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तेल व गैस क्षेत्र के लिए मुश्किल रहा साल

Last Updated- December 12, 2022 | 10:23 AM IST

यह साल तेल और गैस क्षेत्र के लिए अप्रत्याशित मुश्किलों से भरा रहा। इस क्षेत्र के इतिहास में पहली बार वेस्ट टैक्सस इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) कच्चे तेल की कीमत ऋणात्मक दिशा में गई। जीवन में संभवत: एक बार आने वाला यह रुझान कोविड-19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन की वजह से नजर आया। लॉकडाउन के कारण अप्रैल 2020 में वैश्विक मांग धीमी पड़ गई। उत्तर अमेरिका में डब्ल्यूटीआई को कच्चे तेल की बिक्री के लिए बेंचमार्क के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। अप्रैल 2020 में यह गिरकर ऋणात्मक 40 डॉलर प्रति बैरल हो गया। इसका मतलब हुआ कि कच्चे तेल की उचित भंडारण क्षमता वालों को उत्पादकों की ओर से भुगतान किया जा रहा था। यह सामान्य नियम के बिल्कुल उलट था। भले ही अधिक प्रचलित वैश्विक बेंचमार्क ब्रेंट और कच्चे तेल का भारतीय बास्केट उस स्तर तक कम नहीं हुआ लेकिन इन पर काफी अधिक दबाव था जो शोधित उत्पादों की कीमतों पर भी पड़ा।
 
कच्चे तेल की कीमत में अप्रत्याशित गिरावट के अगले ही दिन में इसमें तेज सुधार हुआ और यह धनात्मक क्षेत्र में पहुंच गया। तीव्र गिरावट के अगले दिन 22 अप्रैल को डब्ल्यूटीआई ने केवल 10 डॉलर प्रति बैरल से थोड़े अधिक दर पर कारोबार किया और उसके बाद धीरे धीरे 22 जून को 40 डॉलर प्रति बैरल का भाव पार कर गया। उसके बाद से कीमतें बाधित सीमा (रेंज बाउंड) में रही हैं  और धीरे धीरे औसतन 50 डॉलर प्रति बैरल से थोड़े कम पर रही है। भारत में डेलॉइट के पार्टनर देवाशीष मिश्र ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘कोविड-19 के कारण अप्रैल के दौरान कच्चे तेल की मांग और कीमत नाटकीय रूप से धराशायी होने के बाद कुछ हद तक स्थापित हुई है। भारत में तेल की मांग में धीमी सुधार से न केवल वैश्विक बाजार को स्थायी होने में मदद मिल रही है बल्कि सरकार को अतिरिक्त उत्पाद शुल्क मिलने से सरकार को काफी अधिक राजकोषीय गुंजाइश मिल रही है।’ 
 
कच्चे तेल की कीमत में कमी का यह परिदृश्य भारत जैसे आयात पर निर्भर देशों के लिए काफी लाभकारी है। इसके कारण केंद्र और राज्य सरकारों को वाहन ईंधनों से मिलने वाले अपने राजस्व की हिस्सेदारी को बढ़ाने में मदद मिल रही है। सरकारों ने कीमतों को उसी स्तर पर बनाए रखा है और करों में वृद्घि कर दी है। इससे केंद्र को बजटीय घाटा के बेहतर प्रबंधन में भी मदद मिलती है।  मांग में कमी आने के कारण प्राकृतिक गैस की कीमतों में भी कमी आई। मांग में कमी का असर भारत के घरेलू उत्पादन पर भी पड़ा। अक्टूबर से मार्च 2021 अवधि के लिए घरेलू स्तर पर उत्पादित प्राकृतिक गैस की कीमत में भी 1.79 डॉलर प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट (एमबीटीयू) की कमी की गई। इस कीमत का निर्धारण एक सूत्र के आधार पर किया जाता है जो प्रमुख गैस केंद्रों में प्राकृतिक गैस की कीमत से जुड़ा होता है और 2014 में इस पद्घति को अपनाने के बाद यह सबसे न्यूनतम रहा। गैस की कम कीमत ने उत्पादकों के उत्साह को कम कर दिया जो पहले से ही कम मांग का सामना कर रहे थे। मूल्य में विचलन भारत में तेल कंपनियों के लिए समूची मूल्य शृंखला में अच्छा संकेत नहीं रहा। कीमतें गिरने के कारण अस्थिरता जोखिम और वित्त लागतें बढऩे से तेल अन्वेषण कंपनियों को सर्वाधिक झटका महसूस हुआ। 
 
देश की सबसे बड़ी कच्चा तेल उत्पादक कंपनी ऑयल ऐंड नैचुरल गैस कॉर्पोरेशन (ओएनजीसी) और देश की सबसे बड़ी रिफाइनर और ईंधन की खुदरा विक्रेता इंडियन ऑयल साल के आरंभ की तुलना में करीब 30 फीसदी कम पर कारोबार कर रही हैं। यह निराशाजनक स्थिति कोविड-19 के बढ़ते असर के कारण से है। यह डीजल और पेट्रोल जैसे पेट्रोलियम उत्पादों के लिए मांग को धीमा करने के लिए जारी रह सकता है।  मिश्रा ने कहा, ‘एशिया में रिफाइनरों को आगे भी दबावग्रस्त क्रैक स्प्रेड देखने को मिल सकता है और उत्पाद को पुनर्संतुलित करने की जरूरत पड़ सकती है। ऐसा इसलिए है कि महामारी ने कुछ अंतिम असर छोड़े हैं।’
 
दिसंबर में भी पेट्रोलियम उत्पादों की मांग पिछले वर्ष के स्तरों से कम पर है जबकि देश में लॉकडाउन हटाने के बाद अर्थव्यवस्था को फिर से खोलने के लिए गंभीर प्रयास किए गए हैं।  यहां तक कि दिसंबर में भी पेट्रोलियम उत्पादों के दाम पिछले साल के स्तर से नीचे है, जबकि देश में लॉकडाउन खत्म किए जाने के बाद लगातार अर्थव्यवस्था को खोलने की कवायद की जा रही है।  कम कीमतों की वजह से केंद्र को अपने समर्थन की पेशकश पर नए सिरे से काम करने का मौका मिला है और वह समाज के आर्थिक रूप से सबसे कमजोर तबके को मदद बढ़ा सकी है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) ग्राहकों को मुफ्त रसोई गैस (एलपीजी) सिलिंडरों के वितरण के माध्यम से यह किया गया था। रसोई गैस के मुफ्त सिलिंडरों की वजह से तीन महीने तक (अप्रैल से जून 2020) गैस की मांग को बढ़ावा मिला। भारत ने पश्चिम एशिया के देशों के साथ नरम कूटनीति अपनाई और इसकी वजह से आपूर्ति के अंतर की भरपाई करने में मदद मिली। 
 
लेकिन व्यावहारिक रूप से ज्यादा समर्थन उन शेष लोगों से आया, जहां समर्थन पर कोई लागत नहीं आई। भारत में अब करीब 28 करोड़ एलपीजी ग्राहक हैं। आधिकारिक अनुमानों के मुताबिक करीब इनमें से करीब 1.5 करोड़ लोग दिसंबर 2016 से रसोई गैस सब्सिडी पाने के पात्र नहीं हैं क्योंकि उनकी सालाना कर योग्य आमदनी 10 लाख रुपये से ऊपर है। शेष करीब 26 करोड़ ग्राहकों को प्रत्यक्ष नकदी अंतरण के लिए बजट आवंटन से सीधे खाते में सब्सिडी दी जा रही है।  

First Published - December 27, 2020 | 9:11 PM IST

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