देश में 7 चरणों में आम चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर काबू रखना सरकार की बड़ी प्राथमिकता है। खाद्य वस्तुओं की कीमत का सीधा प्रभाव मतदाताओं के मतदान पर पड़ता है। इसके पहले 3 ऐसे मौके रहे हैं, जब खाद्य महंगाई के कारण सरकारें सत्ता से बाहर हुई हैं।
पिछले करीब 1 साल से केंद्र सरकार ने खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर काबू पाने के लिए कई कदमों की घोषणा की है। इसमें निर्यात पर प्रतिबंध लगाना, मार्च 2025 तक ज्यादातर दलहन और खाद्य तेल का शुल्क मुक्त आयात, गन्ने के रस से एथनॉल बनाने पर रोक लगाना, जिससे चीनी की पर्याप्त घरेलू आपूर्ति सुनिश्चित हो सके, शामिल है।
इसके साथ ही पैकेज्ड गेहूं, चावल, आटा, चने की दाल की बिक्री भारत ब्रांड के तहत की गई और उन्हें लोगों को सस्ते दाम पर उपलब्ध कराया गया।
दरों पर काबू पाने के लिए सरकार के पास उपलब्ध गेहूं और चावल के स्टॉक को भी बाजार में उतारा गया।
बहरहाल ज्यादातर विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले महीनों में महंगाई दर का प्रबंधन इस बात पर निर्भर होगा कि रबी की फसल कैसी होती है और मौसम किस तरह का रहता है। अप्रैल से जून महीने के दौरान बहुत ज्यादा और अचानक तापमान बढ़ने से कीमतें बढ़ सकती हैं।
खासकर सब्जियों और खराब होने वाली खाद्य वस्तुओं की कीमत पर इसका असर होगा। इसमें अच्छी खबर यह है कि अब तक सभी संकेतकों से पता चलता है कि 2024 में दक्षिण पश्चिम मॉनसून सामान्य रह सकता है क्योंकि विनाशकारी अल नीनो का असर कम हो रहा है और फायदेमंद ला नीना का असर होने को है।