टोल अधिकारों से सड़कों के मुद्रीकरण की योजना जल्द शुरू सकती है। केंद्र ने टोल-ऑपरेट-ट्रांसफर (टीओटी) प्रणाली को वर्तमान स्वरूप में जारी रखने को लेकर विचार-विमर्श लगभग पूरा कर लिया है। इस योजना को 2 महीने पहले रोक दिया गया था।
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचआई) के परिचालन वाले राष्ट्रीय राजमार्गों को टीओटी के तहत निजी कारोबारियों को सौंपे जाने का प्रावधान है और वे टोल इकट्ठा करने, सड़कों के परिचालन और उनके रखरखाव का काम करते हैं और अतिरिक्त टोल राजस्व से कमाई करते हैं। इस मॉडल के साथ इनविट में कुछ भारतीय व अंतरराष्ट्रीय निवेश फंडों को निवेश की अनुमति दी गई है, जिससे वे बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश कर चल रही सड़कों से मुनाफा कमा सकें।
फरवरी में सड़क मंत्री नितिन गडकरी और मंत्रालय के सचिव वी उमाशंकर ने एनएचएआई को पत्र लिखकर कहा था कि टीओटी के तहत दी गई सभी संपत्तियों का समग्र मूल्यांकन किया जाए। साथ ही इनविट और टीओटी के बीच तुलनात्मक विश्लेषण पूरा होने तक सभी टीओटी खंडों पर रोक लगाने का आदेश दिया गया था।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘मंत्रालय ने अपनी चिंता से एनएचएआई को अवगत करा दिया था। तुलनात्मक विश्लेषण का काम पूरा हो चुका है और इस पर कई दौर की बातचीत हुई है। मंत्रालय इस तरीके को जारी रखने के बारे में नीति को अंतिम रूप देने के बहुत करीब है।’
मुद्रीकरण मॉडल की चिंताओं को लेकर गडकरी बहुत मुखर रहे हैं। उनका कहना है कि इस मॉडल में कंसेसनायर को बहुत मुनाफा मिलता है और सरकार को इसमें से बहुत कम हिस्सा मिलता है।
हाइवे ऑपरेटर्स एसोसिएशन के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए गडकरी ने दिसंबर 2023 में कहा था, ‘टीओटी मॉडल में जिन निवेशकों ने परियोजनाएं लीं, उन्होंने हमसे वादा किया कि वे अपना निवेश खुद लाएंगे। लेकिन हमारा अनुभव बताता है कि वे यहां आए और भारतीय बैंकों से कर्ज लिया। मैं इनमें से कुछ परियोजनाओं की आंतरिक रिटर्न रेट से भी अवगत हूं।’ गडकरी ने कहा कि टीओटी मॉडल एनएचएआई की तुलना में कंसेसनायर के पक्ष में ज्यादा है, इसकी वजह से हम इनविट मॉडल का इस्तेमाल अधिक कर रहे हैं।
टीओटी सरकार के लिए सबसे बड़े मुद्रीकरण मॉडलों में से एक है। इसे कंसेसनायर भी पसंद करते हैं। मंत्रालय की मुद्रीकरण योजना में इसकी हिस्सेदारी 38 प्रतिशत है। अचानक रोक लगने से टीओटी की 15 योजनाओं पर असर पड़ा है। इसमें कथित तौर पर अडानी एंटरप्राइजेज सबसे अधिक बोली लगाने वाली कंपनी के रूप में उभरी थी। मंत्रालय ने अपने पत्र में पांच साल के टोल संग्रह अधिकारों का एक वैकल्पिक मॉडल भी पेश किया था।
अधिकारी ने कहा, ‘इसका असर सड़क सुरक्षा पर भी पड़ सकता है। राजमार्ग को नया रूप देने के लिए हर पांच साल में पूंजी की जरूरत होती है और यह देखा गया है कि बोली जितनी आक्रामक होगी, खंड को नया रूप देने में होने वाले खर्च में उतनी ही अधिक समस्याएं आएंगी, क्योंकि कंसेसन पाने वालों का मार्जिन कम होगा। कंसेसन की अवधि कम होने का मतलब है कि सड़कें सुरक्षित होंगी, क्योंकि नए ठेकेदार काम को अधिक गंभीरता से लेंगे।’