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Food Inflation: खाद्य के बिना महंगाई साधना सही नहीं, अर्थशास्त्रियों ने RBI की हालिया रिपोर्ट के खिलाफ दिया तर्क

केंद्रीय बैंक पर नजर रखने वाले एक जानकार ने कहा, ‘खाद्य मूल्य सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। प्याज के महंगे दामों के कारण एक बार सरकार गिर चुकी है।’

Last Updated- July 26, 2024 | 11:51 PM IST
RBI's warning on food inflation pressure, caution necessary in monetary policy फूड इंफ्लेशन के दबाव पर RBI की चेतावनी, मौद्रिक नीति में सतर्कता जरूरी

इस सप्ताह की शुरुआत में जारी आर्थिक समीक्षा में महंगाई पर अंकुश रखने के भारतीय रिजर्व बैंक के लक्ष्य में खाद्य महंगाई को बाहर करने का विचार पेश किया गया था। लेकिन ज्यादातर अर्थशास्त्रियों और केंद्रीय बैंक पर नजर रखने वाले लोगों ने इस मसले पर समर्थन नहीं किया है।

आर्थिक समीक्षा में महंगाई को लक्षित करने के ढांचे की पुनर्समीक्षा की बात उठाई गई है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया कि जब खाद्य उत्पादों की महंगाई बढ़ती है तो महंगाई के लक्ष्य पर खतरा मंडराने लगता है। ऐसे में केंद्रीय बैंक सरकार से खाद्य उत्पादों के बढ़े हुए दामों को कम करने के लिए अपील करता है। इसकी वजह से किसान बढ़े हुए दामों पर अपनी फसल बेचने के लाभ से वंचित हो जाते हैं। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित समग्र महंगाई की व्यवस्था को अपनाने का कारण यह है कि आरबीआई के लिए आम लोगों को इसे समझाना आसान था।

केंद्रीय बैंक पर नजर रखने वाले एक जानकार ने कहा, ‘खाद्य मूल्य सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। प्याज के महंगे दामों के कारण एक बार सरकार गिर चुकी है।’

आरबीआई के पूर्व गवर्नर अर्जित पटेल (जब डिप्टी गवर्नर थे) की अध्यक्षता वाली समिति ने हेडलाइन यानी समग्र मुद्रास्फीति को आरबीआई का लक्ष्य बनाने की सिफारिश की थी। मई 2016 में आरबीआई के अधिनियम, 1934 को संशोधित किया गया था ताकि लचीले मुद्रास्फीति-लक्ष्यीकरण ढांचे के कार्यान्वयन के लिए वैधानिक आधार मुहैया किया जा सके। 31 मार्च, 2021 को केंद्र सरकार ने अगले पांच साल की अवधि – 1 अप्रैल, 2021 से 31 मार्च, 2026 तक के लिए मुद्रास्फीति लक्ष्य और सहनशीलता बैंड को बरकरार रखा।

आरबीआई का खुदरा महंगाई का लक्ष्य 4 फीसदी है जिसमें किसी भी तरफ 2 फीसदी का विचलन हो सकता है।

आईसीआरए की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, ‘कोर सीपीआई बॉस्केट (खाद्य व ऊर्जा के अलावा) का उन उत्पादों से भी संबंध है जिनके दाम आपूर्ति पक्ष की गतिशीलता या वैश्विक कारणों से प्रभावित होते हैं। इसका उदाहरण सोना है। इन सभी को हटाकर उन वस्तुओं का बास्केट बनाया जाए, जिनकी कीमतें पूरी तरह से घरेलू मांग की स्थिति को प्रतिबिंबित करती हों, तो उपभोक्ताओं द्वारा वास्तव में खरीदी जाने वाली वस्तुओं के सापेक्ष सूचकांक सिकुड़ जाएगा।’

नायर ने कहा, ‘खाद्य वस्तुओं के दाम निरंतर बढ़ने से किराए और कोर मुद्रास्फीति के अन्य घटकों पर पड़ने वाले दबाव से इनकार नहीं किया जा सकता है।’

खाद्य वस्तुओं की महंगाई काफी समय तक बेहद ऊंची रही थी। ऐसे में केंद्रीय बैंक ने कहा था कि खाद्य वस्तुओं के बढ़े हुए दामों ने लक्ष्य तक पहुंचने की अंतिम प्रक्रिया को धीमा कर दिया है।

आरबीआई की हाल की एक रिपोर्ट में कहा गया कि यह कि खाद्य महंगाई के झटके अस्थायी हैं पिछले एक वर्ष के वास्तविक अनुभव से मेल नहीं खाते। यह भी कहा गया कि यह बहुत लंबी अवधि तक हैं, जिस वजह से झटके को क्षणिक कहना उचित नहीं है।

अर्थशास्त्रियों ने इस तर्क के खिलाफ भी राय दी है कि खाद्य महंगाई के झटके आपूर्ति पक्ष के मसले हैं और इनका मौद्रिक नीति साधनों पर सीमित प्रभाव है।

मदन सबनवीस ने बताया, ‘आपूर्ति झटकों के कारण मूल्य पर तत्काल प्रभाव पड़ता है लेकिन मांग लंबे समय से बढ़ रही है जिसकी वजह से दाम बढ़े हैं। लोग महंगे मूल्य के उत्पादों की ओर बढ़ रहे हैं और यह मांग से जुड़ा मुद्दा है।’

सबनवीस ने यह भी कहा कि कोई भी केंद्रीय बैंक कोर महंगाई को लक्षित नहीं करता है और ‘लिहाजा ऐसा करना विचित्र होगा।’

अमेरिका को छोड़कर ज्यादार केंद्रीय बैंक हेडलाइन मुद्रास्फीति को लक्षित करते हैं। अमेरिका की फेडरल ओपन मार्केट कमिटी (एफओएमसी) का मानना है कि लंबे समय तक 2 फीसदी की मुद्रास्फीति जिसे व्यक्तिगत उपभोग व्यय के मूल्य सूचकांक में वार्षिक परिवर्तन के आधार पर मापा जाता है, अधिकतम रोजगार और मूल्य स्थिरता के लिए फेडरल रिजर्व के दायित्व के अनुरूप है।

बार्कले के अर्थशास्त्रियों ने सीपीआई सूचकांक में खाद्य पदार्थों के कम भार का सुझाव दिया है, जिसका अर्थ यह होगा कि समग्र मुद्रास्फीति को लक्षित करने पर आरबीआई प्रभावी रूप से केवल खाद्य पदार्थों की कीमतों को ही लक्षित नहीं कर रहा होगा।

First Published - July 26, 2024 | 10:35 PM IST

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