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दोहा दौर: सबकी नजर संशोधित दस्तावेज पर

Last Updated- December 07, 2022 | 12:40 AM IST

दोहा दौर में कृषि पर विश्व व्यापार वार्ता अब बड़े कठिन मोड़ पर पहुंच चुकी है।


विकसित देश कृषि क्षेत्र से जुड़े अपने वाणिज्यिक हितों को हवा देने की कोशिश में लगे हुए हैं जिससे भारत जैसे विकासशील देशों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर आंच आ सकती है। अब सबकी निगाहें कृषि और गैर कृषि बाजार तक पहुंच के बारे में जारी होने वाले संशोधित दस्तावेज पर टिकी हुई हैं।

सभी इस बात को लेकर काफी उत्सुक हैं कि इन समीक्षाओं में यह मामला कैसे हल किया जाता है। हांगकांग में हुई मंत्रिस्तरीय बैठक में इस बात पर सहमति हुई थी कि विशेष उत्पादों के बारे में निर्णय लेते समय जीवन रक्षा, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास जैसे तीन मानदंडों का ख्याल रखा जाना चाहिए । विशेष उत्पादों में भारत जैसे विकासशील देशों के खेती से से जुड़े सामान की सूची शामिल है। इनमें डयूटी में कटौती कम होगी।

विकसित देशों ने इस बात की मांग की है कि इन सांकेतिक मानदंडों पर अलग अलग बात होनी चाहिए और इसे भिन्न मानदंडों पर हल करने की कोशिश की जानी चाहिए। सूत्रों के मुताबिक भारत और चीन जैसे देशों के लिए खाद्य सुरक्षा और जीवन रक्षा जैसे मामले को अलग से नहीं देखा जा सकता है। हालांकि भारत ने इस पर अपनी आपत्ति दर्ज कर दी है।

विकासशील देश इस बात को देखने के लिए इंतजार कर रहे हैं कि कृषि क्षेत्रों पर जो आंकड़े प्रस्तुत किए जाएं वह पारदर्शी हो, लेकिन इस मसले पर ये देश ठगे भी साबित हो सकते हैं। एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि बहुत सारे विकासशील देशों में कृषि असंगठित क्षेत्र में आते हैं और इसलिए इसके आंकड़े एकत्र करने में मुश्किलें आती है।

दोहा दौर की बातचीत के नवीनतम दौर में सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि किसी अकस्मात निर्णय से सारी वार्ता खटाई में पड़ सकती है। सूत्रों के मुताबिक इस तरह की समस्याओं पर हो सकता है कि विकसित देशों को कुछ समझौते करने पड़े।

डाटा 6 के नाम से मशहूर छह बड़े आयातक और निर्यातक  यूरोपीय संघ, ब्राजील, अमेरिका, स्विट्जरलैंड, कनाडा और जापान जैसे देशों ने एक काफी जटिल दस्तावेज तैयार किए हैं और उनमें संवेदनशील उत्पादों के सात एनेक्सेस की चर्चा की गई है जिसमें कर में छूट की बात कही गई है। इसके साथ घरेलू खपत के क्षेत्र में, जो संवेदनशील उत्पादों के बातचीत से जुडा है, विकसित देश इस बात पर जोर दे रहे हैं कि कृषि क्षेत्र की लागत मूल्य के प्रसंस्करण की वृहत् बात हो।

एक सूत्र ने कहा कि  यह तो इसी तरह की बात है कि चाय या कॉफी में चीनी का इस्तेमाल होता है तो चीनी को घरेलू खपत में शामिल कर लें और पेस्ट्री में इसका इस्तेमाल होने पर इसे घरेलू खपत में स्वीकार न करें।

85 प्रतिशत से ज्यादा किसान विकासशील देशों में रहते हैं और अमेरिका जैसे देश में मात्र 4 प्रतिशत और यूरोपीय संघ में 8 प्रतिशत किसान ही रहते हैं। अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे राष्ट्रों में किसानों को काफी सब्सिडी दी जाती है और भारत जैसे विकासशील देश इसे कम करने की मांग कर रहे हैं। अमेरिका में सूती पर प्रति डॉलर 44 प्रतिशत की सब्सिडी दी जाती है।

First Published - May 19, 2008 | 11:44 PM IST

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