बैंकिंग सिस्टम में टिकाऊ नकदी डालने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा किए गए डॉलर/रुपया खरीद-बिक्री स्वैप के कारण डॉलर/रुपया कॉन्ट्रैक्ट के फॉरवर्ड प्रीमियम में गिरावट आई है। इससे विदेशी बाजारों से कर्ज लेने की इच्छुक भारतीय कंपनियों के लिए हेजिंग की लागत घट गई है।
रिजर्व बैंक की खरीद-बिक्री स्वैप की रणनीति कंपनियों को विदेश से धन जुटाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इससे पूंजी प्रवाह बढ़ेगा और भारत के विदेशी मुद्रा (फॉरेक्स) भंडार को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी। मुद्रा भंडार धीरे-धीरे कम हो रहा है, क्योंकि रिजर्व बैंक रुपये में उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर रहा है।
एक निजी बैंक के ट्रेजरी प्रमुख ने कहा, ‘जब रिजर्व बैंक खरीद-बिक्री स्वैप करता है तो फॉरवर्ड प्रीमियम गिरता है और विदेश से उधार लेने वाली भारतीय कंपनियों के लिए स्वैप लागत घटती है। इससे कंपनियों के लिए उधार लेने की लागत कम हो जाती है। इससे विदेश से कर्ज लेने को प्रोत्साहन मिलता है।’
डॉलर-रुपया 1 साल का फॉरवर्ड प्रीमियम शुक्रवार को घटकर 2.13 फीसदी पर आ गया, जो जनवरी की शुरुआत में इस साल के उच्च स्तर 2.71 फीसदी से बहुत कम है। उन्होंने कहा, ‘खरीद-बिक्री स्वैप के साथ रिजर्व बैंक ने न केवल व्यवस्था में नकदी डाली है, बल्कि वह भारतीय कंपनियों को विदेश से कर्ज लेने को प्रोत्साहित कर रहा है। इससे देश में पूंजी की आवक बढ़ेगी और विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ेगा। परोक्ष रूप से इन स्वैप से भंडार मजबूत करने में मदद मिलेगी।’
अब तक रिजर्व बैंक ने 15 अरब डॉलर का डॉलर/रुपया खरीद बिक्री स्वैप किया है और 10 अरब डॉलर के खरीद-बिक्री स्वैप करने की घोषणा की है।