प्रदूषण की मार 40 साल से अधिक पुराने अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले (International Trade Fair 2024) के कारोबार पर भी पड़ रही है। प्रगति मैदान में यह मेला 14 से 27 नवंबर तक है। प्रदूषण फैलाने वाले भारी वाहनों पर लगी बंदिशों के कारण माल की आवाजाही प्रभावित हो रही है। दिल्ली में बीते कुछ दिनों से वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 400 से ऊपर यानी गंभीर श्रेणी में चल रहा है। प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ग्रेप का चौथा स्तर लागू है।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में जयपुर के रजाई कारोबारी महेश ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि शुरुआती पांच दिनों को कारोबारी दिवस माना जाता है। इन दिनों में ज्यादातर कारोबारी सौदे होते हैं। लेकिन इस साल पिछले साल से आधे भी सौदे नहीं हुए हैं। बहुत कम लोग खरीदारी करने आए। लोग घर से बाहर निकलने से कतरा रहे हैं।
यह मेला 19 नवंबर से आम लोगों के लिए खुल चुका है। लेकिन इन दिनों में भी बहुत कम बिक्री हो रही है। सामान्य दिनों में एक दिन में कम से कम 30 से 40 हजार रुपये की बिक्री होनी चाहिए। लेकिन 15 से 20 हजार रुपये का माल ही बिक पा रहा है।
कश्मीर के शॉल और सूट के कारोबारी इजाज कहते हैं कि पिछले साल की तुलना में इस साल बिक्री फिलहाल 40 फीसदी कम है। बनारसी साड़ी के कारोबारी इरशाद अहमद ने कहा कि अगर अंतरराष्ट्रीय मेले में एक दिन में 50 हजार रुपये की भी बिक्री न हो तो मेले में आने का क्या फायदा? इस साल 30 हजार रुपये की बिक्री बड़ी मुश्किल हो पा रही है।
लोगों के कम आने से खाना का सामान बेचने वाले दुकानदारों को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। राजस्थान के गजक, गुड़ चिक्की व इसी तरह के अन्य उत्पादन बेचने वाले राजकुमार ने कहा कि मेले में जितनी ज्यादा भीड़ आएगी, उतनी ज्यादा बिक्री होती है। पिछले साल की तुलना में बिक्री 30 से 40 फीसदी कम हो रही है।
मध्य प्रदेश के मुरैना से आए गजक कारोबारी राजेंद्र कुशवाह का भी यही तर्क है। फूड कोर्ट में खान-पान के कूपन देने वाले संतोष ने कहा कि लोगों के कम आने से खाद्य पदार्थों की बिक्री भी कम हो रही है।