देश की अर्थव्यवस्था के लिए यह दोहरे झटके की तरह है। सितंबर महीने में खुदरा मुद्रास्फीति में इजाफा हुआ है, वहीं 17 महीने बाद अगस्त में कारखानों के उत्पादन में गिरावट आई है। इससे केंद्रीय बैंक को दिसंबर में एक बार फिर रीपो दर में बढ़ोतरी पर मजबूर होना पड़ सकता है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ओर से आज जारी आंकड़ों के मुताबिक सितंबर में खुदरा मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति बढ़कर 7.41 फीसदी पर पहुंच गई जो अगस्त में 7 फीसदी थी। खुदरा मुद्रास्फीति में इजाफा मुख्य रूप से खाने पीने की चीजों के दाम बढ़ने की वजह से हुआ है। सितंबर में खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति दर 8.6 फीसदी रही।
दूसरी ओर कारखानों का उत्पादन अगस्त में 0.8 फीसदी संकुचित हुआ है। जुलाई में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) 2.2 फीसदी बढ़ा था। खनन (-3.9 फीसदी) एवं विनिर्माण (-0.7 फीसदी) क्षेत्र में नरमी के कारण कारखानों का उत्पादन घटा है। हालांकि अगस्त में बिजली का उत्पादन 1.4 फीसदी बढ़ा है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) लगातार तीसरी तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति को लक्षित दायरे में रखने में विफल रहा है। आरबीआई को मुद्रास्फीति को लक्षित दायरे में रखने में विफल रहने की वजह और आगे उठाए जाने वाले कदमों के बारे में सरकार को पत्र लिखकर विस्तार से बताना होगा।
आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले महीने कहा था कि अगले दो साल में मुद्रास्फीति घटकर 4 फीसदी पर आ सकती है। आरबीआई अधिनियम के मुताबिक केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने मुद्रास्फीति को 4 फीसदी (2 फीसदी घट-बढ़ के साथ) पर रखने का लक्ष्य निर्धारित किया था। लगातार तीन तिमाहियों में औसत मुद्रास्फीति अगर 2 से 6 फीसदी के दायरे से ऊपर रही है जिसे आरबीआई की विफलता के तौर पर देखा जाएगा।
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज में वरिष्ठ अर्थशास्त्री ‘शुभदीप रक्षित ने कहा कि सितंबर में मुद्रास्फीति में वृद्धि को देखते हुए आरबीआई दिसंबर में रीपो दर में 35 आधार अंक का और इजाफा कर सकता है। मुद्रास्फीति फरवरी 2023 तक 6 फीसदी से ऊपर रह सकती है। इसके बाद यह धीरे-धीरे कम होकर वित्त वर्ष 2024 में 4.5 से 5.5 फीसदी पर आएगी।
सितंबर में अनाज, सब्जियों, मसालों, जूते-चप्पल और ईंधन के दामों में इजाफा हुआ है। इसके साथ ही मांस-मछली, तेल एवं दाल आदि की मुद्रास्फीति भी बढ़ी है।
इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि अक्टूबर की शुरुआत में अत्यधिक बारिश से खरीफ की फसल पर असर पड़ेगा और रबी की बोआई में भी देरी होगी। इससे खाद्य पदार्थों की महंगाई बढ़ने का जोखिम बना हुआ है। हालांकि उच्च आधार के कारण चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में मुद्रास्फीति में सालाना आधार पर कुछ नरमी आ सकती है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि सितंबर और अक्टूबर के आईआईपी के आंकड़े इस साल औद्योगिक वृद्धि के लिए अहम होंगे। इन दो महीनों में अगर वृद्धि पांच फीसदी नहीं रहती है तो सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
मुद्रास्फीति की बढ़ती चुनौतियों के मद्देनजर विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने चालू वित्त वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर के अपने अनुमान को घटा दिया है। विश्व बैंक के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 7.5 फीसदी और आईएमएफ के मुताबिक यह 6.8 फीसदी रह सकती है। उधर, भारतीय रिजर्व बैंक ने भी वित्त वर्ष 2023 के लिए वृद्धि दर के अपने अनुमान को 7.2 फीसदी से घटाकर कर 7 फीसदी कर दिया है।
