विदेशी निवेश 5 साल के निचले स्तर पर पहुंच जाने के बाद केंद्र सरकार रणनीतिक विदेशी निवेशकों को स्थानीय कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदने में ज्यादा लचीलापन प्रदान करने के लिए उपायों पर विचार कर रही है। मामले से जुड़े 3 सूत्रों ने यह जानकारी दी।
सूत्रों ने बताया कि नीति निर्माता इक्विटी और डेट के मिले-जुले माध्यम से विदेशी निवेश के विकल्प पर विचार कर रहे हैं, जिसकी इस समय अनुमति नहीं है। उन्होंने कहा कि इस पर अभी कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है। इस तरह के विदेशी निवेश के दरवाजे खोलने से देश के पूंजी बाजार और विदेशी पूंजी की आवक का और अधिक उदारीकरण होगा। अभी इस पर तमाम तरह से अंकुश लगे हुए हैं, क्योंकि भारतीय मुद्रा पूरी तरह से परिवर्तनीय नहीं है।
सूत्रों ने नाम सार्वजनिक न किए जाने की शर्त पर कहा कि इक्विटी और डेट के मिले-जुले तरीके के इस्तेमाल की अनुमति देने की योजना है, जिसे ‘मेजेनाइन इंस्ट्रूमेंट’ कहा जाता है। उन्होंने कहा कि यह भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए सरकार की योजना का हिस्सा है।
इस समय भारत के विदेशी मुद्रा कानून के तहत कॉर्पोरेट फाइनैंसिंग में मेजेनाइन इंस्ट्रूमेंट को मान्यता नहीं मिली हुई है, जो वैश्विक रूप में प्रचलन में है। खासकर विलय और अधिग्रहण के बड़े सौदों में इसका इस्तेमाल होता है। अधिकारियों का मानना है कि एफडीआई, पूंजी का ज्यादा स्थिर स्रोत है और हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के बावजूद इसकी आवक कमजोर है।
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक इक्विटी निवेश और कमाई को फिर से लगाने सहित सकल एफडीआई 2023-24 में घटकर 71 अरब डॉलर रह गई, जो 2018-19 के बाद का निचला स्तर है। 2022-23 में यह 71.4 अरब डॉलर, 2021-22 में 84.8 अरब डॉलर था।
एक सूत्र ने कहा कि विदेशी निवेश के विकल्प के इस विस्तार से आंतरिक अनुमान के मुताबिक भारत में 20 से 30 अरब डॉलर अतिरिक्त विदेशी निवेश हो सकता है। इस मसले पर वित्त मंत्रालय ने तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।