी बजट में बढ़ते कर्ज और राजकोषीय घाटे को ज्यादा तवज्जो देने की जरूरत नहीं है।
समीक्षा में 2020-21 की पहली तिमाही में तेज गिरावट के बाद अर्थव्यवस्था ‘वी-वर्ण के सुधार’ यानी जोरदार तेजी का जिक्र किया गया है। दूसरी छमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्घि में गिरावट काफी हद तक कम हुई है और अर्थव्यवस्था में उम्मीद से ज्यादा तेज सुधार देखा गया। समीक्षा में आगे कहा गया कि आपूर्ति पक्ष में सुधारों को बढ़ावा देने, बुनियादी ढांचे पर निवेश, टीकाकरण तथा विनिर्माताओं के लिए प्रोत्साहन आधारित योजना जैसे लक्षित पहल से वित्त वर्ष 2021-22 में जीडीपी की वृद्घि दर 11 फीसदी रह सकती है।
महामारी से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने 2020-21 के लिए सकल बाजार उधारी लक्ष्य को बजट अनुमान 7.8 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 12 लाख करोड़ रुपये कर दिया है। राज्य सरकारों की उधारी भी 40 फीसदी से ज्यादा बढ़ी है। समीक्षा में कहा गया है कि उधारी में बढ़ोतरी लगातार राजकोषीय प्रोत्साहन देने की सरकार की प्रतिबद्घता को दर्शाती है। समीक्षा में स्वीकार किया गया कि दुनिया भर में कर्ज का स्तर ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गया है। हालांकि सुब्रमण्यन ने कहा कि भारत में वृद्घि की संभावना को देखते हुए कर्ज स्थायी समस्या नहीं होगी क्योंकि देश में ब्याज दरें ऐतिहासिक रूप से काफी नीचे हैं।
2019-20 में देश की अर्थव्यवस्था में वृद्घि को संशोधित कर 4 फीसदी कर दिया गया है। महामारी के कारण इसके आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। सरकार के राजकोषीय दबाव को देखते हुए समीक्षा में दावा किया गया कि अधिक नोट छापने से जरूरी नहीं है कि मुद्रास्फीति में इजाफा होगा लेकिन इसे परियोजनाओं में सकारात्मक सामाजिक मूल्यों के साथ निवेश किया जाता है तो इसका लाभ लोगों को मिलेगा।
समीक्षा में महामारी के दौरान भारत की स्थिति अनूठी रही। यहां अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार हुआ और संक्रमण का दूसरा दौर भी नहीं आया। महामारी के दौरान बैंक कर्ज में रियायत को आवश्यक बताया गया लेकिन 2008 में वित्तीय संकट से सबक लेते हुए यह भी कहा गया कि इन रियायतों को शीघ्र वापस लेना चाहिए। समीक्षा में कहा गया कि यह आपातकालीन दवा की तरह था और इसके दूसरे प्रतिकूल असर भी हो सकते हैं। ऐसे में रियायतों को वापस लेने के तत्काल बाद बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता की समीक्षा करनी चाहिए।
बढ़ते कर्ज को देखते हुए क्रेडिट रेटिंग घटाए जाने को समीक्षा में सही नहीं ठहराया गया। इसमें तर्क दिया गया कि भारत में कर्ज अदा करने की इच्छा और क्षमता है, जिसे पहले भी साबित किया गया है। समीक्षा में वैश्विक रेटिंग एजेंसियों पर निशाना साधते हुए कहा कि यह देश के बुनियादी मजबूती को सही नहीं ठहराती है।