देश का निर्यात मौजूदा वित्त वर्ष में हालांकि थोड़ा बढ़ने की उम्मीद है, लेकिन अगले वित्त वर्ष में इसमें गिरावट की आशंका है।
आर्थिक मंदी की खराब दशा के चलते मांग में हुई जोरदार कमी के चलते यह गिरावट हो सकती है। यह जानकारी वाणिज्य सचिव के. पिल्लई ने दी है।
कई भारतीय वस्तुओं का लगातार तीन महीने का अनुबंध इस दिसंबर में खत्म हो गया है। इस बीच पूरी दुनिया में मांग में हुई कमी के चलते सरकारी अनुमान बता रहे हैं कि जनवरी 2009 में इन उत्पादों की विदेशों में बिक्री जबरदस्त घटी है।
पिल्लई ने बताया कि 2009-10 में इन वस्तुओं का निर्यात यदि 160 अरब डॉलर का आंकड़ा पा लिया तो यह एक उपलब्धि होगी। वाणिज्य मंत्रालय को मिले प्राथमिक आंकड़े बताते हैं कि पिछले महीने इन वस्तुओं का निर्यात 22 फीसदी कम हुआ है।
हालांकि मंत्रालय जनवरी महीने मेंं हुए निर्यात का आंकड़ा 1 मार्च को घोषित करेगा। बहरहाल आशंका जताई जा रही है कि जनवरी 2009 में निर्यात में हुई गिरावट 1990 के बाद सबसे तेज मासिक गिरावट है। गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक निर्यात का आंकड़ा 1990 से रेकॉर्ड कर रहा है। तब से अब तक निर्यात में सबसे अधिक कमी मई 1998 में दर्ज की गई थी।
पिल्लई ने यह भी बताया कि 2008-09 में देश का निर्यात 170 अरब डॉलर रहने का अनुमान है। उनके मुताबिक, मौजूदा वित्त वर्ष यानी 2008-09 में निर्यात की विकास दर 5 फीसदी ही रहने का अनुमान है। मालूम हो कि पिछले वित्त वर्ष में 162 अरब डॉलर का निर्यात हुआ था।
देश का निर्यात अक्टूबर 2008 से तब लुढ़कना शुरू हुआ जब आर्थिक मंदी का असर गहराने लगा। विकसित देशों मसलन अमेरिका, यूरोपीय संघ के देशों और जापान जो दुनिया के कुल उत्पादन के आधे के लिए जवाबदेह है, में मांग कम होने का असर देश के निर्यात पर भी हुआ है।
हालांकि यहां की सरकार ने भी दिसंबर से अब तक दो-दो आर्थिक उत्प्रेरक पैकेज घोषित किए। इस पैकेज के तहत निर्यात ऋण के ब्याज दर में 2 फीसदी की छूट दी गई। इस बीच पिल्लई ने एक टेलीविजन चैनल को बताया कि इस वित्त वर्ष के अंत यानी मार्च के आखिर तक निर्यात सेक्टर से जुड़े कोई 15 लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
अगस्त से मध्य जनवरी तक तो करीब 7-10 लाख लोग बेरोजगार हो भी चुके हैं और यदि विकसित देशों में यह मंदी आगे भी जारी रही तो मार्च होते-होते और 5 लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
