अर्थव्यवस्था

वास्तविक रीपो दर बहुत ज्यादा होने पर प्रभावित हो सकती है मांग और आपूर्ति

अगर महंगाई दर में गिरावट जारी रहती है और 8 फीसदी वृद्धि दर के साथ महंगाई दर लक्ष्य पर पहुंचती है तो इसका मतलब यह है कि हम इस दर पर सुरक्षित रूप से बढ़ सकते हैं।

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मनोजित साहा   
Last Updated- June 23, 2024 | 10:38 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बाहरी सदस्य आ​शिमा  गोयल ने जून की नीतिगत बैठक में रीपो दर में 25 आधार अंक की कटौती करने के पक्ष में मतदान किया, जबकि ज्यादातर की राय यथास्थिति बनाए रखने की थी। मनोजित साहा से बातचीत में उन्होंने कहा कि अगर रीपो दर अगले 6 महीने तक कम नहीं की जाती है तो वृद्धि पर इसका असर पड़ेगा।

अप्रैल की समीक्षा में आपने नीतिगत दर में बदलाव न करने के पक्ष में मत दिया। जून की समीक्षा में दर में कटौती का पक्ष लिया। अप्रैल और जून के बीच क्या बदलाव आया है?

अप्रैल की बैठक के समय तेल की कीमतें बढ़ रही थीं। मॉनसून को लेकर अनिश्चितता थी। लू का असर और चुनाव का मसला था। मैं इसके असर का इंतजार कर रही थी। इनमें से कुछ मसले हल हो गए। महंगाई दर के लक्ष्य को लेकर कोई बदलाव नहीं है। लू का खाद्य कीमतों पर अनुमान से कम असर पड़ा है। अगर हम लंबा इंतजार करते हैं तो वास्तविक रीपो दर जरूरत से अधिक हो जाएगा।

यथास्थिति बरकरार रखने के पीछे मुख्य तर्क खाद्य वस्तुओं की महंगाई और इसकी अनिश्चितता को लेकर है। आपको क्यों लगता है कि बढ़ी खाद्य कीमतों का समग्र महंगाई दर पर असर नहीं पड़ेगा?

पिछले साल खाद्य कीमतों के लगातार लगने वाले झटके लक्ष्य पर असर नहीं डाल पाए। भविष्य में भी ऐसा होने की आशंका नहीं है।

ग्राहकों तक महंगाई में आई कमी का फायदा देर से पहुंच रहा है, जिसे लेकर कुछ सदस्य चिंतित थे। आपका क्या विचार है?

रीपो दर खाद्य कीमतों पर असर नहीं डाल सकता। ऐसे में इसे साम्य के स्तर से ऊपर रखने से तेजी से अवस्फीति नहीं होगी। धनात्मक वास्तविक रीपो दर महंगाई को उम्मीद के मुताबिक रखने के लिए पर्याप्त है। बहुत ज्यादा वास्तविक रीपो दर मांग के साथ आपूर्ति पर बुरा असर डाल सकता है। समग्र महंगाई दर के हिसाब से वास्तविक रीपो दर बहुत ज्यादा है।

आपने कहा कि वृद्धि की रफ्तार क्षमता से कम है। आपके मुताबिक कितनी वृद्धि दर की क्षमता है?

अगर महंगाई दर में गिरावट जारी रहती है और 8 फीसदी वृद्धि दर के साथ महंगाई दर लक्ष्य पर पहुंचती है तो इसका मतलब यह है कि हम इस दर पर सुरक्षित रूप से बढ़ सकते हैं।

आपके मुताबिक अगर 6 महीने तक रीपो दर में बदलाव नहीं किया जाता है तो वित्त वर्ष 2025 में कितनी वृद्धि दर गंवानी पड़ सकती है?

हम अनुमान लगा रहे हैं कि वित्त वर्ष 2025 में वृद्धि दर वित्त वर्ष 2024 की तुलना में कम होगी। इससे मौजूदा वृद्धि दर के साथ समझौते का अनुमान मिलता है।

ज्यादा ब्याज दरों से बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की संपत्ति की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है, खासकर असुरक्षित ऋणों पर?

इतनी ब्याज दरें ज्यादा उधारी लेने वालों को प्रभावित करेंगी। लेकिन उधारी अब जोखिम पर आधारित है, ऋण छोटे आकार के हैं और विवेकाधीन या निवारक नियमन को सख्त किया गया है, ऐसे में बैंकों व एनबीएफसी की संपत्ति की गुणवत्ता पर बहुत दबाव पड़ने की संभावना कम है। असुरक्षित खुदरा ऋण सामान्यतया नकदी की आवक और वेतन से चुकाए जाते हैं।

First Published : June 23, 2024 | 10:38 PM IST