वित्त वर्ष 2023 के सकल घरेलू उत्पाद के अग्रिम अनुमान आने के बाद अर्थशास्त्रियों ने भारत की अर्थव्यवस्था में तुलनात्मक रूप से लचीलेपन का संकेत दिया है। हालांकि उन्होंने विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की वजह से आने वाली तिमाहियों में सुस्ती को लेकर चेतावनी भी दी है।
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक वित्त वर्ष 24 में भारत की जीडीपी वृद्धि करीब 6 प्रतिशत रह सकती है। क्वांटइको रिसर्च की संस्थापक शुभदा राव ने कहा, ‘वृद्धि कम रहने, बढ़ी महंगाई दर, वित्तीय स्थिति तंग रहने और भूराजनीतिक तनाव बढ़ने जैसी वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत की आर्थिक वृद्धि दुरुस्त बनी रहेगी। हालांकि वैश्विक थपेड़ों के कारण हाल के महीनों में वृद्धि सुस्त होने की संभावना है।’
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के हाल के अनुमान के मुताबिक वित्त वर्ष 23 में भारत की अर्थव्यवस्था 7 प्रतिशत बढ़ सकती है। यह भारतीय रिजर्व बैंक और विश्व बैंक के अनुमान से अधिक है। एनएसओ ने वैश्विक झटकों का असर कम रहने का अनुमान
लगाया है।
अपने पिछले वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कैलेंडर वर्ष 2023 में वैश्विक वृद्धि और कारोबार का अनुमान 20 आधार अंक और 70 आधार अंक घटाकर क्रमशः 2.7 प्रतिशत और 2.5 प्रतिशत कर दिया था। इसने अनुमन लगाया था कि एक तिहाई वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में रहेगी।
राव ने कहा, ‘वैश्विक वृद्धि मंदी की ओर है। ऐसे में उच्च ब्याज दरों को लेकर संवेदनशील विनिर्माण संबंधी निर्यात और इसके उप क्षेत्र वित्त वर्ष 23 और 24 में कमजोर रह सकते हैं। अगर इन वजहों को व्यापक स्तर पर देखें तो हम वित्त वर्ष 24 में भारत की वृद्धि दर 6 प्रतिशत होने का अनुमान लगा रहे हैं।’
केयर रेटिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने कहा कि आगे की स्थिति देखें तो तंग वित्तीय स्थिति और वैश्विक मंदी के डर का असर विदेशी मांग और निजी निवेश पर पड़ सकता है। श्रम बाजार की कमजोर रिकवरी, उच्च प्रमुख महंगाई दर और बढ़ी मांग सुस्त पड़ने से खपत नीचे जाने का जोखिम है।
सिन्हा ने कहा, ‘वित्त वर्ष 24 के लिए भारत की वृद्धि का परिदृश्य धुंधला बना हुआ है। विनिर्माण क्षेत्र को जिंसों के दाम में सुधार से फायदा हो सकता है। लेकिन विदेशी मांग सुस्त रहने का दर्द महसूस होगा। वैश्विक रूप से कोविड-19 के मामले बढ़ रहे हैं, जिसका वृद्धि पर अतिरिक्त जोखिम पड़ सकता है।’
उन्होंने कहा कि घरेलू मोर्चे पर देखें तो महंगाई का स्तर कम होने की उम्मीद और रबी की फसल बेहतर होने से घरेलू मांग को समर्थन मिलेगा। उन्होंने कहा कि वृद्धि के आंकड़ों में कुछ बदलाव देखा जा सकता है, क्योंकि बढ़ी मांग कम हो रही है और वित्तीय स्थितियां तंग हैं।
सिन्हा ने कहा, ‘बाहरी मोर्चे पर व्यवधान और भारतीय अर्थव्यवस्था पर उसके संभावित असर पर विचार करें तो हम उम्मीद कर रहे हैं कि वित्त वर्ष 24 में जीडीपी वृद्धि `करीब 6.1 प्रतिशत रहेगी।’
क्रिसिल में मुख्य अर्थशास्त्री डीके जोशी ने कहा कि अगले साल मंदी बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि वैश्विक वृद्धि आगे और घटेगी। रेटिंग एजेंसी एसऐंडपी ग्लोबल उम्मीद कर रही है कि अमेरिका की जीडीपी वृद्धि 2022 में 1.8 प्रतिशत कम रहेगी और 2023 में 0.1 प्रतिशत संकुचन आएगा।
वहीं यूरोपियन यूनियन की वृद्धि दर 3.3 प्रतिशत से 0 प्रतिशत के बीच रहेगी। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा दर में बढ़ोतरी के कारण तंग वित्तीय स्थिति और यूरोप में ऊर्जा संकट की वजह से एजेंसी ने यह अनुमान लगाया है।
जोशी ने कहा, ‘पिछले 2 दशक से भारत का वृद्धि चक्र 2000 के बाद से ही विकसित अर्थव्यवस्थाओं से जुड़ा है। यह बढ़े पूंजी प्रवाह और व्यापार के एकीकरण की वजह से हुआ है। घरेलू मांग तुलनात्मक रूप से स्थिर बनी हुई है, ऐसे में आर्थिक गतिविधियां कमजोर होने पर इसका परीक्षण अगले साल होना है।’
भारत की अर्थव्यवस्था पर ब्याज दरों में बढ़ोतरी का दबाव बढ़ेगा और ग्राहकों पर भी इसका असर होगा और संपर्क आधारित सेवाएं भी सुस्त हो सकती हैं। जोशी ने कहा, ‘इन वजहों से हमारा अनुमान है कि वास्तविक जीडीपी वृद्धि घटकर 6 प्रतिशत रहेगी, जिसके नीचे जाने का जोखिम है।