भारत में खुदरा मुद्रास्फीति मई में और कम होकर 2.82 फीसदी पर आ गई। अप्रैल में खुदरा महंगाई 3.16 फीसदी थी। महंगाई में नरमी को अनुकूल आधार प्रभाव और सब्जियों की कीमतों में दो अंकों में गिरावट तथा बीते छह वर्षों में दालों की कीमतों में सर्वाधिक गिरावट से बल मिला है। महंगाई में कमी आने से भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति को अब अपनी अगली बैठक में दरों पर यथास्थिति बरकरार रखने में मदद मिलेगी। पिछली बार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति में इतनी नरमी फरवरी 2019 में देखने को मिली थी, उस वक्त महंगाई 2.57 फीसदी पर आ गई थी।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा आज जारी आंकड़ों से पता चलता है कि मई में समग्र खाद्य महंगाई 43 महीने के निचले स्तर पर आकर 0.99 फीसदी हो गई है, जो अप्रैल में 1.78 फीसदी थी। इसे मुख्य तौर पर एक साल पहले के मुकाबले सब्जियों की कीमतों में 13.7 फीसदी और दालों की कीमतों में 8.23 फीसदी की गिरावट से बल मिला है। सीपीआई में 7.5 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले मसाले और मांस की कीमतों में भी गिरावट दर्ज की गई है। समीक्षाधीन अवधि में मसालों की कीमतों में 2.82 फीसदी और मांस की कीमतों में 0.39 फीसदी की कमी आई है।
इसके अलावा, खाद्य टोकरी में अंडे (0.64 फीसदी) और चीनी (4.09 फीसदी) जैसे अन्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि की गति भी मई में सुस्त पड़ गई। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इसके अलावा खाद्य तेलों की कीमतों में 17.9 फीसदी की अधिक तेजी चिंतनीय है, जो मार्च 2022 के बाद से नहीं देखी गई, जब रूस-यूक्रेन के बीच संघर्ष शुरू हुआ था। इस कारण लगातार सातवें महीने महंगाई दर दो अंकों में बरकरार रही। हालांकि, फलों की कीमतों में गिरावट आई मगर इनमें 12.7 फीसदी की वृद्धि हुई, जो कई महीनों में पांचवीं दो अंकों की वृद्धि है।
रेटिंग एजेंसी केयरएज रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने कहा, ‘खाद्य तेल की कीमतों में लगातार वृद्धि चिंता का कारण बनी है। इसका प्रमुख कारण तिलहन की बोआई में कमी, वैश्विक कीमतों में वृद्धि और इस क्षेत्र में भारत की आयात पर निर्भरता है। हाल ही में सरकार द्वारा आयातित कच्चे तेलों पर बुनियादी सीमा शुल्क को कम करने के कदम से आगे थोड़ी राहत मिलने की उम्मीद है।’
इक्रा रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि जून में मॉनसून के रुकने के कारण खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ सकती हैं। भले ही मॉनसून समय से पहले आ गया था, लेकिन आगे चलकर फसल की पैदावार में अनुकूल वृद्धि होने के लिए अस्थायी और स्थानिक वितरण भी जरूरी है क्योंकि कम समय में होने वाली अधिक बारिश से खड़ी फसलों को नुकसान पहुंच सकता है और इसलिए इस पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
अस्थिर खाद्य और ईंधन शामिल नहीं किए जाने वाले मुख्य मुद्रास्फीति मई में बढ़कर 4.2 फीसदी हो गई, जो अक्टूबर 2023 के बाद से सर्वाधिक है। इससे अर्थव्यवस्था में स्थित मांग की स्थिति का संकेत मिला है। हालांकि, ईंधन की कीमतों में 2.78 फीसदी तक की कमी आई है, लेकिन यह अगस्त 2023 के बाद नहीं देखे गए स्तर पर बढ़ गई।
मई में व्यक्तिगत देखभाल (13.5 फीसदी), स्वास्थ्य (4.34 फीसदी) और परिवहन (3.85 फीसदी) जैसी सेवाएं महंगी हुई है, जबकि मनोरंजन (2.45 फीसदी) और घरेलू सेवाएं (2 फीसदी) तक सस्ती हुई है। आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण भारत में 2.59 फीसदी और शहरी भारत में 3.07 फीसदी खुदरा कीमतें बढ़ी हैं।