वर्ष 2020 के शुरू में कोविड-19 महामारी का स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पडऩे के बाद से वित्तीय दबाव और अस्पष्ट आर्थिक परिदृश्य ने भारतीय उपभोक्ताओं ने अपनी खरीदारी को सीमित करने के लिए बाध्य किया था, लेकिन अब भारत में खपत धीरे धीरे सुधार की राह पर लौट रही है। छोटे पैक और निचली उत्पाद श्रेणियों पर जोर देने के बाद, उपभोक्ता अब गुणवत्ता और मात्रा के साथ समझौता करने की प्रवृत्ति से बाहर निकल रहे हैं।
शुरुआती ट्रेंड प्रख्यात एफएमसीजी कंपनियों द्वारा दर्ज किया गया है, जिनका मानना है कि कई उपभोक्ता श्रेष्ठ ब्रांडेड उत्पादों पर फिर से ध्यान दे रहे हैं, हालांकि फिर भी वे घरेलू बजट में सतर्कता के साथ वृद्घि कर रहे हैं। ब्रांड भरोसे पर समझौता करने के बजाय, ज्यादातर उपभोक्ता चर्चित उत्पादों पर बेहतर सौदे तलाश रहे हैं। स्थानीय उपभोक्ता डिस्क्रेशनरी यानी अतिरिक्त खरीदारी को लेकर अभी कंजूसी कर रहे हैं और पारिवारिक वित्त पोषण को बेहतर ढंग से प्रबंधन करने के लिए अपनी बचत गुणवत्तायुक्त जरूरी उत्पादों की ओर मोड़ रहे हैं।
मैरिको के मुख्य वित्तीय अधिकारी पवन अग्रवाल के अनुसार, जरूरी उत्पादों (कंपनी की पेशकशों का 90 प्रतिशत) के लिए मांग बढ़ रही है। महामारी के प्रभाव के बाद से कंपनी ने नए ट्रेंड के साथ अपने पोर्टफोलियो को अपडेट किया है।
उन्होंने कहा, ‘महामारी ने खपत पैटर्न को भी डिब्बाबंद हेल्दी फूड्स, इम्यूनिटी और न्यूट्रीशन श्रेणियों में केंद्रित किया है और हमारा मानना है कि यह बदलाव स्थायी रहेगा।’
पारले प्रोडक्ट्स के प्रमुख (सीनियर कैटेगरी) मयंक शाह ने कहा, ‘चूंकि अर्थव्यवस्था में सुधार आ रहा है और जरूरतें फिर से बढ़ रही हैं, इसलिए उपभोक्ता प्रत्यक्ष खपत संबंधित उत्पादों पर खर्च घटाने के बजाय अच्छी गुणवत्ता के उत्पादों पर खर्च बढ़ा रहे हैं। दूसरी लहर ने भी उनके इस बदलाव में योगदान दिया है, जिससे भविष्य के लिए बचत करने के बजाय खरीदारी करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है।’
अपना 45 प्रतिशत कारोबार पाउच व्यवसाय से हासिल करने वाले पर्सनल केयर ब्रांड केविनकेयर ने ग्रामीण और शहरी बाजारों में उपभोक्ताओं द्वारा बदलाव दर्ज किया है। कंपनी में एफएमसीजी के मुख्य कार्याधिकारी एवं निदेशक वेंकटेश विजयराघवन ने कहा, ‘हम गैर-ब्रांडेड से ब्रांडेड उत्पादों के संदर्भ में बड़ा बदलाव देख रहे हैं। शहरी बाजारों में गैर-पाउच खरीदारी में कमजोरी दूर हो रही है।’
नेस्ले इंडिया के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक सुरेश नारायणन का भी यही मानना है। उनके अनुसार, परिवारों पर बढ़ते लागत बोझ के बावजूद उपभोक्ता अब प्रतिष्ठित ब्रांडों पर निर्भरता बढ़ा रहे हैं।
हालांकि कुछ खास श्रेणियों में, उपभोक्ता डाउनग्रेड पर लगातार जोर दे रहे हैं, क्योंकि इन दिनों घरों में ही रहना पसंद कर रहे हैं। डाबर इंडिया में कार्यकारी निदेशक (बिक्री) आदर्श शर्मा के अनुसार, डिस्क्रेशनरी खरीदारी पर खर्च में कमी दर्ज की गई है। उन्होंने कहा, ‘हाल के महीनों में यह भी देखा गया कि उपभोक्ताओं ने अपना खर्च सीमित किया और या तो उन्होंने छोटे पैक में खरीदारी पर जोर दिया या बल्क पैक के जरिये ज्यादा वैल्यू पाने की कोशिश की। कुछ खास श्रेणियों में, उन्होंने कम कीमत वाले ब्रांडों पर भी ध्यान दिया है। हालांकि यह एक अस्थायी दौर साबित हो सकता है।’
अग्रवाल का कहना है कि उपभोक्ता खासकर उन उत्पादों पर अपना खर्च घटा रहे हैं जो उनके बाहर निकलने से जुड़े हुए हैं। हमारा मानना है कि जब उपभोक्ता समाज में पूरी तरह आना जाना और फिर से घरों से निकलना शुरू करेंगे तो फिर से डिस्क्रेशनरी उत्पादों के लिए मांग बढ़ेगी।
जहां एफएमसीजी कंपनियां खरीदारी व्यवहार में सकारात्मक बदलाव को लेकर उत्साहित हैं, वहीं वे इस पर नजर लगाए हुए हैं कि क्या यह रुझान त्योहारी सप्ताहों (नवंबर के शुरू में दीवाली के बाद) के बाद भी बरकरार रहेगा।
हालांकि नारायणन को इस साल त्योहारी सीजन बेहतर रहने की उम्मीद है, लेकिन वे मौजूदा बदलाव को लेकर सतर्क रूप से आशान्वित हैं।
(साथ में चेन्नई से शाइन जैकब)
