भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बाहरी सदस्य आशिमा गोयल ने जून की नीतिगत बैठक में रीपो दर में 25 आधार अंक की कटौती करने के पक्ष में मतदान किया, जबकि ज्यादातर की राय यथास्थिति बनाए रखने की थी। मनोजित साहा से बातचीत में उन्होंने कहा कि अगर रीपो दर अगले 6 महीने तक कम नहीं की जाती है तो वृद्धि पर इसका असर पड़ेगा।
अप्रैल की बैठक के समय तेल की कीमतें बढ़ रही थीं। मॉनसून को लेकर अनिश्चितता थी। लू का असर और चुनाव का मसला था। मैं इसके असर का इंतजार कर रही थी। इनमें से कुछ मसले हल हो गए। महंगाई दर के लक्ष्य को लेकर कोई बदलाव नहीं है। लू का खाद्य कीमतों पर अनुमान से कम असर पड़ा है। अगर हम लंबा इंतजार करते हैं तो वास्तविक रीपो दर जरूरत से अधिक हो जाएगा।
पिछले साल खाद्य कीमतों के लगातार लगने वाले झटके लक्ष्य पर असर नहीं डाल पाए। भविष्य में भी ऐसा होने की आशंका नहीं है।
रीपो दर खाद्य कीमतों पर असर नहीं डाल सकता। ऐसे में इसे साम्य के स्तर से ऊपर रखने से तेजी से अवस्फीति नहीं होगी। धनात्मक वास्तविक रीपो दर महंगाई को उम्मीद के मुताबिक रखने के लिए पर्याप्त है। बहुत ज्यादा वास्तविक रीपो दर मांग के साथ आपूर्ति पर बुरा असर डाल सकता है। समग्र महंगाई दर के हिसाब से वास्तविक रीपो दर बहुत ज्यादा है।
अगर महंगाई दर में गिरावट जारी रहती है और 8 फीसदी वृद्धि दर के साथ महंगाई दर लक्ष्य पर पहुंचती है तो इसका मतलब यह है कि हम इस दर पर सुरक्षित रूप से बढ़ सकते हैं।
हम अनुमान लगा रहे हैं कि वित्त वर्ष 2025 में वृद्धि दर वित्त वर्ष 2024 की तुलना में कम होगी। इससे मौजूदा वृद्धि दर के साथ समझौते का अनुमान मिलता है।
इतनी ब्याज दरें ज्यादा उधारी लेने वालों को प्रभावित करेंगी। लेकिन उधारी अब जोखिम पर आधारित है, ऋण छोटे आकार के हैं और विवेकाधीन या निवारक नियमन को सख्त किया गया है, ऐसे में बैंकों व एनबीएफसी की संपत्ति की गुणवत्ता पर बहुत दबाव पड़ने की संभावना कम है। असुरक्षित खुदरा ऋण सामान्यतया नकदी की आवक और वेतन से चुकाए जाते हैं।