महंगाई आम आदमी और नीति निर्माताओं को परेशान तो कर रही है मगर केंद्र सरकार इस पर लगाम कसने के भरपूर उपाय भी कर रही है। वित्त सचिव टीवी सोमनाथन ने नॉर्थ ब्लॉक के अपने दफ्तर में बिज़नेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा कि इन उपायों में और भी तेजी लाई जाएगी।
मगर उन्होंने आगाह किया कि इस दिशा में उपाय मध्यम अवधि को ध्यान में रखकर उठाए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि कीमतों में कुछ समय के लिए आई तेजी के लिए उपाय अपनाना जरूरी नहीं है क्योंकि इससे व्यापार नीतियां प्रभावित हो सकती हैं और लंबे समय तक इसका प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए इस दिशा में जरूरी उपाय पूरी सावधानी के साथ किए जाने चाहिए।
सोमनाथन ने कहा कि कीमतों में तेजी कुछ समय के लिए है और मौसमी है, जिसमें जल्द ही कमी आएगी। उन्होंने कहा, ‘मेरी राय में मुद्रास्फीति अगले तीन महीनों में कम हो जाएगी। इसलिए मैं इस महीने के ऊंचे आंकड़ों को ध्यान में रखकर नीतिगत उपाय किए जाने के पक्ष में नहीं हूं।’
जुलाई में खुदरा मुद्रास्फीति 15 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई। चालू वित्त वर्ष में यह पहला मौका है, जब इसका आंकड़ा भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 6 फीसदी के सहज स्तर के पार चला गया।
सोमनाथन केंद्रीय वित्त मंत्रालय के सबसे वरिष्ठ अधिकारी हैं, जिनके पास व्यय विभाग की जिम्मेदारी भी है। उन्होंने कहा, ‘सरकार ने दाम कम करने के लिए खाद्य वस्तुओं की आयात-निर्यात नीति सहित कई कदम उठाए हैं। कुछ उपायों का असर दिखा है और कुछ का प्रभाव अभी दिखेगा।’
वित्त सचिव कहा कि सरकार ने उपाय किए हैं और आगे भी कदम उठाए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए खाद्य महंगाई कम करने के लिए खुले बाजार में भारी मात्रा में गेहूं और चावल बेचा गया है। इसी तरह सब्जियों, दालों और तिलहन के दाम काबू में रखने के लिए भी खास उपाय किए गए हैं।
उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति में तेजी साफ तौर पर मौसम की वजह से आई है। जिन जिंसों के दाम में तेज इजाफा हुआ है और जिनकी मुद्रास्फीति में बड़ी भूमिका है, उनके दाम नई फसल आने पर निश्चित रूप से नीचे आएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में देश के लोगों पर महंगाई का बोझ घटाने के लिए और उपाय करने का वादा किया।
आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए मुद्रास्फीति का अपना अनुमान बढ़ाकर 5.4 फीसदी कर दिया। इसके एक दिन बाद जुलाई के आंकड़े आए, जिनमें मुद्रास्फीति दर बढ़कर 7.44 फीसदी पर पहुंच गई, जो जून में 4.87 फीसदी थी। जुलाई 2022 में खुदरा मुद्रास्फीति 6.71 फीसदी थी और अप्रैल 2022 में यह 7.79 फीसदी के उच्च स्तर पर थी।
आरबीआई के अनुमान के मुताबिक मुद्रास्फीति अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही तक 5 फीसदी से ऊपर बनी रह सकती है और चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में यह 6.2 फीसदी हो सकती है। पिछले हफ्ते मौद्रिक नीति की घोषणा के दौरान आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, ‘जरूरी हुआ तो हमें नीतिगत उपाय लागू करने के लिए तैयार रहना होगा। हमें मुद्रास्फीति को 4 फीसदी के लक्ष्य के अनुरूप लाने पर सख्ती से ध्यान रखना होगा।’
देश के निर्यात पर वैश्विक नरमी के असर के सवाल पर सोमनाथन ने कहा, ‘इससे हमारी वृद्धि में कमी बिल्कुल आएगी। मगर मैं मानता हूं कि देसी अर्थव्यवस्था में निरंतरता के जरिये हम इस चुनौती से पार पा सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि जो प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं भारत से माल की अहम खरीदार हैं, उनमें नरमी देखी जा रही है। इससे भारत के निर्यात पर असर पड़ना लाजिमी है। मगर कई अन्य देशों की तुलना में भारत निर्यात पर बहुत ज्यादा निर्भर रहने वाला देश नहीं है। इसलिए दूसरे देशों की तुलना में भारत पर इसका कम असर पड़ेगा।
जून में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर घटने पर सोमनाथन ने कहा कि यह कुछ समय के लिए है और इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष राजस्व संग्रह के मोर्चे पर अभी तक तस्वीर अच्छी दिखी है।