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आईबीसी की राह में बड़ी बाधा हैं विभिन्न पक्षों की याचिकाएं

Last Updated- December 12, 2022 | 9:02 AM IST

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विभिन्न पक्षों द्वारा दायर याचिकाओं के कारण ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवाला संहिता (आईबीसी) की राह में गंभीर रोड़े हैं। इसमें कहा गया है कि एक प्रभावी कानूनी व्यवस्था की जरूरत है। समीक्षा में कहा गया है कि समाधान के मामलों में न्यायालय की व्यवस्था एकमात्र बहुत अहम मार्ग बनी हुई है और विवाद समाधान के क्षेत्र में प्रदर्शन और समझौते को लागू करना भारत में चिंता का विषय बना हुआ है, इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
समीक्षा में विश्व बैंक की कारोबार सुगमता रिपोर्ट, 2020 का हवाला देते हुए कहा गया है कि भारत में वाणिज्यिक कॉन्ट्रैक्ट से संबंधी मामलों के समाधान में औसतन 1,445 दिन लगते हैं, जबकि ओईसीडी के उच्च आय वाले देशों में 589.6 दिन और सिंगापुर में 120 दिन लगते हैं। रिपोर्ट में यह भी दिखाया गया है कि भारत में याचिका की लागत दावे के मूल्य का करीब 31 प्रतिशत है। यह ओईसीडी देशों (21 प्रतिशत) और भूटान (0.1 प्रतिशत) की तुलना में बहुत ज्यादा है।
आईबीसी 2016 मेंं पेश किया गया और पहली 12 कंपनियों को कर्ज समाधान के लिए जून 2017 में भेजा गया। वहीं भूषण पावर जैसे कुछ बढ़े खाते अभी भी न्यायालय में लंबित हैं क्योंकि पूर्व प्रवर्तकों और अन्य सरकारी एजेंसियों ने याचिका दायर कर रखी है। समीक्षा में कहा गया है कि कांट्रैक्ट के प्रवर्तन में भारत का प्रदर्शन वल्र्ड रूल आफ लॉ इंडेक्स, 2020 में भी देखा जा सकता है, जहां 128 देशों में भारत 69वें स्थान पर है।
समीक्षा में कहा गया है, ‘दीवानी न्याय अकारण देरी का विषय नहीं की श्रेणी में हमारा प्रदर्शन बेहद खराब है और हमें 123वें स्थान पर रखा गया है।’
समीक्षा पर प्रतिक्रिया देते हुए शार्दूल अमरचंद मंगलदास ऐंड कंपनी में पार्टनर मीशा ने कहा कि आर्थिक समीक्षा में ऋणशोधन अक्षमता और दिवाला मामलों में न्यायिक और प्रक्रिया संबंधी देरी को कम करने पर जोर दिया गया है।
उन्होंने कहा, ‘हालांकि आईबीसी को लागू किए जाने से गति आई है, लेकिन यह उम्मीद की गई है कि आईबीसी के तहत ज्यादा व्यवस्थित न्याय व्यवस्था होनी चाहिए। नई प्रक्रिया के साथ बेहतर परिचय होना चाहिए और न्यायिक व्यवस्था मजबूत होनी चाहिए। साथ ही प्री पैक्स और अन्य गैर औपचारिक/हाइब्रिड दिवाला समाधान व्यवस्था की आने वाले वर्षों में उम्मीद की जानी चाहिए, जिससे कि आगे देनी में और कमी करने में मदद मिल सके।’
समीक्षा में आगे कहा गया है कि व्यवस्था के पहले के मसलों को निपटाने के लिए कानूनी व्यवस्था की जरूरत नहीं है बल्कि इसका इस्तेमाल पूर्व विवाद समाधान व्यवस्था के रूप में होना चाहिए। समीक्षा में कहा गया है, ‘एक प्रभावी प्रवर्तन व्यवस्था को एकमुश्त धोखाधड़ी से होने वाली अनिश्चितता के कारण होने वाले नकारात्मक परिणाम की पहचान में सक्षम होना चाहिए। देश की कानून व्यवस्था में सुधार करने की जरूरत है जैसा कि पहले की आर्थिक समीक्षाओं में भी कहा गया है।’

First Published - January 29, 2021 | 11:52 PM IST

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