वर्ष 2050 तक क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के आधार पर वैश्विक खपत में भारत की हिस्सेदारी 16 प्रतिशत होने का अनुमान है और यह 1997 से चार प्रतिशत और 2023 से नौ प्रतिशत अधिक है। मैकन्जी ग्लोबल इंस्टीट्यूट के विश्लेषण वर्ल्ड डेटा लैब ने बीते दिनों जारी अपनी रिपोर्ट ‘निर्भरता और जनसंख्या ह्रास : नई जनसांख्यिकीय वास्तविकता के परिणामों के प्रभाव’ में कहा कि 2050 तक भारत की तुलना में केवल उत्तरी अमेरिका 17 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ अधिक खपत वाला होगा।
पीपीपी विभिन्न देशों में मूल्य के अंतर को समायोजित कर विभिन्न मुद्राओं के मूल्यों की तुलना करने का तरीका है। अगली एक चौथाई सदी में विकास की दौड़ में एशिया के उभरते देश सहित विकसित देशों के बाद जनसंख्या वृद्धि दर में कमी करने वाले (लेटर वेव) देश व क्षेत्र होंगे। लिहाजा लैटिन अमेरिका और कैरेबियन, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका, भारत और उप सहारा अफ्रीका की आधे से अधिक वैश्विक खपत होगी।
लेटर वेव उन देशों व क्षेत्रों को कहा जाता है जहां विकसित देशों के बाद प्रजनन दर में गिरावट आई है। इस अवधि में विकसित एशिया, उत्तरी अमेरिका, ग्रेटर चीन, पश्चिमी यूरोप और केंद्रीय व पूर्वी यूरोप की वैश्विक खपत में हिस्सेदारी 1997 के 60 प्रतिशत से घटकर 2050 तक मात्र 30 प्रतिशत हो सकती है।
शोध के अनुसार इस बदलाव के महत्त्वपूर्ण प्रभाव आ सकते हैं – जैसे भारत में आमदनी और खपत बढ़ने से लोगों की जरूरतों के अनुरूप घरेलू और बहुराष्ट्रीय कंपनियों अपनी उत्पादों व सेवाओं में बदलाव करेंगी। रिपोर्ट ने उजागर किया है कि प्रजनन दर में तेजी से गिरावट होने के कारण जनसंख्या के संतुलन में 2050 तक बदलाव आएगा। विश्व की केवल 26 प्रतिशत आबादी ‘फर्स्ट वेव वाले’ क्षेत्रों में रहेगी जबकि इस क्षेत्र में 1997 तक 42 प्रतिशत आबादी थी। वर्ष 2050 तक शेष आबादी लेटर वेव क्षेत्रों और उप सहारा अफ्रीका देशों में रहेगी। इसका परिणाम यह होगा कि श्रम लेटर वेव वाले क्षेत्रों की ओर स्थानांतरित होगा और वैश्विक स्तर पर दो तिहाई श्रम के घंटे इस क्षेत्र से होंगे।
भारत के बारे में शोध ने सहायता अनुपात के सहित कई मुद्दों पर कई रोचक तथ्य प्रदर्शित किए हैं। सहायता अनुपात 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों की मदद के लिए कार्यशील आबादी है। इस क्रम पहला रोचक तथ्य यह है कि भारत का हालिया सहायता अनुपात 9.8 है और यह अनुपात जन्म व मृत्यु के दायरे और जीवन प्रत्याशा के कारण गिरकर 2050 तक आधा हो जाएगा। इस क्रम में सहायता अनुपात 2100 तक गिरकर 1.9 प्रतिशत हो जाएगा और यह वर्तमान समय के जापान के बराबर होगा।
दूसरा, विश्व में भारत की आबादी 2023 तक 23 प्रतिशत थी और यह 2050 तक गिरकर 17 प्रतिशत हो जाएगी। भारत की आबादी 2100 तक गिरकर विश्व की आबादी का 15 प्रतिशत हो जाएगी। भारत की आबादी 2100 तक 150.5 करोड़ होगी और यह 2023 की तुलना में 5 प्रतिशत अधिक होगी। वर्ष 2019 में भारत की प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर से नीचे गिर गई थी। प्रतिस्थापन दर उन बच्चों की औसत संख्या है जो एक महिला व जनसंख्या को बनाए रखने के लिए चाहिए होती है।
भारत के श्रम बल में महिलाओं की अधिक हिस्सेदारी से खासा बदलाव आएगा। शोध के अनुसार अगर भारत अपने श्रम बल में महिलाओं को 10 प्रतिशत बढ़ाता है तो उसका प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 4-5 प्रतिशत का इजाफा होगा।