नई दिल्ली में भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की वार्षिक आम बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि भारतीय कंपनियों को लागत कीमतों में हो रही बढ़ोतरी पर नियंत्रण करना चाहिए ताकि मूल्यों को संतुलित रखा जा सके।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कंपनियों को कर रियायत की सुविधाओं और शुल्क कटौती का फायदा उपभोक्ताओं को प्रदान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि घरेलू विकास का लक्ष्य तब ही अच्छा रहेगा जब हम मूल्यों को स्थिर रखने में कामयाब होंगे। इससे विकास की गति को भी बढावा मिलेगा।
उन्होंने कहा कि वर्तमान महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है और इसके लिए हमने कई कदम भी उठाए हैं। वह इस बात के प्रति आश्वस्त हैं कि महंगाई को नियंत्रित कर लिया जाएगा ।
बढ़ती महंगाई को लेकर आलोचना का सामना कर रहे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुद्रास्फीति का मुकाबला करने के लिए राजनीतिक सामंजस्य और उद्योग जगत से मदद की अपील की है। महंगाई को तात्कालिक चुनौती बताते हुए उन्होंने कहा, ‘इस समस्या पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया पर्याप्त नहीं रही हैं।’
सिंह ने कहा कि भारत को कृषि संकट के दौर से गुजर रहे वैश्विक खाद्य अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली के प्रबंधन का हिस्सा बनने की जरूरत है। यहां उद्योग संगठन सीआईआई की सालाना बैठक के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में वित्तीय प्रबंधन सरकार के लिए एक प्रमुख चिंता है क्योंकि ‘पैसे पेड़ पर नहीं उगते।’
दुनिया को प्रभावित कर रहे ऊर्जा, खाद्य एवं वित्तीय आदि संकटों के प्रति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक ध्यान नहीं दिए जाने से निराश प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि इस तरह के मुद्दों के प्रबंधन में भारत की आवाज सुननी होगी। उन्होंने कहा, भारत का इन वैश्विक चुनौतियों के प्रबंधन में भाग लेने का अधिकार एवं उत्तरदायित्व बनता है। सिंह ने कहा, ‘इस तरह के मामलों में भारत की आवाज सुननी ही होगी।
वह चाहे विश्व खाद्य अर्थव्यवस्था का प्रबंधन हो, ऊर्जा अर्थव्यवस्था, वित्तीय अर्थव्यवस्था, या वैश्विक सुरक्षा के प्रबंधन का मामला हो।’ मौजूदा ऊर्जा संकट की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिऐ जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले दो साल में दुनिया की तेल मांग में मात्र एक प्रतिशत की वार्षिक बढ़ोतरी हुई है जबकि कच्चे तेल की कीमत डालर के लिहाज से 90 प्रतिशत बढ चुकी है। उन्होंने कहा, ‘मुझे इस बात की गहरी निराशा है कि इस तृतीय ऊर्जा संकट के प्रति दुनिया का ध्यान हमारी अपेक्षा के अनुरूप नहीं गया।’