भारत के जन धन आधार मोबाइल (जेएएम) टिनिट्री ऑफ टेक्नोलॉजिज के आधार पर अफ्रीका के डिजिटल और भौतिक बुनियादी ढांचे को तेजी से स्थापित करना, अफ्रीकी खाद्य व्यवस्था को विकसित करना, लॉजिस्टिक्स और व्यापार संबंधी बाधाओं को आसान करना उन प्रमुख सिफारिशों में शामिल है, जिसे अफ्रीका की अर्थव्यवस्था के एकीकरण के लिए बी-20 परिषद ने सुझाए हैं।
बी-20 परिषद की अध्यक्षता कर रहे भारती एयरटेल के चेयरमैन सुनील भारती मित्तल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि परिषद जल्द ही अपनी सिफारिश सरकार और जी20 के साथ साझा करेगी। जी-20 संवाद मंच में वैश्विक व्यापार समुदाय की एक इकाई बी-20 है और इसकी सिफारिशें अमूमन जी-20 की कार्य योजना में शामिल की जाती हैं।
मित्तल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफ्रीकी एकीकरण में विशेष रुचि दिखाई है और यह ऐसा क्षेत्र है, जहां वह विरासत छोड़ना चाहते हैं। अगस्त में होने वाली अंतिम बैठक में बी-29 की सिफारिशें आधिकारिक तौर पर जारी की जाएंगी।
उन्होंने कहा, ‘हमारे काम का मुख्य आधार डिजिटल और भौतिक कनेक्टिविटी स्थापित करने की जरूरत पर है। सीमा की सड़कें बनाने और उन्हें जोड़ने, जलमार्ग बनाने, रेल लाइन बने के लिए बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे से संबंधित हस्तक्षेप की जरूरत है। डिजिटल कनेक्टिविटी में बायोमीट्रिक्स, जनधन तकनीक और मोबाइल कनेक्टिविटी सहित भारत के डिजिटल स्टाक का लाभ उठाया जा सकता है।’
भारत स्वदेश में विकसित डिजिटल स्टाक अफ्रीकी देशों के साथ साझा करने को भी इच्छुक है और अधिकारियों ने पुष्टि की कि तमाम देशों से इसके बारे में जानकारी मांगी जा रही है।
मित्तल ने कहा, ‘भारत अपना सॉफ्ट पॉवर दिखाने के अवसर के रूप में इसका इस्तेमाल करना चाहता है, न कि इसे आर्थिक एजेंडे या कारोबार के अवसर के रूप में देख रहा है।’
बी-20 की सिफारिशों का दूसरा स्तंभ अफ्रीका में कृषि और खाद्य व्यवस्था में सुधार है। मित्तल ने कहा कि अफ्रीका के कुछ इलाके जैसे डीआरसी बहुत ज्यादा उपजाऊ हैं, लेकिन वहां अभी भी तमाम फसलें नहीं हैं।
कांगो बेसिन पूरी दुनिया को खिला सकता है, खासकर ऐसे समय में उसका महत्त्व महसूस हो रहा है, जब यूक्रेन संकट के बाद गेहूं की कीमत आसमान पर है। अफ्रीकी आने वाले दशकों में पूरी दुनिया का पेट भर सकते हैं।
अगर हर कोई अफ्रीका पर ध्यान दे तो खाद्यान्न की कोई कमी नहीं होगी और इससे उन देशों की अर्थव्यवस्था भी बढ़ेगी। भारत के कृषि विश्वविद्यालय कदम बढ़ाकर हरित और श्वेत क्रांति पर साझा काम कर सकते हैं और अफ्रीकी संस्थाओं के साझेदार बन सकते हैं।