सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय अगले साल फरवरी से घरेलू आय सर्वेक्षण (एचआईएस) शुरू करने के लिए तैयार है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्री राव इंद्रजित सिंह ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा कि इस सर्वेक्षण का उपयोग ग्रामीण एवं शहरी परिवारों की औसत आय की गणना में किया जाएगा। सिंह ने एक खास बातचीत में कहा, ‘ग्रामीण और शहरी परिवारों की औसत आय का अनुमान लगाने के उद्देश्य से मंत्रालय ने फरवरी 2026 से घरेलू आय सर्वेक्षण शुरू करने की योजना बनाई है।’
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) का यह सर्वेक्षण भारतीय परिवारों की आय संबंधी आंकड़े जुटाने के नए प्रयासों को दर्शाता है। यह अभी इस्तेमाल हो रहे घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण के मुकाबले देश में जीवन स्तर, गरीबी, आय एवं धन संबंधी असमानताओं और उपभोक्ता व्यवहार की बेहतर तस्वीर प्रदान करेगा।
एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘प्रस्तावित सर्वेक्षण उपभोग व्यय सर्वेक्षण की जगह नहीं लेगा। आय सर्वेक्षण मुश्किल है, लेकिन समिति कुछ अन्य देशों द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली पर काम कर रही है और सीख रही है। परिवारों से जानकारी हासिल करना एक चुनौती होगी मगर समिति सभी पहलुओं पर गौर कर रही है।’
प्राइस के मुख्य कार्याधिकारी राजेश शुक्ला का कहना है कि भारत में घरेलू आय पर भरोसेमंद आंकड़ों की कमी है। उन्होंने बताया कि पिछले प्रयासों के दौरान मौसमी प्रभाव, नियोक्ता परिवारों से खाते नहीं मिलने, सैंपलिंग इकाई के चयन में अस्पष्टता, वस्तु के रूप में भुगतान की गई मजदूरी के कारण छिपी हुई आय आदि के कारण विश्वसनीय आंकड़े जुटाने में परेशानी हुई थी।
शुक्ला ने कहा, ‘इन्हीं कारणों से एनएसओ शायद घरेलू आय संबंधी आंकड़े जुटाने से परहेज करता रहा। इसलिए घरेलू व्यय सर्वेक्षण पर अधिक जोर दिया गया। मगर इस प्रक्रिया की शुरुआत एक स्वागत योग्य कदम है क्योंकि पहले के प्रयासों के अपेक्षित परिणाम नहीं मिले थे।’
एनएसओ ने अपने 9वें (1955) और 15वें (1959) दौर में पारिवारिक आय संबंधी आंकड़े जुटाने के प्रयास किए थे। मगर घरेलू आय पर एकत्र किए गए आंकड़े को एनएसओ रिपोर्ट में प्रकाशित नहीं किया गया था। बाद में उसने अपने 19वें (1964) और 24वें (1969) दौर (जुलाई 1969-जून 1970) में एकीकृत घरेलू सर्वेक्षण (आईएचएस) के हिस्से के तहत आय और वितरण संबंधी आंकड़े जुटाए। मगर ऐसा पाया गया कि इन सर्वेक्षण के जरिये किए गए आय अनुमान उपभोग एवं बचत के अनुमानों से कम थे।
पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् प्रणब सेन का कहना है कि पहले किए गए सर्वेक्षण की एक प्रमुख कमी यह थी कि भारत में लोगों की आय के विभिन्न स्रोतों का पता नहीं लगाया जा सका। उदाहरण के लिए ग्रामीण इलाकों में लोग कम से कम 3 व्यवसायों और शहरी इलाकों में कम से कम 2 व्यवसायों का खुलासा करते हैं। इसके अलावा किराया, निवेश आदि अतिरिक्त स्रोत भी होते हैं।
सेन ने कहा, ‘सरकार आय संबंधी आंकड़े तैयार करने के अपने प्रयासों में बुरी तरह विफल रही है। इस बात पर आम सहमति दिख रही है कि आंकड़े जुटाना काफी कठिन है क्योंकि लोग खुद अपनी आय का खुलासा नहीं करना चाहते हैं।’
किसान परिवारों का स्थिति का आकलन करने वाले सर्वेक्षण (एसएएस) के 59वें दौर (2003) में एनएसओ ने आय संबंधी आंकड़े जुटाने का प्रयास था। मगर वह प्रयास किसान परिवारों तक ही सीमित था और इसलिए वह कृषि पर निर्भर सभी परिवारों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। आय एवं उपभोग स्तर में अंतर जैसी तमाम कमियों के बावजूद एसएएस भारत में ग्रामीण परिवारों की आय पर जानकारी का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है।
सेन ने कहा, ‘अगर हम आय के आंकड़े जुटा सके तो हमारे पास देश में गरीबी और धन असमानता की बेहतर तस्वीर हो सकती है क्योंकि उन्हें आय के आंकड़ों पर आधारित माना जाता है खपत आंकड़ों पर नहीं। चूंकि उच्च आय वाले लोग अपनी सारी आय का उपभोग नहीं करते हैं, इसलिए व्यय सर्वेक्षण का उपयोग करते समय समूहों के बीच असमानता को कम करके आंका जाता है।’