अमेरिका के साथ व्यापार समझौते के लिए अपने प्रस्ताव और अपनी शर्तों तथा मांगों को अंतिम रूप देने की कवायद भारत ने तेज कर दी है। मगर मामले की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि इसमें भारत अपनी जरूरतों और हितों का पूरा ध्यान रख रहा है।
तेजी इसलिए लाई जा रही है क्योंकि डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन ने साफ कहा है कि वह ऐसे व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करना चाहता है, जिसमें भारत को सभी क्षेत्रों में शुल्क कम करने पड़ेंगे। अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लटनिक ने वाशिंगटन में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल से मुलाकात के बाद पिछले हफ्ते कहा था कि उत्पादों के स्तर पर व्यापार करार में कई साल लग सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पिछले महीने ही मंशा जताई थी कि द्विपक्षीय व्यापार समझौते के पहले चरण को अगले 7-8 महीनों में अंतिम रूप दे दिया जाएगा। इसके तहत अधिक बाजार मुहैया कराया जाएगा, शुल्क और अन्य व्यापारिक बाधाएं कम की जाएंगी तथा आपूर्ति श्रृंखला को गहराई तक एक साथ लाया जाएगा। उसके बाद से ही सरकारी विभाग आगे की वार्ता की तैयारी में जुट गए हैं। जानकार लोगों ने कहा कि भारत फिलहाल अमेरिका के लिए लागू शुल्क घटाने के तरीके तलाश रहा है। नोमुरा की एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी उत्पादों पर भारत औसतन 9.5 फीसदी शुल्क लगाता है मगर भारत से होने वाले निर्यात पर अमेरिका औसतन 3 फीसदी शुल्क ही लेता है।
वाशिंगटन में ट्रंप प्रशासन के प्रमुख अधिकारियों के साथ बैठक कर चुके गोयल इसी हफ्ते के अंत में निर्यातकों और उद्योग के अधिकारियों से मिल सकते हैं। इससे पता चलता है कि भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को कितनी प्राथमिकता दी जा रही है।
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अमेरिका 2 अप्रैल से अन्य देशों पर बराबरी का शुल्क लगाने की सोच रहा है। भारत को इस शुल्क में रियायत की उम्मीद थी मगर ट्रंप ने कई बार कहा है कि भारत ऊंचा शुल्क वसूलने वाले देशों में शामिल है और बराबरी वाले शुल्क में उसे कोई रियायत नहीं मिलेगी। कारों और कृषि उत्पादों पर शुल्क कम करने का दबाव भारत पर ज्यादा है। व्हाइट हाउस का कहना है कि सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र (एमएफएन) के साथ कृषि उत्पादों पर अमेरिका का औसत शुल्क 5 फीसदी है मगर सभी देशों पर भारत 39 फीसदी औसत एमएफएन शुल्क लगाता है। लटनिक ने उम्मीद जताई थी कि बाजार खुलेगा और यह हमेशा बंद नहीं रहेगा। भारत कृषि क्षेत्र खोलने के लिए कभी तैयार नहीं रहा है।
दिल्ली में ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव की रिपोर्ट कहती है कि भारत को भी दूसरे देशों की तरह ट्रंप की व्यापार नीतियों के खिलाफ खड़ा होना चाहिए और खुद को मजबूत बनाना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सबसे पहले तो भारत को अमेरिका के साथ व्यापक व्यापार समझौते से बचना चाहिए क्योंकि ट्रंप के समय में कोई भी देश ऐसा समझौता नहीं कर रहा। उसके बजाय भारत को 90 फीसदी औद्योगिक वस्तुओं के लिए ‘जीरो-टु-जीरो’ यानी शून्य शुल्क पर बात करनी चाहिए। इसमें भी वाहन जैसे क्षेत्रों को बाहर रखना चाहिए। यह प्रस्ताव भी 2 अप्रैल से पहले रख देना चाहिए।’
रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका इसे खारिज कर बराबरी का शुल्क लगाता है तो भारत को जरूरी होने पर ही जवाब देना चाहिए क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि ज्यादातर उद्योगों को इस शुल्क से नुकसान नहीं होगा।