अर्थव्यवस्था

Interview- वित्तीय संकट को लेकर हमेशा चिंतित रहता हूं: मिशिगन यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री अमियतोष पूर्णानंदम

'भारत के वित्तीय क्षेत्र में जोखिम के प्रमुख क्षेत्रों में से असुरक्षित ऋण होगा। सट्टेबाजी वाले बाजार में खुदरा निवेशकों द्वारा ढेर सारी खरीदारी चिंता का विषय है।'

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रुचिका चित्रवंशी   
Last Updated- October 14, 2024 | 11:20 PM IST

भारत को 2047 तक विकसित देश बनने के लिए क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने और मानव संसाधन पर निवेश करने की जरूरत है। मिशिगन विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री अमियतोष पूर्णानंदम ने रुचिका चित्रवंशी से बातचीत में कहा कि सरकार को निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए बैंकों द्वारा दीर्घकालिक जोखिम उठाने को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। प्रमुख अंश…

भारत 2047 तक विकसित देश बनना चाहता है। क्या हम सही दिशा में हैं?

आपको अगले 25 साल तक 7 से 8 फीसदी वृद्धि दर की जरूरत है। इसमें निश्चित रूप से बहुत अनिश्चितताएं हैं। इसका कोई ठोस उत्तर दे पाना कठिन है। बुनियादी ढांचा क्षेत्र में सुधार संबंधी कदम निश्चित रूप से सही दिशा में हैं। बुनियादी ढांचे पर निवेश करने पर रिटर्न लंबे समय में आता है।

मेरे ख्याल से मूल रूप से दो कमियां हैं : पहला, मानव पूंजी में निवेश। भौतिक पूंजी में निवेश पर ध्यान ज्यादा है, जो बढ़िया है। इसकी जरूरत है। लेकिन मानव पूंजी में अभी बहुत खामी है। दूसरा, क्षेत्रीय असमानता बड़ा संकट बन रहा है। अगर आप बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को देखें तो बड़ी असमानता नजर आती है।

वृद्धि सार्वजनिक क्षेत्र के व्यय से हो रही है। निजी निवेश में सुधार के लिए क्या करने की जरूरत है?

देश में 2007, 2008 तक निजी निवेश बेहतर था। 2007, 2008 में बड़े निवेश हुए और बाद में फंसे कर्ज के मामले आए। जब हमने बैंकिंग सेक्टर को साफ-सुथरा कर दिया है, तो उम्मीद यह थी कि निजी निवेश गति पकड़ेगा।

जब आप बैंकिंग सेक्टर की गैर निष्पादित संपत्ति सुधारते हैं, तो कभी-कभी बैंक भी बहुत अधिक जोखिम से बचने लगते हैं। अगर आप जोखिम से बहुत ज्यादा बचने की कोशिश करेंगे, तो आप वास्तव में एनपीए कम कर देंगे। लेकिन तब आप उत्पादक निवेश नहीं कर रहे होते। ऐसे में हमें बेहतर दीर्घावधि जोखिम को प्रोत्साहन देने की जरूरत है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में बहुत ज्यादा वित्तीयकरण को लेकर आप कितने चिंतित हैं?

स्वाभाविक रूप से यह चिंता की बात है। आप कल्पना करें कि बड़ी गिरावट आती है, तो हर कोई धन गंवाना शुरू करता है तो सवाल है कि क्या यह रुक सकेगा? या क्या इसके लिए व्यवस्थागत संस्थानों को सहायता देने की जरूरत होगी? एनबीएफसी से लेकर बैंक और ट्रेडिंग कंपनी तक पूरी वित्तीय श्रृंखला एक दूसरे से जुड़ी हुई है। अगर कोई गिरावट होती है तो पूरी श्रृंखला पर इसका असर होगा।

क्या एक और वित्तीय संकट जैसी स्थिति को लेकर चिंतित हैं, जिसका असर पड़ सकता है?

मैं हमेशा वित्तीय संकट को लेकर चिंतित रहता हूं। हम सभी को वित्तीय संकट को लेकर चिंतित होना चाहिए, क्योंकि रोजगार नीति बनाने वाले और हमारे जैसे शिक्षाविद दरअसल यही कहते हैं कि जब आप सोते हैं, ठीक उसी समय चोर आते हैं। हां, हम चिंतित हैं। अच्छी बात यह है कि भारत की बैंकिंग वस्था की झटकों को सहने की क्षमता सुधरी है, क्योंकि अब उनके पास पर्याप्त पूंजी है।

ऐसे कौन से जोखिम हैं, जिसकी वजह से आपको चिंता है?

भारत के वित्तीय क्षेत्र में जोखिम के प्रमुख क्षेत्रों में से असुरक्षित ऋण होगा। सट्टेबाजी वाले बाजार में खुदरा निवेशकों द्वारा ढेर सारी खरीदारी चिंता का विषय है। फिनटेक को उधारी में वृद्धि एक और मसला है, अच्छा पहलू है जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता।

नवोन्मेष और कड़े नियमन के बीच फिनटेक को आप किस रूप में पाते हैं?

भारत ने निश्चित रूप से कुछ शानदार काम किए हैं, जिसमें यूपीआई से भुगतान शामिल है। इसी तरह से ट्रेड में उसी दिन में निपटान की व्यवस्था है। अमेरिका में अभी यह नहीं है। ज्यादातर समस्याओं का समाधान बहुत आसान है। सवाल यह है कि ऐसा करने की इच्छा है या नहीं। इसका एकमात्र तरीका यह हो सकता है कि फिनटेक के पास अधिक इक्विटी पूंजी होनी चाहिए।

First Published : October 14, 2024 | 10:59 PM IST