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महंगाई की आग बुझाने में सरकारी फायर बिग्रेड विफल

Last Updated- December 07, 2022 | 11:07 PM IST

पिछले तीन महीने से 12 फीसदी के स्तर पर कायम मुद्रास्फीति गत सप्ताह गिरावट के साथ भले ही 11.9 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई हो फिर भी इसमें उछाल की आशंका अभी खत्म नहीं हुई है।


इस वित्त वर्ष की शुरू की छमाही में महंगाई ने सरकार की नाक में दम किए रखा है और अभी भी उसकी परेशानी खत्म नहीं हुई है। हालांकि सरकार का दावा है कि आगामी खरीफ फसल की आवक शुरू होते ही मुद्रास्फीति में और कमी आएगी।

जिंस विशेषज्ञ भी इस बात से सहमत नजर आते हैं लेकिन अब अमेरिकी मंदी के फलस्वरूप बाजार में धन का प्रवाह बढ़ाने की सरकार की रणनीति के कारण महंगाई के फिर कुलांचे भरने की आशँका है। कृषि विशेषज्ञों के अनुमान के मुताबिक इस साल खरीफ के अनाजों का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 3.4 फीसदी कम होने जा रहा है।

पिछले साल इस दौरान 114.5 मिलियन टन का उत्पादन हुआ था जबकि इस साल यह उत्पादन 110.5 मिलियन टन रहने का अनुमान है। ऐसे में महंगाई के स्तर में बहुत गिरावट के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।

गौरतलब है कि थोक मूल्य सूचकांक के प्राथमिक क्षेत्र में अनाज, फल, दूघ, खाद्य तेल, अंडे, मांस-मछली एवं सब्जी का अहम योगदान होता है। प्राथमिक क्षेत्र का सूचकांक में 22.25 फीसदी का योगदान है।

क्यों बढ़ी मुद्रास्फीति

विशेषज्ञों की नजर में 3.5 फीसदी के स्तर से 12.14 फीसदी के स्तर को छूने के पीछे कई कारण है। सबसे पहला एवं प्रमुख कारण कच्चे तेल में आग लगना है। 75 डॉलर प्रति बैरल के भाव से बिकने वाला कच्चा तेल 140 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर गया।

कच्चे तेल के भाव बढ़ने से सभी चीजों की कीमत प्रभावित हुई। पिछले मार्च महीने से खाद्य तेलों की कीमत खासकर पॉम ऑयल की कीमत में बढ़ोतरी से भी मुद्रास्फीति को मजबूत होने में मदद मिली। हालांकि खाद्य तेल का थोक मूल्य सूचकांक में 2.75 फीसदी का ही योगदान होता है। 

अर्थव्यवस्था में आयी मजबूती के कारण मांग में तेजी आयी और इसके परिणामस्वरूप ही कीमत में बढ़ोतरी दर्ज की गयी। निर्माण क्षेत्र में आयी जबरदस्त तेजी के कारण स्टील से लेकर तोलकतरा तक के दाम मात्र छह महीने के दौरान लगभग दोगुने हो गए।

विदेशी बाजार का असर

विदेशों में खाद्यान्न संकट के कारण भी पिछले छह माह के दौरान भारत के बाजार में तेजी दर्ज की गयी। चावल से लेकर चीनी तक, हर चीज की कीमत विदेशी बाजार से प्रभावित होती नजर आयी। कच्चे तेल में लगी आग के कारण पॉम ऑयल, सोयाबीन, गन्ना एवं मक्का से अमेरिका, यूरोपीय देश के साथ ब्राजील, अर्जेंटीना जैसे देशों में काफी मात्रा में वैकल्पिक ईंधन तैयार होने लगे।

सरकार ने सबसे पहले खाद्य सामग्री जैसे दाल, तेल, मक्का एवं स्कीमड दूध पर लगने वाले आयात शुल्क को बिल्कुल समाप्त कर दिया या फिर कम कर दिया। दाल के आयात पर शून्य कर की अवधि को मार्च, 2009 तक के लिए बढ़ा दिया गया।

क्रूड पॉम ऑयल (सीपीओ) के आयात को करमुक्त कर दिया गया तो रिफाइन तेल के आयात शुल्क को घटाकर 7.5 फीसदी कर दिया गया।  सरकार ने गैर बासमती चावल एवं मक्का के निर्यात पर पाबंदी लगा दी गयी।

First Published - October 9, 2008 | 10:50 PM IST

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