सरकार नियामक प्राधिकरणों के पास पंजीकृत निवेशकों के कुछ वर्गों को कथित ‘ऐंजल कर’ से छूट दे सकती है। इन निवेशकों के साथ बेहिसाब धन के लेनदेन का जोखिम कम होता है।
मामले की जानकारी रखने वाले एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इनमें भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) के पास पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI), विदेशी वेंचर कैपिटल निवेशक (FPCI), भारतीय रिजर्व बैंक तथा अन्य नियामकों में पंजीकृत इकाइयां शामिल हैं। उनके मुताबिक राजस्व विभाग नए कर के लिए नियामकीय व्यवस्था की अधिसूचना 15 अप्रैल तक जारी करेगा। इसमें ‘छूट वाली इकाइयों की सूची’ और कर मूल्यांकन के नियम दिए होंगे।
उक्त अधिकारी ने कहा, ‘इस कदम का उद्देश्य शेयर प्रीमियम के रूप में अवैध धन के परिचालन को रोकना और वैध निवेश पर कर नहीं वसूलना है। नियामक संस्थाओं में पंजीकृत विदेशी इकाइयां पहले से ही भारत के कानून का पालन कर रही हैं, इसलिए इन्हें कर दायरे से बाहर रखा जा सकता है।’ उन्होंने कहा कि उद्योग और हितधारकों की चिंताओं को तोला गया है और उन्हें नए ढांचे में दूर किया जाएगा।
यदि किसी कंपनी को आय के रूप में उचित बाजार मूल्य (एफएमवी) से अधिक राशि मिलती है तो उस अधिक राशि पर ऐंजल कर लगाया जाता है। निवासी निवेशक पहले से ही इस कर के दायरे में हैं। कराधान को समरूप बनाने के लिए सरकार ने वित्त विधेयक 2023 में आयकर कानून की धारा 56 (2)(7बी) के तहत आवास की शर्तों को हटाने का प्रस्ताव किया गया है ताकि अनिवासी निवेशकों को जारी शेयरों पर भी इसे लागू किया जा सके।
स्टार्टअप और वेंचर कैपिटल उद्योग विदेशी निवेश पर लागू किए जा रहे ऐंजल कर से डरे हुए हैं और उन्होंने सरकार से मूल्यांकन के तरीके में कुछ बदलाव करने के साथ निवेशकों के कुछ वर्गों को इससे बरी रखने की मांग की है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक सूचीबद्ध कंपनियों में निवेश करते हैं और विदेशी वेंचर कैपिटल निवेशक केवल बड़ी बुनियादी ढांचा कंपनियों में निवेश करते हैं। उद्योग के अनुमान के मुताबिक स्टार्टअप में उनका निवेश काफी कम है।
पीडब्ल्यूसी इंडिया में पार्टनर भविन शाह ने कहा, ‘स्टार्टअप उद्योग में अरबों डॉलर का निवेश करने वाले सभी वेंचर कैपिटल फंड निवेश फंड (एफपीआई या विदेशी वेंचर कैपिटल निवेशक के तौर पर पंजीकृत नहीं) होते हैं मगर अधिकतर फंडों या उनके कोष प्रबंधकों पर उनके देश के वित्तीय सेवा नियामकों की नजर रहती है। स्टार्टअप को असली मदद तभी दी जा सकती है, जब इन विनियमित पीई/वीसी फंडों (सही मायने में ऐंजल) को ऐंजल कर से छूट दे दी जाए।’
विशेषज्ञों की राय है कि बेहिसाब यानी अघोषित धन इस रास्ते से आने की सरकार की चिंता दूर करने के लिए मौजूदा GAAR (गार) प्रावधान पर्याप्त है। उनका यह भी कहना है कि मुट्ठी भर दोषियों को दंडित करने के लिए कर लगाने से वास्तविक निवेश करने वाले कई निवेशक भी प्रभावित होंगे।
डेलॉयट इंडिया में पार्टनर राजेश गांधी ने कहा, ‘सरकार अपवादों का पता लगाने के अन्य तरीकों पर विचार कर सकती है और सुनिश्चित कर सकती है कि अधिक निवेश करने और भारत की विकास गाथा पर दांव लगाने के इच्छुक वैध निजी निवेशकों को हतोत्साहित नहीं किया जाए।’
उन्होंने कहा कि इसके अलावा कर पात्रता के लिए मूल्यांकन अहम है। ऐसे में विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून तथा ऐंजल कर के लिए साझा पद्धति अपनाने की जरूरत है और ऐसा करने से उन निवेशकों को राहत मिल सकती है, जो नियामकीय तथा व्यावसायिक तौर पर उचित मूल्य तलाशने के लिए संघर्ष करते हैं।
स्टार्टअप में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए केंद्र पहले ही कुछ रियायतें दे चुका है। मसलन DPIIT में पंजीकृत स्टार्टअप कर छूट के पात्र होते हैं।