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तेल बांडों के परिपक्व होने से बढ़ेगा घाटा

Last Updated- December 05, 2022 | 7:01 PM IST

मार्च 2002 में जारी किए गए तेल बॉन्ड के पहले बैच की अवधि इस वित्तीय वर्ष में समाप्त होने जा रही है। इस वजह से सरकार पर 14,300 करोड रुपये का बोझ पड़ने की संभावना है।


9,400 करोड रुपये का तेल बॉन्ड मार्च 2002 में जारी किया गया था और बाद में  2000 करोड़ रुपये के तेल बॉन्ड को मार्च 2006 तक दो किश्तों में जारी किया गया था। इन बॉन्डों से 2008-09 में राजकोषीय घाटा बढ़ने की संभावना है। इस घाटे के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.5 प्रतिशत यानी 0.30 प्रतिशत होने का अनुमान है।चालू वित्तीय वर्ष में 1,33,287 करोड रुपये का राजकोशीय घाटा होने का अनुमान है।


एक परामर्शदात्री कंपनी से जुड़े एक उद्योग विशेषज्ञ ने कहा कि मार्च 2009 में परिपक्व होने वाले इस बॉन्ड के मुद्दे पर इस बजट में भी कोई चर्चा नहीं की गई। हालांकि वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि तेल, खाद्य-पदार्थों और खाद के बॉन्डों को राजकोषीय खाते के अंतर्गत रखा जाएगा।


सरकार ने मार्च 2002 से 10 किश्तों में तेल कंपनियों को 67,000 करोड रुपये के तेल बॉन्ड जारी किए हैं। इन बॉन्डों पर 6.96 प्रतिशत की दर से ब्याज लगाया गया था जबकि 28 मार्च में जारी किए गए 9,076 करोड रुपये के तेल बॉन्डों पर 8.40 प्रतिशत का ब्याज दर लगाया गया था।


सरकार तेल, खाद और खाद्य-पदार्थों के बॉन्ड जारी कर कंपनियों को राहत प्रदान करती है। जब वित्तीय घाटे की गणना की जाती है, उस समय इन बॉन्डों को खाते में नहीं जोडा जाता है। हालांकि इस बार के बजट में ऐसा कहा गया था कि तेल बॉन्डों के खाते में पारदर्शिता लाई जाएगी।


2007-08 के घाटे को पाटने के लिए इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी), भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल), और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) को सरकार 41,000 करोड़ रुपये का तेल बॉन्ड जारी कर सकती है।


ये तेल बॉन्ड भारत सरकार तेल कंपनियों को जारी करती है ताकि ये कंपनियां पेट्रोल, डीजल, एलपीजी और किरोसिन को क म कीमतों पर बेचे। इससे पहले इन बॉन्डों को  भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को रियायती दरों पर बेचा करती थी। तेल कंपनियों के घाटे को पूरा करने के लिए सरकार बार-बार बांड जारी करती है। हालांकि इस बात का सार्वजनिक उपक्रम विरोध करते हैं।

First Published - April 3, 2008 | 10:33 PM IST

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