चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में सरकार के खर्च में संकुचन आया है जबकि कर संग्रह के दम पर राजस्व में वृद्घि दर्ज की गई है। खर्च के मोर्चे पर सरकार की हिचकिचाहट से आर्थिक वृद्घि पर बुरा असर पड़ सकता है क्योंकि निजी निवेश ने अब तक जोर नहीं पकड़ा है।
उदाहरण के लिए करों से सरकार के राजस्व में 2021-22 के पहले चार महीनों में 160.9 फीसदी की वृद्घि हुई है। वहीं इस अवधि के दौरान सरकारी खर्च में पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 5 फीसदी का संकुचन आया है। सच्चाई यह है कि चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से जुलाई के दौरान कर संग्रह 5.3 लाख करोड़ रुपये रहा जो 2019-20 की समान अवधि के स्तर से करीब 56 फीसदी अधिक है जबकि कुल खर्च कोविड पूर्व के स्तरों से 6 फीसदी अधिक है।
चालू वित्त वर्ष के पहले 4 महीने के दौरान कर संग्रहों के दम पर कुल राजस्व 6.8 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया जो कि इस मोर्चे पर पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 193.4 फीसदी अधिक है। सच्चाई यह भी है कि ये 2019-20 के अप्रैल से जुलाई अवधि के मुकाबले 70.9 फीसदी अधिक है।
पहले चार महीनों में राजस्व व्यय 8.7 लाख करोड़ रुपये रहा जो कि 2019-20 की तुलना में 4 फीसदी कम है। पिछले वर्ष के मुकाबले 2021-22 के पहले चार महीनों में राजस्व खर्च में 7 फीसदी की कमी आई है। राजस्व व्यय में निर्धारित देयताएं या वेतन और पेंशन जैसे चालू परिचालन खर्च शामिल होते हैं लेकिन इनसे मांग के सृजन में मदद मिलती है।
इसके अलावा, राजस्व व्यय के अंतर्गत ब्याज भुगतानों में वृद्घि हो रही है। इसमें पिछले वर्ष के मुकाबले 14 फीसदी की वृद्घि हुई है। ब्याज भुगतानों को छोड़कर राजस्व खर्च वास्तव में पिछले वर्ष के मुकाबले 13 फीसदी और 2019-20 की तुलना में 1 फीसदी कम रहा। हालांकि, सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय अप्रैल से जुलाई के दौरान पिछले वर्ष के मुकाबले 15 फीसदी और 2019-20 से 19 फीसदी अधिक रहा।
हालांकि, मौजूदा वित्त वर्ष के जुलाई महीने में सरकारी पूंजीगत व्यय पिछले वर्ष के समान महीने के मुकाबले 39.40 फीसदी घटकर 16,912 करोड़ रुपये रह गया। यह 2019-20 के मुकाबले 62 फीसदी कम रहा। वित्त वर्ष 2022 के बजट में 5.54 लाख करोड़ रुपये का पूंजीगत परिव्यय मुहैया कराया गया था जो कि वित्त वर्ष 2021 के बजट अनुमान से 34.5 फीसदी अधिक है।
भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन ने कहा, ‘कर संग्रह 2019 के स्तरों से काफी अधिक रहा है जबकि सरकारी खर्च में बहुत मामूली वृद्घि हुई है। लोगों को आर्थिक झटके मिलने के बाद लोग उम्मीद कर रहे थे कि सरकार और ज्यादा व्यय करेगी।’ सेन ने कहा, ‘सरकार ने बड़े खर्चों की जो घोषणाएं की हैं वह जमीन पर नजर नहीं आ रहा है। …हाल के दिनों नजर आई रिकवरी सरकार के कारण से नहीं है बल्कि यह निजी क्षेत्र के कारण से है।’
उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की सहन करने की क्षमता ने हमें मुसीबत से उबार दिया। 2020-21 की अप्रैल से जून तिमाही में सालाना आधार पर 20.1 फीसदी की जीडीपी वृद्घि दर्ज की गई लेकिन यह 2019-20 की पहली तिमाही में रहे स्तर से 9.2 फीसदी कम है।
इक्रा रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि सरकार के राजस्व खर्च के गैर-ब्याज गैर-सब्सिडी घटक में आई कमी चिंता की बात है। उन्होंने कहा, ‘खर्च में तेजी लाने से रिकवरी को तेज करने में मदद मिलेगी।’ इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत ने कहा कि ऐसे समय पर जब निजी खपत और निवेश दोनों वृद्घि को मजबूती देने के लिए संघर्ष कर रहे हैं तब सरकार के अंतिम खपत खर्च (जीएफसीई) में संकुचन बहुत हैरान करने वाला है।
पंत ने कहा, ‘मांग की कमजोर स्थितियों के कारण निवेशक अब भी निवेश करने के लिए तैयार नहीं हैं और नौकरी जाने तथा वेतन में कटौती की वजह से निजी खर्च में धीरे धीरे बढ़ोतरी हो रही है।’