किसानों को ठीक से आर्थिक सहायता मिलने से पर्यावरण संरक्षण में मदद मिल सकती है तथा जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता के नुकसान और जल की कमी की दिक्कतों को दूर किया जा सकता है।
जलवायु परिवर्तन पर वर्तमान क्योटो समझौते के 2012 में समाप्त होने तक 50 देशों में कृषि क्षेत्र दो अरब टन से अधिक कार्बन को अलग और संचित कर सकता है।
किसानों को सब्सिडी के रूप में दिए जाने वाले धन से खाद्य पदार्थों, फाइबर और बायो ईंधन के उत्पादन को प्रोत्साहन मिलता है। इसके साथ ही किसान कार्बन संचय, बाढ़ नियंत्रण, जल संरक्षण और जैव विविधता की रक्षा करने के क्षेत्र में भी काम कर सकते हैं।
खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के वार्षिक प्रकाशन ‘द स्टेट आफ फूड ऐंड एग्रीकल्चर 2007’ में कहा गया है, ‘किसान पर्यावरण संबंधी बेहतर परिणाम दे सकते हैं, बशर्ते उन्हें प्रोत्साहन दिए जाने की जरूरत है।’
कृषि, कार्बन रिसाव के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस क्षेत्र में ग्रीन हाउस गैसों, मुख्यत: मिट्टी में कार्बन, पौधों और पेड़ों को पृथक और संचित कर अपना योगदान दे सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पेड़ों के कटान में कमी, पौधारोपण, जोत में कमी, जमीन मिट्टी बढ़ाने और हरे भरे क्षेत्रों का विकास ऐसे उदाहरण हैं जिससे 2003 से 2012 के बीच 50 देशों में 2 अरब टन कार्बन संचित किया जा सकता है।’
पर्यावरण के क्षेत्र में योजनाबध्द अनुदान देकर किसानों के भूमि के प्रयोग की योजनाओं में बेहतरी लाई जा सकती है। इससे कृषि को पर्यावरण के अधिक निकट बनाया जा सकता है। इसके लिए किसानों को सीधे भी धन दिया जा सकता है और उपभोक्ताओं को पर्यावरण के अनुकूल तैयार किए गए उत्पादों को प्राथमिकता देने का प्रोत्साहन देकर भी किया जा सकता है। छायादार क्षेत्र में उगाए गए कॉफी के बीज के बारे में दी गई रिपोर्ट में भी यह कहा गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पूरी दुनिया में पर्यावरण कार्यक्रम के तहत सैकड़ों प्रोत्साहन योजनाएं चलाई जा रही हैं। खासकर जंगलों को बचाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन विकासशील देशों में किसानों और कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए चल रही योजनाएं बहुत कम हैं।’ इस रिपोर्ट की भूमिका में एफएओ के निदेशक जैक्स डाओफ ने लिखा है, ‘कृषि क्षेत्र में काम कर रहे लोग अन्य किसी भी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की तुलना में ज्यादा जमीन और ज्यादा पानी का प्रयोग करते हैं।
इन लोगों में अन्य की तुलना में पृथ्वी की जमीन, पानी, वायुमंडल, और जैविक संसाधनों को संरक्षित रखने की अधिक क्षमता है। दो अरब से ज्यादा लोगों की जीविका कृषि और फसलों से जुड़ी हुई है।’ जनसंख्या वृध्दि, तेजी से हो रहे आर्थिक विकास, बायो ईंधन की बढ़ती मांग और पर्यावरण परिवर्तन जैसे मुद्दे पूरी दुनिया में दबाव बना रहे हैं। 2050 तक जनसंख्या 6 अरब से बढ़कर 9 अरब होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
कृषि क्षेत्र पर इसका सीधा दबाव पड़ेगा। इनके भोजन की जरूरतों को पूरा करने के लिए पैदावार में जोरदार बढ़ोतरी करनी पड़ेगी।एक अन्य एफएओ के अधिकारी का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण भुगतान को अगर सही ढंग से डिजाइन किया जाए तो यह विकासशील देशों के उन एक अरब लोगों को लाभ पहुंचाएगा जो वास्तव में खस्ताहाल जिंदगी जी रहे हैं। उन्होंने कहा कि बहरहाल इस कोष के उपयोग में बहुत सावधानी और निगरानी की जरूरत होगी।